तुममें ही है प्रतिविम्ब मेरा
तुममें ही है अस्तित्व मेरा
सबकुछ तुमसे है.....


रश्मि प्रभा







=======================================================

आलम्ब मेरा........



किशोर

नाम -किशोर कुमार खोरेंद्र /जन्म तारीख -07-10-1954 /स्थान -मुंगेली ,सी.जी /शिक्षा -स्नातक/व्यवसाय -स्टेट बैंक से रिटायर अधिकारी/ वर्तमान पता -रायपुर ,छत्तीसगढ़ !
पढ़ के ,
लिख के ,
पुकार के
शब्दों में
तुम को
देख पाता हूँ
प्रारंभ मेरा

हो वही आईना
देख पाता हूँ
जिसमें
बेहिचक मैं
प्रतिबिम्ब मेरा

मिलवा देती हो
सद्गुण ही नहीं
अवगुणों से भी मेरे
बन के तुम
आलम्ब मेरा

जान सकता हूँ
अकेला ही मैं
खुद को
रहा था ये
मिथ्या दंभ मेरा

मिल कर तुमसे
छंट गया कुहासा
टूट गया ,जो रहा
था भ्रम मेरा

22 comments:

  1. बहुत खूब लिखा है .

    ReplyDelete
  2. बहुत सुन्दर लिखा है... सुन्दर रचना ..

    ReplyDelete
  3. बहुत सुन्दर रचना।

    ReplyDelete
  4. किशोर जी ,
    यहाँ आपको पढ़ना बहुत अच्छा लगा

    ReplyDelete
  5. बहुत खूबसूरती से बयां किया हैं आपने प्रणेता को किशोर दा
    आपको पढना हमेशा ही सुवासित कर जाता हैं
    रचना की रवानगी और कथ्य लाजवाब हैं
    बधाई पुनः

    ReplyDelete
  6. वाह! क्या बात है! बहुत खूब लिखा है आपने!

    ReplyDelete
  7. मिल कर तुमसे मिट गया छाँट गया कुहासा ...
    ऐसे तुमने मुझे खुद से मिलाया ..
    हम अपनी जिंदगी में ऐसे लोगों से मिलते हैं जो हमारा आईना बन जाते हैं , मगर इस तरह शब्दों में स्वीकार कोई -कोई ही कर पाता है !

    ReplyDelete
  8. .....जान सकता हूँ
    अकेला ही मैं
    खुद को
    रहा था ये
    मिथ्या दंभ मेरा


    बहुत ही गहरी और सच बात!वाह!

    ReplyDelete
  9. इस बेहतरीन रचना के साथ किशोर जी के परिचय के लिए आभार।

    ReplyDelete
  10. मिल कर तुमसे
    छंट गया कुहासा
    टूट गया ,जो रहा
    था भ्रम मेरा...

    बहुत सुन्दर रचना..

    ReplyDelete
  11. बहुत सुन्दर !आप बहुत और विविध विषयो पे लिख सक्ते है!

    ReplyDelete
  12. मिलवा देती हो
    सद्गुण ही नहीं
    अवगुणों से भी मेरे
    बन के तुम
    आलम्ब मेरा

    बहुत ही गहरे भाव हैं इन पंक्तियों में...

    इस बेहतरीन प्रस्‍तुति के लिये आभार ...।।

    ReplyDelete
  13. बहुत सुन्दर लिखा है ... गहरी बात!

    ReplyDelete
  14. नमस्कार !
    जान सकता हूँ
    अकेला ही मैं
    खुद को
    रहा था ये
    मिथ्या दंभ मेरा
    बहुत ही गहरी और सच बात!वाह!

    ReplyDelete
  15. लाजवाब, सुन्दर रचना....

    ReplyDelete
  16. मनभावन प्रस्तुति
    बधाई
    आशा

    ReplyDelete
  17. सुवाच्य सुश्राव्य सुन्दर श्रेष्ठ सात्विक

    ReplyDelete
  18. भावाव्यक्ति का अनूठा अन्दाज । बेहतरीन एवं प्रशंसनीय प्रस्तुति ।

    ReplyDelete
  19. किशोर जी,
    आपको पढना हमेशा अच्छा लगता है, बहुत भावपूर्ण रचना, बधाई स्वीकारें|

    ReplyDelete
  20. मिलवा देती हो
    सद्गुण ही नहीं
    अवगुणों से भी मेरे
    बन के तुम
    आलम्ब मेरा
    भावमय खूबसूरत अभिव्यक्ति। बधाई।

    ReplyDelete

 
Top