रह भी गई जो आखिरी बात
सूरज को निकलने से कौन रोक सकता है !
आखिरी बात अभी कही नहीं है
आखिरी बात अभी कही नहीं है
सुमन सिन्हा
पर कहनी है
कहूँगा किसी रोज़
तब तक मिलाता हूँ आँख
हवा के शैतान झोंके से
....
मैंने जाना है शैशव से आज तक
सबको कुछ न कुछ पाना है
मैंने भी चाह लिया कुछ
बस जीने के लिए
अपने बुद्ध न हो पाने के एवज में !
...
वक़्त रहते
मैं माफ़ कर देना चाहता हूँ
उन तमाम उलझी बातों को
जिन्होंने मुझे सुकून से सोने नहीं दिया
ऐसा करके आखिरकार उबर ही जाऊंगा
उन तमाम ख्वाहिशों से
जो अनदेखे अनसुने अनकहे रहे
....
मैं आज भी चलना चाहता हूँ
सच्चे मन से - नीचे देखते हुए
जहाँ से मुझे ऊपर उठने के मंत्र मिले
...
चीख जो दबी रही मेरे अन्दर
उसने हमेशा दहकते सूरज से ही होड़ ली है
वरना अपनी बेचैनियों को यूँ दबाके रखना
मुमकिन नहीं था !
....
मैं तन्हा हूँ , नहीं भी हूँ
मेरे बेख्वाब आँखों में
उतर आते हैं ख्वाब आज भी
मुझे याद है
ये तब भी उतरते थे
जब ख्वाब सिर्फ मेरे थे
पर मुझे खैरात में मिलते थे !
फिर मैंने उन ख़्वाबों की सीढियों पर चढ़ना सीखा
और उन पर खूबसूरत बस्तियां बसायीं
हम यूँ हीं हौले हौले पानी में चलते रहे
और समंदर को अपने संग खींचते गए !
....
हथेली में ख़्वाबों की कमान देने के लिए
मैं रात भर जगा जिनके लिए
वे मुझसे कतराकर निकला करते हैं
क्योंकि उनको मेरे सपनों का खौफ है !
......
आखिरी बात अभी कही नहीं है
पर कहनी है
कहूँगा किसी रोज़
फिलहाल खुद को सूरज महसूस करने के लिए
अपने आस पास पृथ्वी चाहिए !
सुमन सिन्हा
...कहूँगा किसी रोज़
ReplyDeleteफिलहाल खुद को सूरज महसूस करने के लिए
अपने आस पास पृथ्वी चाहिए !
वाह! तलाश-ए-ज़मीं कामयाब होए!आमीन!
वक़्त रहते
ReplyDeleteमैं माफ़ कर देना चाहता हूँ
उन तमाम उलझी बातों को
जिन्होंने मुझे सुकून से सोने नहीं दिया
ऐसा करके आखिरकार उबर ही जाऊंगा
उन तमाम ख्वाहिशों से
जो अनदेखे अनसुने अनकहे रहे..
यह पंक्तियाँ ..जैसे मेरे मन के भावों को शब्द दे दिए हों ...सारी रचनाएँ बहुत अच्छी लगीं ...खुद के करीब सी ...आभार
आखिरी बात अभी कही नहीं है
ReplyDeleteपर कहनी है
कहूँगा किसी रोज़
फिलहाल खुद को सूरज महसूस करने के लिए
अपने आस पास पृथ्वी चाहिए !
in panktiyun me sab kuch aa gaya,
badhai swikare!
आखिरी बात अभी कही नहीं है
ReplyDeleteपर कहनी है
कहूँगा किसी रोज़
फिलहाल खुद को सूरज महसूस करने के लिए
अपने आस पास पृथ्वी चाहिए !
बहुत संवेदनशील सुन्दर रचना..
रह भी गई जो आखिरी बात
ReplyDeleteसूरज को निकलने से कौन रोक सकता है
बहुत ही सुनदर शब्दों की माला है आप की कलम ....
फिलहाल खुद को सूरज महसूस करने के लिए
ReplyDeleteअपने आस पास पृथ्वी चाहिए !
बहुत खूब !
आखिरी बात अभी कही नहीं है
ReplyDeleteपर कहनी है
कहूँगा किसी रोज़
फिलहाल खुद को सूरज महसूस करने के लिए
अपने आस पास पृथ्वी चाहिए !
अत्यंत संवेदनशील रचना सिन्हा जी को बहुत बधाई. रश्मि जी वटवृक्ष पर चुन कर जो रचनाएँ लाती है वो काबिलेतारीफ होती हैं.
रह भी गई जो आखिरी बात
ReplyDeleteसूरज को निकलने से कौन रोक सकता है !gazab ki line hai......seedhe andar tak pahunch gayee....
मैं आज भी चलना चाहता हूँ
ReplyDeleteसच्चे मन से - नीचे देखते हुए
जहाँ से मुझे ऊपर उठने के मंत्र मिले
behad khoobsurat....
बहुत सुन्दर...
ReplyDeleteआप की वटवृक्ष पर लगाई गयी सभी रचनाएँ बेमिसाल होती हैं|
ReplyDeleteआखिरी बात अभी कही नहीं गयी है
ReplyDeleteकहूँगा किसी रोज ...
फिलहाल खुद को सूरज महसूस करने के लिए
अपने आस पास पृथ्वी चाहिए !
sundar!
Adarniya rashmi ji
ReplyDeletenamskar !
Aapki rachnaon ko pahali bar padha ,sahitya men samvedana ke sath shabd- shilp ka jo lalitya hona chahiye vah
mujhe mila . Ati sundar kathya & samvedana ka pravah .bahut achha .Fallo karna hi pada aapke blog ko. dhanyavad.
फिलहाल खुद को सूरज महसूस करने के लिए
ReplyDeleteअपने आस पास पृथ्वी चाहिए !
बहुत खूब ...बेहतरीन प्रस्तुति के लिये आभार ।
फिलहाल खुद को सूरज महसूस करने के लिए
ReplyDeleteअपने आस पास पृथ्वी चाहिए !
लोग सूरज तो क्या जरा सा आस्मान तक उठे नही कि पृ्थ्वि से नाता ही नही रखते। बहुत अच्छा सन्देश छुपा है इन पँक्तिओं मे। सुमन सिन्हा जी को बधाई।
फिलहाल खुद को सूरज महसूस करने के लिए
ReplyDeleteअपने आस पास पृथ्वी चाहिए ! बहुत खूब ....लाज़वाब
गहन भावों को समेटे बहुत सुन्दर रचना !
ReplyDeleteआखिरी बात अभी कही नहीं है
पर कहनी है
कहूँगा किसी रोज़
फिलहाल खुद को सूरज महसूस करने के लिए
अपने आस पास पृथ्वी चाहिए !
बहुत अर्थपूर्ण पंक्तियाँ हैं ! इतनी सुन्दर प्रस्तुति के लिये बधाई एवं शुभकामनायें !
जीवन का अर्थ या जीवन का भेद या जीवन का सार सब कुछ छुपा है आपकी इस रचना में -
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर कविता है