किसी उड़ान की कोई भाषा नहीं होती
रश्मि प्रभा
=======================================================
http://hindiacom.blogspot.com/ [कारवॉं KARVAAN]
होता है विस्तृत आकाश
और ओस ओस ज़िन्दगी
किसी देवदार की तरह
रश्मि प्रभा
=======================================================
उडा्न हूं मैं
चाजों को सरलीकृत मत करो
अर्थ मत निकालो
हर बात के मानी नहीं होते
चीजें होती हैं
अपनी संपूर्णता में बोलती हुयीं
हर बार
उनका कोई अर्थ नहीं होता
अपनी अनंत रश्मि बिंदुओं से बोलती
जैसे होती हैं सुबहें
जैसे फैलती है तुम्हारी निगाह
छोर-अछोर को समेटती हुई
जीवन बढता है हमेशा
तमाम तय अर्थों को व्यर्थ करता हुआ
एक नये आकाश की ओर
हो सके तुम भी उसका हिस्सा बनो
तनो मत बात-बेबात
बल्कि खोलो खुद को
अंधकार के गर्भगृह से
जैसे खुलती हैं सुबहें
एक चुप के साथ्ा
जिसे गुंजान में बदलती
भागती है चिडिया
अनंत की ओर
और लौटकर टिक जाती है
किसी डाल पर
फिर फिर
उड जाने के लिये
नहीं
तुम्हारी डाल नहीं हूं मैं
उडान हूं मैं
फिर
फिर...।
राइनेर मारिया रिल्के के लिये
कुमार मुकुल / Kumar Mukulअर्थ मत निकालो
हर बात के मानी नहीं होते
चीजें होती हैं
अपनी संपूर्णता में बोलती हुयीं
हर बार
उनका कोई अर्थ नहीं होता
अपनी अनंत रश्मि बिंदुओं से बोलती
जैसे होती हैं सुबहें
जैसे फैलती है तुम्हारी निगाह
छोर-अछोर को समेटती हुई
जीवन बढता है हमेशा
तमाम तय अर्थों को व्यर्थ करता हुआ
एक नये आकाश की ओर
हो सके तुम भी उसका हिस्सा बनो
तनो मत बात-बेबात
बल्कि खोलो खुद को
अंधकार के गर्भगृह से
जैसे खुलती हैं सुबहें
एक चुप के साथ्ा
जिसे गुंजान में बदलती
भागती है चिडिया
अनंत की ओर
और लौटकर टिक जाती है
किसी डाल पर
फिर फिर
उड जाने के लिये
नहीं
तुम्हारी डाल नहीं हूं मैं
उडान हूं मैं
फिर
फिर...।
राइनेर मारिया रिल्के के लिये
- कुमार मुकुल
- जन्म : १९६६ आरा , बिहार के संदेश थाने के तीर्थकौल गांव में। शिक्षा : एमए, राजनीति विज्ञान १९८९ में अमान वूमेन्स कालेज फुलवारी शरीफ पटना में अध्यापन से आरंभ कर १९९४ के बाद अबतक दर्जन भर पत्र-पत्रिकाओं अमर उजाला , पाटलिपुत्र टाइम्स , प्रभात खबर आदि में संवाददाता , उपसंपादक और संपादकीय प्रभारी व फीचर संपादक के रूप में कार्य। किताब : दो कविता संग्रहों का प्रकाशन। कविता की आलोचना पर 'कविता का नीलम आकाश' नाम से एक किताब शिल्पायन प्रकाशन प्रकाश्य, देश की तमाम हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं जैसे - हंस,वसुधा,तदभव, कथादेश,आलोचना,इंडिया टूडे, आउटलुक,हिन्दुस्तान, कादंबिनी,कृति ओर,पब्लिक एजेंडा, रचना समय, नवभारत टाइम्स, जनसत्ता,नई दुनिया, दैनिक जागरण आदि में कविता , कहानी , समीक्षा और आलेखों का नियमित प्रकाशन। कैंसर पर एक किताब शीघ्र प्रकाश्य। संपादन : 'संप्रति पथ' नामक साहित्यिक पत्रिका का दो सालों तक संपादन। वर्तमान में 'मनोवेद' त्रैमासिक पत्रिका के कार्यकारी संपादक। Mail- kumarmukul07@gmail.com
http://hindiacom.blogspot.com/
नहीं
ReplyDeleteतुम्हारी डाल नहीं हूं मैं
उडान हूं मैं
बेहतरीन शब्द रचना ...।
कोई पड़ाव नहीं हूँ जहाँ तुम ठहर कर फिर उड़ जाओ - -
ReplyDeleteसदा तुम्हारे साथ हूँ -
तुम्हारी उडान हूँ मैं -
बहुत खूबसूरत भाव -
बहुत सकारात्मक रचना -
अनंत की ओर
ReplyDeleteऔर लौटकर टिक जाती है
किसी डाल पर
फिर फिर
उड जाने के लिये
नहीं
तुम्हारी डाल नहीं हूं मैं
उडान हूं मैं
फिर
फिर...।
वाह!
तनो मत बात-बेबात
ReplyDeleteबल्कि खोलो खुद को
अंधकार के गर्भगृह से
जैसे खुलती हैं सुबहें
एक चुप के साथ...
प्रभावशाली, प्रेरक और सार्थक रचना केलिए बहुत बधाई मुकुल जी.
"कोई पड़ाव नहीं हूँ जहाँ तुम ठहर कर फिर उड़ जाओ - -
ReplyDeleteसदा तुम्हारे साथ हूँ -
तुम्हारी उडान हूँ मैं -"
जीवन विस्तार को खुद में समेटे एक बेहतरीन रचना.
pyari rachna......
ReplyDeleteप्रभावी रचना...
ReplyDeletebhut hi prabhaavpur kavita hai...
ReplyDeleteसुन्दर सन्देश देती अच्छी रचना
ReplyDeletelajabab......
ReplyDeleteतनो मत बात-बेबात
ReplyDeleteबल्कि खोलो खुद को
अंधकार के गर्भगृह से
जैसे खुलती हैं सुबहें
लाजवाब !
कोई पड़ाव नहीं हूँ जहाँ तुम ठहर कर फिर उड़ जाओ - -
ReplyDeleteसदा तुम्हारे साथ हूँ -
तुम्हारी उडान हूँ मैं -
शब्द संचयन बेहद प्रशंशनीय,प्रभावशाली , सही अर्थो में हृदय को आंदोलित करती कविता , बधाई