आज भी राह बनाने की धुन है
ऊँचे रास्ते फिसलन भरे अभी भी हैं
गिरती हूँ , चढ़ती हूँ
साँसें उखड़ने लगी हैं
पर आकाश मेरी मुट्ठी में होगा
यह विश्वास स्थिर है ...
ये जो फफोले दिखते हैं
वह मेरी उर्जा है
यूँ कहो मेरे अपने पदचिन्ह हैं
जो मुझे प्रेरित करते हैं
गंतव्य तक पहुँचने को ....
दोराहे पर मुश्किलें आती हैं
पर फफोले सत्य का रहस्योद्घाटन करते हैं
'निर्भरता राह नहीं खोलती
पांवों से रिसते निशान ही प्राप्य का स्रोत होते हैं '
और तब
कोई उलझन नहीं होती
मंथन नहीं होता
एक बार टूटा क्रम
फिर से जोड़ने का मात्र भ्रम होता है !
रास्ते अपने हों
तभी भरोसा है
रास्ते अपने हों
ReplyDeleteतभी भरोसा है
वरना गुम होते देर नहीं लगती !
चंद लफ़्ज़ो मे ज़िन्दगी का सार समझा दिया।
यूँ कहो मेरे अपने पदचिन्ह हैं
ReplyDeleteजो मुझे प्रेरित करते हैं
गंतव्य तक पहुँचने को ..
खुद पर भरोसा ही सच्चा होता है
एक बार टूटा क्रम
फिर से जोड़ने का मात्र भ्रम होता है !
लोग सत्य जानते हैं ..फिर भी भ्रम में जीते हैं ..
बहुत सुन्दर रचना
'निर्भरता राह नहीं खोलती
ReplyDeleteपांवों से रिसते निशान ही प्राप्य का स्रोत होते हैं '
और तब
कोई उलझन नहीं होती
मंथन नहीं होता
एक बार टूटा क्रम
फिर से जोड़ने का मात्र भ्रम होता है !
रास्ते अपने हों
तभी भरोसा है
वरना गुम होते देर नहीं लगती !बहुत ही सुंदर-
प्रेरणा से भरी -
आत्मविश्वास से भरी -
गूँज है आपकी रचना -
शब्द जैसे मन में बस कर रह गए हैं ...!!
बहुत सुंदर
ReplyDeleteये जो फफोले दिखते हैं
ReplyDeleteवह मेरी उर्जा है
यूँ कहो मेरे अपने पदचिन्ह हैं
जो मुझे प्रेरित करते हैं
गंतव्य तक पहुँचने को
bahut prerna daayi rachna Diii...! :)
कठिनाईयों के बीच आत्मविश्वास को प्रेरित करती पंक्तियां!!
ReplyDeleteविश्वासों पर आस्था को बाध्य करती सी !!
'निर्भरता राह नहीं खोलती
ReplyDeleteपांवों से रिसते निशान ही प्राप्य का स्रोत होते हैं '
वाह, बहुत खूब ! ये आत्मविश्वास हो तो कोई राह कठिन नहीं है !
ऊँचे रास्ते फिसलन भरे अभी भी हैं
ReplyDeleteगिरती हूँ , चढ़ती हूँ
साँसें उखड़ने लगी हैं
पर आकाश मेरी मुट्ठी में होगा
यह विश्वास स्थिर है ...
ये जो फफोले दिखते हैं
वह मेरी उर्जा है
यूँ कहो मेरे अपने पदचिन्ह हैं
जो मुझे प्रेरित करते हैं
गंतव्य तक पहुँचने को ....
इस दीप शिखा से प्रेरणा पुंज बनकर छिटक रही हैं वो किरणे जिनमें साँस दर साँस जीवन को आलोकित करने का अदम्य साहस और क्षमता दोनों ही हैं !
आभार,रश्मि जी!
bahut sunder...
ReplyDeleteरास्ते अपने हों
ReplyDeleteतभी भरोसा है
वरना गुम होते देर नहीं लगती !
haan yahi ekdam sahi lagta hai.
ऊँचे फिसलन भरे रास्ते हैं , मगर आकाश मुट्ठी में होगा ...
ReplyDeleteरास्ते अपने हो तभी भरोसा है ...
इन कविताओं की ऊर्जा जाने कितने लोगों का भरोसा और आत्मविश्वास बनी है .. !
ek saargarbhit rachna keliye bahut badhai.
ReplyDeleteरास्ते अपने हों
ReplyDeleteतभी भरोसा है
वरना गुम होते देर नहीं लगती !
प्रेरणादायक पँक्तियाँ। तस्वीर बहुत सुन्दर लगी। आभार।
रास्ते अपने हों
ReplyDeleteतभी भरोसा है
वरना गुम होते देर नहीं लगती !
वाह!सच में!
आखिरी पंक्तियाँ बहुत ही खूब हैं...
ReplyDeleteइतनी प्रेरणा... इतनी समझाईश...
बहुत-बहुत धन्यवाद बड़ी माँ...
रास्ते अपने हों
ReplyDeleteतभी भरोसा है
वरना गुम होते देर नहीं लगती !
बहुत ही गहरी बात ...।
'पर आकाश मेरी मुट्ठी में होगा
ReplyDeleteयह विश्वास स्थिर है ...
ये जो फफोले दिखते हैं
वह मेरी उर्जा है'
- इस ऊर्जस्वित औऱ प्रेरणामयी कविता को उसकी रचयित्री के साथ ही मेरा नमन !
खूबसूरत तस्वीर और काफ़ी संदेश परक कविता, बहुत बहुत बधाई रश्मि जी|
ReplyDeleteरास्ते अपने हों
ReplyDeleteतभी भरोसा है
वरना गुम होते देर नहीं लगती !
गहन जीवन दर्शन...बहुत सुन्दर और सार्थक रचना...