नाव चलाती हूँ गीतों की लय पर,
गीत की धुन पर सितारे चमकते हैं,
परियां मेरी नाव में रात गुजारती हैं...
रश्मि प्रभा
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नज़्म: मेरी रूह लौटाकर जाना
तू मेरे जिस्म में रहती है अजनबी बनकर,
जो एक रोज़ हम दोनों ने रूह बदली थी,
अब जो आओ तो मेरी रूह लौटाकर जाना,
कुछ नज्में यहाँ बिखरीं हैं मेरे कमरे में
पैर पड़ता है तो अक्सर ही कराह उठती हैं,
तेरे जैसीं है कि अश्कों को छुपाती ही नहीं.
इन दराजों में कुछ बोसे पड़े हुए हैं मगर
आज देखा ज़रा तो चांदी के निकले सारे,
जिनपे पानी कभी सोने का चढ़ा रहता था.
आज झटका जो इस बिस्तर पे पड़ी चादर को,
खनखना के कुछ सपने बिखर गए हैं यहाँ
एक गुल्लक कभी आँखों की मैंने तोडी थी.
सोज़ दुनिया में मोहब्बत की मैं ठहरा मुफलिस
लेके चलता हूँ बेवफाई के कुछ खोटे सिक्के
जो हकीक़त के बाजारों में खूब चलते हैं.
अबकी आओ तो यह सामान उठा ले जाना
चंद खुशियों केलिए बेच न डालूं इनको,
तकाजा करते हैं अब खैरियत रखने वाले,
हाँ तू दुश्मन नहीं, तू कोई आशना भी नहीं,
हाँ तू बरकत नहीं और अब तो तू आफत भी नहीं,
हाँ तू चाहत नहीं और कोई ज़रूरत भी नहीं.
फिर क्यूँ मैं तुझे साथ लिए फिरता हूँ,
कितने नादान थे हम, रूहें बदल डाली थीं,
अब जो आओ तो मेरी रूह लौटाकर जाना.
...........
गौरव 'लम्स'
तू मेरे जिस्म में रहती है अजनबी बनकर,
जो एक रोज़ हम दोनों ने रूह बदली थी,
अब जो आओ तो मेरी रूह लौटाकर जाना,
कुछ नज्में यहाँ बिखरीं हैं मेरे कमरे में
पैर पड़ता है तो अक्सर ही कराह उठती हैं,
तेरे जैसीं है कि अश्कों को छुपाती ही नहीं.
इन दराजों में कुछ बोसे पड़े हुए हैं मगर
आज देखा ज़रा तो चांदी के निकले सारे,
जिनपे पानी कभी सोने का चढ़ा रहता था.
आज झटका जो इस बिस्तर पे पड़ी चादर को,
खनखना के कुछ सपने बिखर गए हैं यहाँ
एक गुल्लक कभी आँखों की मैंने तोडी थी.
सोज़ दुनिया में मोहब्बत की मैं ठहरा मुफलिस
लेके चलता हूँ बेवफाई के कुछ खोटे सिक्के
जो हकीक़त के बाजारों में खूब चलते हैं.
अबकी आओ तो यह सामान उठा ले जाना
चंद खुशियों केलिए बेच न डालूं इनको,
तकाजा करते हैं अब खैरियत रखने वाले,
हाँ तू दुश्मन नहीं, तू कोई आशना भी नहीं,
हाँ तू बरकत नहीं और अब तो तू आफत भी नहीं,
हाँ तू चाहत नहीं और कोई ज़रूरत भी नहीं.
फिर क्यूँ मैं तुझे साथ लिए फिरता हूँ,
कितने नादान थे हम, रूहें बदल डाली थीं,
अब जो आओ तो मेरी रूह लौटाकर जाना.
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गौरव 'लम्स'
मेरा परिचय:
नाम: गौरव शर्मा
काम: टेक्नीकल ऑफिसर -- आई टी
धाम: आगरा में
आराम: लिखने से मिलता है, पढने से मिलता है और इसके इलावा फिल्में देखना भी बहुत पसंद है |
विश्राम: http://merakuchsamaan.blogspot.com/
नाम: गौरव शर्मा
काम: टेक्नीकल ऑफिसर -- आई टी
धाम: आगरा में
आराम: लिखने से मिलता है, पढने से मिलता है और इसके इलावा फिल्में देखना भी बहुत पसंद है |
विश्राम: http://merakuchsamaan.
awesome...
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर ।
ReplyDeleteसुन्दर ,बहुत सुन्दर बधाई !
ReplyDeleteमेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पड़ा है , कुछ ऐसा ही अंदाज़ है इस नज़्म का भी !
ReplyDeletewah.bar-bar padhne ke layak.ekdam bemisaal...
ReplyDeletekuchh bhi alutaa kar jaanaa ...........badaa mushkil hotaa hai.....kyunki jo ek baar gayaa uskaa laut ke aanaa hi tay nahn........behad khoobsoorat likha hai,aapne ..........saadhuvaad
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