एक लड़की ... क्या गरीब, क्या अमीर
चंगुल में आ जाये तो कोई फर्क नहीं होता
उसमें और मेमने में ...!!!
रश्मि प्रभा
========================================================================
========================================================================
मेमने की जान
मै देख रहा हूँ
उस घर में इतना
सन्नाटा क्यों है
कल तक जहाँ
गूंजती थी किलकारिया
आसमानी ठहाके
आज सब मौन क्यों है
घर से पहले
वो लड़की निकली
उसमें आज वो
बात नहीं थी
जिसे मैं हर दिन देखता था
फिर निकले उसके पिता
रोज की तरह
बस चाल लडखड़ा रही थी
पैर पड़ रहे थे इधर उधर
फिर निकला
वो लड़का
आज उसमे भी वो दबंगई नहीं दिखी
रह गयी घर में
अकेली माँ
वो नहीं निकली
शाम को
घर में आते कोई नहीं दिखा
शायद देर रात आये होंगे
और जल्दी ही बंद हो गयी बत्ती
कई हफ्ते हो गए
न सुनायी दिए ठहाके
और न ही
फुसफुसाने की ही आवाज
और फिर एक दिन
एक जीप रुकी
पुलिस की थी शायद
घर से फिर भी कोई नहीं निकला
बस जीप में
वो लड़की थी और उसकी अटैची
दरोगा जी और ड्राइवर के बीच में
लाल जोड़े में
दबी बैठी थी
दूसरे दिन
मोहल्ले में सुर्खियाँ थीं
दरोगा को भा गयी थी वो
चौथी बीवी बनाने को
उसने उसके बाप पर
बेटी की कमाई खाने का पाप मढ़ा
भाई पर ड्रग्स माफिया का
और सबसे बचाने को मांगी थी
छोटी सी कीमत
एक मेमने की जान
...
कोई बचा सकता है उस मेमने को ?
कानून ? - कदापि नहीं
क्या आप ?
आपने जाना ही कहाँ
शायद देखकर भी नहीं देखा
कि क्या हुआ उस घर में ?
और मैं
मैं तो जान कर भी
अपने गमले सींचता रहा
बस देखता रहा इधर-उधर
मैंने क्या , किसी ने भी
मुड़कर नहीं देखा
मेमने की निरीह आँखों को
.....
परिचय बस इतना सा है. मैं एक फैनेंसिअल सेक्टर में मैनेजमेंट अधिकारी हूँ, यदा कदा फुरशत में कविताये लिखता हूँ क्योकि कम शब्दों में अधिक बात ही कहना चाहता हूँ और फिर आपाधापी और दबाव के युग में अधिक समय नहीं मिलता. सन १९८२ से लिख रहा हूँ , दैनिक जागरण, सरिता, सुमन सौरभ पत्रिकाओ में छापा भी हूँ. कविताये रुक गयी थे ५-७ सालो तक... अब फिर उधर कदम बढाए हैं ....
मैंने क्या , किसी ने भी
ReplyDeleteमुड़कर नहीं देखा ...
गहन भावों के साथ विचारणीय प्रस्तुति ...।
मैंने क्या , किसी ने भी
ReplyDeleteमुड़कर नहीं देखा
मेमने की निरीह आँखों को
सच मे आज संवेदनायें किस कदर मर चुकी हैं\ गहरे भाव लिये सुन्दर रचना। कुश्वंत जी को बधाई।
बहुत मर्मस्पर्शी रचना ..
ReplyDeleteओह!
ReplyDeletevery very senti....
ReplyDeleteafsos koi kuch nhi kar saka!
aur ek kahani aur kavita ka janm ho gaya!
मन को छू गयी !
ReplyDeleteएक लड़की ... क्या गरीब, क्या अमीर
ReplyDeleteचंगुल में आ जाये तो कोई फर्क नहीं होता
उसमें और मेमने में ...!!!
kitna sahi hai...aur kushvantjee ki kavita bhi gahri chap chorti hai.
रश्मि जी कविता यात्रा की दूसरी शुरुआत में आपका मार्गदर्शन हृदय से आभारी हूँ
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ,
ReplyDeleteकड़वी सच्चाई का सफल चित्रण
बधाई
गहन भावों के साथ विचारणीय प्रस्तुति|धन्यवाद|
ReplyDeleteऐसी घटनाएँ हमारे चारों ओर हमेशा होती रहती है ... और हम इस संस्कृति का दम भरते रहते हैं !
ReplyDelete