माँ को वृद्धाश्रम में रख तू कितना न्यायी है बेटा
माली ही बदमाश है , तू तो सर का ताज है , क्योंकि पगली माँ को विश्वास है कि तू आएगा

रश्मि प्रभा





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माँ !


  • My Photoमाँ!
    क्या कल भी निहार रही थी
    तुम मेरी राह,
    क्या कल भी रोई थी तुम
    आश्रम की चारदीवारी से लग कर
    फूट-फूट... जार जार!!
    क्या कल भी तेरे हाथ मे था
    तेरे चावल के चार दानों का प्रसाद
    मेरे लिए??जिसे तू
    पिछले आठ सालों से मुझे न दे पायी !
    कल भी
    तेरे बृद्धा आश्रम के माली ने तुझे डांटा
    झिझोरा तुम्हे
    और घसीट कर तेरे कमरे मे डाल दिया??
    माँ!
    मैं आज भी नहीं आऊंगा
    व्यस्त हूँ
    "
    माँ" शब्द पर व्याख्यान देने जाना है आज!!
    जाहिल हैं माँ, तेरा माली
    उसको नहीं पता
    आज "ममता की देवी का दिन" है !!


    () अमित आनंद
    http://amitanand9616115354.blogspot.com

17 comments:

  1. आज के बच्चों के पास वक्त कहाँ ? व्याख्यान दे सकते हैं पर वक्त नहीं ..मार्मिक प्रस्तुति

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  2. एक माँ को २ बेटे थे..८ दिन में रोज एक के घर खाना खाने जाने का क्रम बनाया था पर इतवार को माँ भूखी रहेती थी क्योकि कोई बेटा एक दिन ज्यादा खिलाना नहीं चाहता था..और फिर भी लोग बेटे के लिये आज भी मानता रखते है.. मुझे तो ऐसे बेटो से ज्यादा माँ पे गुस्सा आता है की क्यों वो इतना बेटे का चला ही लेती है..मै एक वृध्धाश्रम में गई थी वहा एक माँ बहोत सारे रोगों से तड़प रही थी हमें पास में बुलाकर कहा की मेरा बेटा और बहु मुंबई की बहोत बड़ी अस्पताल में डॉ. है..क्या कहे वो ही समाज नहीं आया था हमें..

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  3. कितना बदनसीब है वो बेटा जिसको माँ को सेवा करने का मौका न मिल रहा हो या जिसने ऐसा मौका खुद गंवाया हो ...

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  4. एक बेहद संवेदलशील रचना के लिए अमित जी को बढ़ाई, रश्मी जी आप को एक बेहद उम्दा रचना प्रस्तुत करने के लिए साधुवाद

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  5. bahut samvedansheel rachana hai..jeevan ki kadavi sachchai...jise bahut saral shabdon me bayan kiya hai aapne...जाहिल हैं माँ, तेरा माली
    उसको नहीं पता
    आज "ममता की देवी का दिन" है !!dil ko chhoo gaya...

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  6. बहुत खूब लिखा है आपने.
    बेहद संवेदनशील.

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  7. बहुत खूब लिखा है आपने.
    बेहद संवेदनशील.

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  8. Nice post.
    http://pyarimaan.blogspot.com/2011/03/mother-urdu-poetry-part-2.html

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  9. एक कठोर वास्तविकता ...

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  10. ek ye bhi sachhai he jindgi ki, kitni kadvi,...

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  11. एक सच है यह भी ...बहुत ही भावमय प्रस्‍तुति ।

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  12. बेहद मर्मस्पर्शी रचना, बधाई अमित.

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  13. bahut accha likha hai...bat sirf jeevan mein utarne ki hai....

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