भूमिका तो वे बनाते हैं जिन्हें ज़मीन खींचनी होती है
जिनकी ज़मीन है
उनके लिए भूमिका कैसी !
मुझे जीना है ... मरने से पहले, बस कुछ अपने लिए
रश्मि प्रभा
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आत्मदाह
कोशिशें,
किसी उपग्रह से असफलता का चक्कर लगाती हुईं
मेरे ज़ख्मों की डायरी को दीमक बनकर चाट गयीं !
भावनाएं,
अनियंत्रित चुम्बकीय मान्यताओं से चिपक कर ठूँठ हो गयीं
और सपने ,
आँखों की गहराई नापते-नापते सागर की सच्चाई हो गए !
फिर भी मेरा विश्वास
हाथों में बहारों का राजाज्ञा -पत्र लिए यूँ ही
राजमहल की सड़कों पर पसरे-पसरे
उस सोने की मेहराब को देखता रहा ,
जिसका
कम से कम एक अणु
मेरे संकल्प का पुनर्जनम है ,
मेरे ख़ून की शहादत है !
मगर आज
मैं तुम्हारा राजाज्ञा-पत्र तुम्हें वापस करता हूँ,
तुम
मेरी क्रांति को मुक्त कर दो!
मुझे मेरा वह अणु लौटा दो,
जिसकी आँच में
अपने लहू को खौलाकर फिर से पी सकूँ ,
और आत्मदाह की पीड़ा से मुक्त होकर
कम से कम क्षण भर और जी सकूँ !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
मैंने अपने को हमेशा देश और समाज के दर्द से जुड़ा पाया. व्यवस्था के इस बाज़ार में मजबूरियों का मोल-भाव करते कई बार उन चेहरों को देखा, जिन्हें पहचान कर मेरा विश्वास तिल-तिल कर मरता रहा. जो मैं ने अपने आसपास देखा वही दूर तक फैला दिखा. शोषण, अत्याचार, अव्यवस्था, सामजिक व नैतिक मूल्यों का पतन, धोखा और हवस.... इन्हीं संवेदनाओं ने मेरे 'कवि' को जन्म दिया और फिर प्रस्फुटित हुईं वो कवितायें,जिन्हें मैं मुक्त कंठ से जी भर गा सकता था....... !
वाह ...बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
ReplyDeleteगहन चिंतन के साथ अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteकिसी उपग्रह से असफलता का चक्कर लगाती हुईं
ReplyDeleteमेरे ज़ख्मों की डायरी को दीमक बनकर चाट गयीं !
वाह, क्या बात है ! बहुत सुन्दर रचना !
मेरे मन की गहराईयों से
ReplyDeleteख़ुशियाँ
उभरती रहती हैं
पल पल , हर पल
सागर है मन मेरा
और दूध विचार
मंथन में मगन हैं
ख़ुद मेरे रौशन और तारीक जज़्बे
बस अब क़रीब है अमृत
और फिर मैं हो जाऊँगा मुक्त
हरेक दाह-प्रदाह से
ज़मीर की मौत से
और जी सकूंगा
एक इंसान की तरह
सत्य के परमाणु के साथ
जग को रौशन करता हुआ
बेहद गहन और उम्दा प्रस्तुति।
ReplyDeletetoo good sir ji,
ReplyDeletebahut achhi prastuti!
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
ReplyDeleteइस सशक्त रचना से परिचय कराने के लिए आभार।
ReplyDeleteमर्मग्य जी पुनः बधाई स्वीकारें, रचना वाकई काबिले तारीफ़ है.
ReplyDeleteआद. रश्मि जी,
ReplyDeleteमेरी कविता "आत्मदाह" को वटवृक्ष पर सम्मान देने के लिए धन्यवाद और आभार !