तुममें ही है प्रतिविम्ब मेरा
तुममें ही है अस्तित्व मेरा
सबकुछ तुमसे है.....
रश्मि प्रभा
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आलम्ब मेरा........
किशोर
नाम -किशोर कुमार खोरेंद्र /जन्म तारीख -07-10-1954 /स्थान -मुंगेली ,सी.जी /शिक्षा -स्नातक/व्यवसाय -स्टेट बैंक से रिटायर अधिकारी/ वर्तमान पता -रायपुर ,छत्तीसगढ़ !पढ़ के ,
लिख के ,
पुकार के
शब्दों में
तुम को
देख पाता हूँ
प्रारंभ मेरा
हो वही आईना
देख पाता हूँ
जिसमें
बेहिचक मैं
प्रतिबिम्ब मेरा
मिलवा देती हो
सद्गुण ही नहीं
अवगुणों से भी मेरे
बन के तुम
आलम्ब मेरा
जान सकता हूँ
अकेला ही मैं
खुद को
रहा था ये
मिथ्या दंभ मेरा
मिल कर तुमसे
छंट गया कुहासा
टूट गया ,जो रहा
था भ्रम मेरा
बहुत खूब लिखा है .
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लिखा है... सुन्दर रचना ..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना।
ReplyDeleteकिशोर जी ,
ReplyDeleteयहाँ आपको पढ़ना बहुत अच्छा लगा
बहुत खूबसूरती से बयां किया हैं आपने प्रणेता को किशोर दा
ReplyDeleteआपको पढना हमेशा ही सुवासित कर जाता हैं
रचना की रवानगी और कथ्य लाजवाब हैं
बधाई पुनः
वाह! क्या बात है! बहुत खूब लिखा है आपने!
ReplyDeleteNice kishor sir
ReplyDeleteमिल कर तुमसे मिट गया छाँट गया कुहासा ...
ReplyDeleteऐसे तुमने मुझे खुद से मिलाया ..
हम अपनी जिंदगी में ऐसे लोगों से मिलते हैं जो हमारा आईना बन जाते हैं , मगर इस तरह शब्दों में स्वीकार कोई -कोई ही कर पाता है !
.....जान सकता हूँ
ReplyDeleteअकेला ही मैं
खुद को
रहा था ये
मिथ्या दंभ मेरा
बहुत ही गहरी और सच बात!वाह!
इस बेहतरीन रचना के साथ किशोर जी के परिचय के लिए आभार।
ReplyDeleteमिल कर तुमसे
ReplyDeleteछंट गया कुहासा
टूट गया ,जो रहा
था भ्रम मेरा...
बहुत सुन्दर रचना..
बहुत सुन्दर !आप बहुत और विविध विषयो पे लिख सक्ते है!
ReplyDeleteमिलवा देती हो
ReplyDeleteसद्गुण ही नहीं
अवगुणों से भी मेरे
बन के तुम
आलम्ब मेरा
बहुत ही गहरे भाव हैं इन पंक्तियों में...
इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिये आभार ...।।
बहुत सुन्दर लिखा है ... गहरी बात!
ReplyDeleteनमस्कार !
ReplyDeleteजान सकता हूँ
अकेला ही मैं
खुद को
रहा था ये
मिथ्या दंभ मेरा
बहुत ही गहरी और सच बात!वाह!
लाजवाब, सुन्दर रचना....
ReplyDeleteमनभावन प्रस्तुति
ReplyDeleteबधाई
आशा
सुवाच्य सुश्राव्य सुन्दर श्रेष्ठ सात्विक
ReplyDeleteaap sabhi ko shukriyaa
ReplyDeleteभावाव्यक्ति का अनूठा अन्दाज । बेहतरीन एवं प्रशंसनीय प्रस्तुति ।
ReplyDeleteकिशोर जी,
ReplyDeleteआपको पढना हमेशा अच्छा लगता है, बहुत भावपूर्ण रचना, बधाई स्वीकारें|
मिलवा देती हो
ReplyDeleteसद्गुण ही नहीं
अवगुणों से भी मेरे
बन के तुम
आलम्ब मेरा
भावमय खूबसूरत अभिव्यक्ति। बधाई।