=========================================
एक थी अच्छाई और एक थी बुराई
=========================================
आओ बच्चों
रश्मि प्रभा
आज तुम्हें एक कहानी सुनाऊं
अच्छाई और बुराई की कहानी सुनोगे ?
अरे अरे डरो मत
कुछ नहीं सिखाउंगी
बस कहानी सुनाउंगी ....
बहुत समय की बात है ,
एक थी अच्छाई और एक थी बुराई (होने को तो आज भी हैं )
दोनों अपने अपने घर में रहते थे
अपनी खिड़की से अच्छाई बुराई को देख
मीठी सी मुस्कान देती
बुराई धड़ाम से अपनी खिड़की बन्द कर देती
अच्छाई मीठे बोल बोलती
बुराई बुरे बोल बोलती ...
एक दिन भगवान् दोनों के घर आए
अच्छाई ने उनके चरण पखारे
जो कुछ उसके पास था
खाने को दिया
सोने के लिए चटाई दी
और पंखा झलती रही ....
भगवान् ने पूछा ,
सामने कौन रहती है ?
अच्छाई ने कहा - मेरी बहन
भगवान् ने पूछा - नाम क्या है ?
अच्छाई कुछ देर चुप रही , फिर कहा - अच्छाई !
भगवान् मुस्काए , उसके सर पर हाथ रखा और चले गए ...
बुराई ने घर आते भगवान् को रोका
किस हक़ से आ रहे हो ? कौन हो तुम?
मैं भगवान् ....
बुराई ने कहा ,
अपना ये तमाशा उस अच्छाई पर दिखाना
भगवान् ने कहा ,
वह तो तुम्हारी बहन है न ?
बुराई ने तमककर कहा ...
उसे झूठ बोलने की आदत है
खुद को अच्छा दिखाने के लिए सारे नाटक करती है
भगवान् ने कहा =
कुछ खाने को दोगी ?
बुराई ने कहा -
ना मेरे पास वक़्त है, न देने को खाना
और भगवान् को निकल जाने को कहा
भगवान् मुस्काए और बिना कुछ कहे चले गए
.................
कैलाश जाकर भगवान् ने पार्वती से कहा -
अच्छाई बुराई को ढंकने की कितनी भी कोशिश करेगी
बुराई उसे हटा देगी
और सारे इलज़ाम अच्छाई को देगी ....
...............
बच्चों मुझे कुछ सिखाना नहीं
बस बताना है कि
'अच्छाई से बुराई को छुपाया नहीं जा सकता
और बुराई अच्छाई को कभी अच्छा नहीं कह सकती '
अब आगे जानो तुम
हम होते हैं गुम ......
रश्मि प्रभा
'अच्छाई से बुराई को छुपाया नहीं जा सकता
ReplyDeleteऔर बुराई अच्छाई को कभी अच्छा नहीं कह सकती '... यह एक जीवंत सच है, इस प्रेरक संदेश के लिये बहुत-बहुत आभार ।
Gehri Soch deta ek bodhpaath ....!ILu..!
ReplyDelete'अच्छाई से बुराई को छुपाया नहीं जा सकता
ReplyDeleteऔर बुराई अच्छाई को कभी अच्छा नहीं कह सकती '
अब आगे जानो तुम
हम होते हैं गुम ......
सही बात है ...अच्छाई लाख चाहे बुराई ढक जाये लेकिन वो अपने आप उजागर हो जाती है ...अच्छी सीख देती रचना
बिलकुल सही बात...अच्छाई को बुराई से अच्छा कहलाने की चाह भी नहीं रखनी चाहिए.....बस अच्छाई और सच्चाई के राह पर चलते चले जाना चाहिये.....
ReplyDeleteaap apni har rachna se koi na koi sikh hi deti hai...
ReplyDeleteबेहतरीन कहानी और उससे भी अच्छी कविता ... !
ReplyDeleteकविता या कहानी या साहित्य की कोई भी विधा हो, यथार्थ और समष्टि सन्देश न दे तो निरर्थक हो जाता है सृजन.. क्योंकि सृजनकार समूचे समाज का आईना होता है.. वो पैमाना होता है जो क्या है और क्या होना चाहिए, इसे मथ कर इनके बीच का अंतर, जो धार्य है, नवनीत की तरह निकाल कर रख देता है...
ReplyDeleteदीदी आपकी लेखनी में भी ऐसे ही भाव चेतना की सतह फोड़ कर आत्मचिंतन और मनन को पुनर्स्थापित करने की क्षमता से परिपूर्ण होते हैं..अब कौन कितना लेता है, ये ग्राही पर निर्भर करता है..
बेहद ही अच्छी लगी आपकी ये रचना जो अपने में समाये है एक चिन्तनपरक और शिक्षाप्रद कहानी. साधुवाद. नमन !
बहुत ही रोचक कविता-
ReplyDeleteबहुत सुन्दरता से कही मन की बात -
मन तरो-ताज़ा हो गया
सुन्दर.
ReplyDelete'अच्छाई से बुराई को छुपाया नहीं जा सकता
ReplyDeleteऔर बुराई अच्छाई को कभी अच्छा नहीं कह सकती '
....बहुत रोचक और प्रेरक रचना....
बहुत अच्छी तथ्य परक कविता |
ReplyDeleteबधाई
आशा
achchhai burai ko dhak nahi sakti lekin apni sahnsheelata se burai ko kam burai me jaroor badal sakti hai....badiya prastuti....
ReplyDeleteअच्छाई-बुराई के मध्य रेखा खींचती हुई कहानी बच्चों को नेकी का रास्ता दिखाती है ।
ReplyDeleteसुधा भार्गव
बुराई अच्छाई को कभी अच्छा नहीं कह सकती
ReplyDeleteऔर अच्छाई चुप रह नहीं सकती
जीवंत प्रस्तुति है, माननीया!!
Nice post .
ReplyDeleteश्रद्धा के पात्रों को अपने काल्पनिक कथानकों का पात्र न बनायें Honourable Personalities
अच्छाई से बुराई को छिपाया नहीं जा सकता। बड़ा दार्शनिक मंत्र दे दिया।
ReplyDeleteप्रेरक रचना केलिए आपको बधाई.
ReplyDelete