शब्द होते तो हैं
पर नीलकंठ बने अनकहे रह जाते हैं ...
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हर व्यक्ति एक मूर्तिकार है ....स्वयम को तराशता हुआ ...!!
बीतता ही जा रहा है ये जीवन ....साल दर साल ...उम्र का एक बड़ा हिस्सा बीत जाने पर भी ...आज सोचती हूँ .... क्या जीवन हमें वो सब कुछ दे देता है जो हम चाहते हैं ....हम लाख खुशी ही खुशी बिखेरना चाहें ....सिर्फ एक पल में जीवन क्यों बदल जाता है ...????
निश्छल निष्कपट निर्द्वन्द्व निर्भीक जीवन जीना कठिन क्यों है ....?????
यकायक वो मुस्कान कहाँ खो जाती है ...????? मन में रह जाता है कुछ .....अनकहा ....अनगढ़ा ...एक पत्थर सा ...जो बिन तराशा ही रह गया ....हृदय के भीतर .....इक बोझ सा .....बेचैन करता है कई बार ....!!बस यही सोचता रह जता है मन ....अब और कैसे तराशूँ ...??
हजारों ख्वाइशें ऎसी ......रह ही जातीँ हैं न .........
पिछले चौबीस घंटों से लगातार बारिश ....
क्षमायाचना के साथ .......आज कुछ निराशावादी भाव हैं ....और आज बूँदें कुछ और ही कह रही हैं ....
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कभी कभी वेदना...
अश्रु सी यूं...
बह नहीं पाती ....
रह जाती ...
बस जाती ..
तह में हृदय के ....
पीड़ा मन की...
छलक ना यूं पाती ...!!
आज जब ..सुप्त सुसुप्त हृदय के ...
खोलें हैं द्वार ....!!
अब ....देखती हूँ ...
झमाझम पड़ती बारिश...
................मूसलाधार ...!!
हृद भीतर भी ,...
हिय बाहर भी .....
बरबस अंसुअन से भीगता है .....
और भीगता ही जाता है ...
मेरी भावनाओं का ................
........................वो ..सैलाब ....!!
...................वो लाल गुलाब ...!!
अभिव्यक्ति तक नहीं पहुंचा नहीं पाई जिसे ...!!
मूक ही रह गई कृति मेरी ...
धूमिल हुई आकृति मेरी ...
बीत गया जीवन ...
रीत ही गया मन ...
अकथनीय रहा सृजन ....
झर-झर बरसते रहे नयन .. .... .........?
उन्माद में भीगी इस रुत में ..
मोद मनाते इस जग से ...
हिय की पीर कहूं भी तो कैसे ...?
वो शब्द कुछ फिर भी रह ही गए .......
अनकहे अनसुने ..
अनगढ़े अनपढ़े से ....
टूट के बिखर जाएंगी पंखुडियां ......
सुबह होने तक ............
अब कोई भी सूरज....
खिला नहीं पायेगा......
उसकी कोमल मुस्कान फिर दुबारा ......!!
अनुपमा सुकृति
ReplyDeleteकभी कभी वेदना...
अश्रु सी यूं...
बह नहीं पाती ....
रह जाती ...
बस जाती ..
तह में हृदय के ..व्यथित मन के साथ
कितना कुछ अनकहा सा लिये
बेहतर लेखन !!!
ReplyDeleteहर पंक्ति तारीफ के काबिल , शुरू में ही बता दिया गया कि यह एक वेदना गीत है , और अंत तक यह रचना अपनी बात पर कायम रही |
ReplyDeleteसादर
साधू-साधू
ReplyDeleteलाज़वाब प्रस्तुति...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर..
ReplyDeleteबहत सुन्दर..
ReplyDeleteवेदना की कसक
हर ख्वाहिश पूरी नहीं होती है , पलकों की नमी बनकर भी अटकती है !
ReplyDeleteसच कहा बहुत कुछ रह ही जाता है अनकहा
ReplyDeleteankahe ki kasak bahut jeevant roop me ubhari hai..
ReplyDeleteरचना चयन के लिए हृदय से आभार ....रवीन्द्र प्रभात जी और रश्मि दी .....
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