माँ को वृद्धाश्रम में रख तू कितना न्यायी है बेटा
माली ही बदमाश है , तू तो सर का ताज है , क्योंकि पगली माँ को विश्वास है कि तू आएगा
रश्मि प्रभा
====================================
माँ !
- फूट-फूट... जार जार!!
क्या कल भी तेरे हाथ मे था
तेरे चावल के चार दानों का प्रसाद
मेरे लिए??जिसे तू
पिछले आठ सालों से मुझे न दे पायी !
कल भी
तेरे बृद्धा आश्रम के माली ने तुझे डांटा
झिझोरा तुम्हे
और घसीट कर तेरे कमरे मे डाल दिया??
माँ!
मैं आज भी नहीं आऊंगा
व्यस्त हूँ
"माँ" शब्द पर व्याख्यान देने जाना है आज!!
जाहिल हैं माँ, तेरा माली
उसको नहीं पता
आज "ममता की देवी का दिन" है !!
() अमित आनंद
http://amitanand9616115354.blogspot.com
सही लिखा है आपने
ReplyDeleteक्या आपने अपने ब्लॉग में "LinkWithin" विजेट लगाया ?
आज के बच्चों के पास वक्त कहाँ ? व्याख्यान दे सकते हैं पर वक्त नहीं ..मार्मिक प्रस्तुति
ReplyDeleteएक माँ को २ बेटे थे..८ दिन में रोज एक के घर खाना खाने जाने का क्रम बनाया था पर इतवार को माँ भूखी रहेती थी क्योकि कोई बेटा एक दिन ज्यादा खिलाना नहीं चाहता था..और फिर भी लोग बेटे के लिये आज भी मानता रखते है.. मुझे तो ऐसे बेटो से ज्यादा माँ पे गुस्सा आता है की क्यों वो इतना बेटे का चला ही लेती है..मै एक वृध्धाश्रम में गई थी वहा एक माँ बहोत सारे रोगों से तड़प रही थी हमें पास में बुलाकर कहा की मेरा बेटा और बहु मुंबई की बहोत बड़ी अस्पताल में डॉ. है..क्या कहे वो ही समाज नहीं आया था हमें..
ReplyDeletesorry 7 din me..
ReplyDeleteकितना बदनसीब है वो बेटा जिसको माँ को सेवा करने का मौका न मिल रहा हो या जिसने ऐसा मौका खुद गंवाया हो ...
ReplyDeleteएक बेहद संवेदलशील रचना के लिए अमित जी को बढ़ाई, रश्मी जी आप को एक बेहद उम्दा रचना प्रस्तुत करने के लिए साधुवाद
ReplyDeletebahut samvedansheel rachana hai..jeevan ki kadavi sachchai...jise bahut saral shabdon me bayan kiya hai aapne...जाहिल हैं माँ, तेरा माली
ReplyDeleteउसको नहीं पता
आज "ममता की देवी का दिन" है !!dil ko chhoo gaya...
bahut khoob...
ReplyDeleteबहुत खूब लिखा है आपने.
ReplyDeleteबेहद संवेदनशील.
बहुत खूब लिखा है आपने.
ReplyDeleteबेहद संवेदनशील.
Nice post.
ReplyDeletehttp://pyarimaan.blogspot.com/2011/03/mother-urdu-poetry-part-2.html
एक कठोर वास्तविकता ...
ReplyDeleteamit ki anmol rachna.........:)
ReplyDeleteek ye bhi sachhai he jindgi ki, kitni kadvi,...
ReplyDeleteएक सच है यह भी ...बहुत ही भावमय प्रस्तुति ।
ReplyDeleteबेहद मर्मस्पर्शी रचना, बधाई अमित.
ReplyDeletebahut accha likha hai...bat sirf jeevan mein utarne ki hai....
ReplyDelete