जैसे पहाड़ों से जमे बर्फ पिघलें
उसी तरह मेरे अनुभव दरकते हैं
जब तक तुम्हें हम याद आयेंगे
नए बर्फ गिरने लगेंगे .............

रश्मि प्रभा



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बचपन


नन्हें कदम मेरे थे
एक एक बचपन मेरा था
अच्छा लगता था
उन गोलमोल चेहरों से हारना
उनकी तोतली फरमाइशें पूरी करना
....
खुद को समझदार दिखाते हुए
जब वे करते थे बड़ी बड़ी बातें
उनके बीच बुद्धू बनकर हँसना
३६५ दिन के बराबर लगता था
....
उनकी आँखों से जो आकाश झांकता था
उसमें चाँद सितारे सूरज रखना
सबसे बड़ी उपलब्धि लगती
दुनिया अपनी लगती
अच्छा लगता था दुनिया की सैर करना
आँखों का आश्चर्य से बड़ा होते देखना
...
नहीं अच्छा लगता अब
उनकी नासमझ समझदारी में
घोंसले को टूटते देखना
आकाश को पाने से पहले
सूरज को खोते देखना
इस तरह से फिर
एक बार अपना बचपन खोते देखना !!!


सुमन सिन्हा

11 comments:

  1. बचपन की मीठी यादें बस यादें ही बन कर रह जाती हैं ...सुन्दर रचना

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  2. काश बचपन को भी यादों की तरह समेटा जा सकता... बहुत ही सुन्दर रचना...

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  3. उनकी आँखों से जो आकाश झांकता था
    उसमें चाँद सितारे सूरज रखना
    सबसे बड़ी उपलब्धि लगती
    दुनिया अपनी लगती
    अच्छा लगता था दुनिया की सैर करना
    आँखों का आश्चर्य से बड़ा होते देखना
    सुमन जी ने बचपन को हमारे सामने लाकर खड़ा कर दिया !
    आद. रश्मि जी,इस भाव पूर्ण कविता को पाठकों तक पहुंचाने के लिए आपका आभार !

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  4. उनकी आँखों से जो आकाश झांकता था
    उसमें चाँद सितारे सूरज रखना
    सबसे बड़ी उपलब्धि लगती
    दुनिया अपनी लगती
    अच्छा लगता था दुनिया की सैर करना
    आँखों का आश्चर्य से बड़ा होते देखना

    बचपन की इस दुनिया को भूलना मुमकिन नहीं है ...यह हमेशा साथ रहती है ...।।

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  5. Yaade bas Yaade...Yaad aati hai, KAbhi Rulati to KAbhi HAsati hai...!

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  6. नन्हें कदम मेरे थे
    एक एक बचपन मेरा था
    अच्छा लगता था
    उन गोलमोल चेहरों से हारना
    उनकी तोतली फरमाइशें पूरी करना
    ....
    बहुत कोमल अहसास..बचपन की यादों को कहाँ भुलाया जा सकता है..बहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति..

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  7. जैसे पहाड़ों से जमे बर्फ पिघलें
    उसी तरह मेरे अनुभव दरकते हैं
    जब तक तुम्हें हम याद आयेंगे
    नए बर्फ गिरने लगेंगे .............bahut sunder pangtiyan hain.

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  8. नन्हें कदम मेरे थे
    एक एक बचपन मेरा था
    अच्छा लगता था
    bahut achcha likhe hain.

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  9. बड़ों की नासमझ समझदारी से कही बेहतर है बच्चों की समझदारी वाली नासमझी !

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  10. बचपन तो समय के साथ गुजर ही जाता है लेकिन मष्तिष्क में अंकित स्मृतियाँ कभी कभी मुखरित होकर ऐसी रचना रच जाती हैं.
    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति.

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