आज सुबह अचानक किताबों के पन्ने पलटते हुए मेरी निगाह अपने एक ऐसे मित्र की रचनाओं पर पडी, जिसे पढ़ते हुए मैं खो गया पुरानी स्मृतियों में । मेरे ये बुजुर्ग मित्र नवगीत के स्थापित हस्ताक्षर हैं । नाम है हृदयेश्वर । सीतामढ़ी में साथ-साथ रहते हुए 1991 से 1994 तक मुझे इनके सान्निध्य का सुख प्राप्त हुआ। फिर एक दिन अचानक इनका स्थानान्तरण हाजीपुर हो गया और उसके कुछ महीनों बाद मैं भी वाराणसी आ गया । फिर उनसे मुलाक़ात नहीं हुयी । ‘आँगन के ईच-बीच’, ‘बस्ते में भूगोल’ व ‘धाह देती धूप’ (गीत संग्रह) तथा ‘मुंडेर पर सूरज’ (काव्य संग्रह) इनकी प्रकाशित कृतियाँ है । बिहार सरकार के प्रतिष्ठित राजभाषा सम्मान से ये सम्मानित भी हो चुके हैं । आज मैं उनका एक गीत प्रस्तुत कर रहा हूँ जो मुझे बहुत पसंद है : रवीन्द्र प्रभात
=======================================================तुम न होगी तो....
मैं सुबह के चाँद का एहसास लेकर क्या करूंगा ।
तुम न होगी तो वहां आकाश लेकर क्या करूंगा । ।
हो तरल कुछ तो
जिसे मन-प्राण-कंठों में उतारें
धुप की संवेदना
जल की मछलियों को दुलारे
यह नहीं तो उस तरफ संन्यास लेकर क्या करूंगा ।
तुम न होगी तो वहां आकाश लेकर क्या करूंगा । ।
एक गोकुल प्राण में हो
एक गोकुल प्राण ऊपर
मन कहीं पर रह गया हो
पोर भर का स्पर्श होकर
दिक् तुम्हारा, मैं उधर कम्पास लेकर क्या करूंगा ।
तुम न होगी तो वहां आकाश लेकर क्या करूंगा । ।
जो न लिखना तो
कहे क्या ख़ाक गूंगी व्यंजनाएँ
सात रंगों में ढली
उनचास पवनों की व्यथाएँ
गर बेमौसम तो वहां बसंताभास् लेकर क्या करूंगा ।
तुम न होगी तो वहां आकाश लेकर क्या करूंगा । ।
हृदयेश्वर
‘गीतायन‘, प्रेमनगर, रामभद्र (रामचौरा), हाजीपुर-844101, वैशाली
जो न लिखना तो
ReplyDeleteकहे क्या ख़ाक गूंगी व्यंजनाएँ
सात रंगों में ढली
उनचास पवनों की व्यथाएँ
बहुत ही गहन भाव संयोजन लिए उत्कृष्ट प्रस्तुति के लिए आपका आभार ।
ह्रदयस्पर्शी रचना....
ReplyDeleteमैं सुबह के चाँद का एहसास लेकर क्या करूंगा ।
ReplyDeleteतुम न होगी तो वहां आकाश लेकर क्या करूंगा । ।
वाह!!!!!!!!!
बहुत सुंदर रचना........
सांझा करने का शुक्रिया रवीन्द्र जी.
सादर.
आपकी पसंद भला किसे पसंद नहीं आएगी, हृदयेशवर जी की ये रचना वाकई कथ्य और विंब का अनोखा मिश्रण है ।
ReplyDeleteदिक् तुम्हारा, मैं उधर कम्पास लेकर क्या करूंगा ।
ReplyDeleteअद्भुत श्रृंगार अभिव्यक्ति! इतना अच्छा पढना ही कितना आनंद देता है!!
तुम न होगी तो....
ReplyDeleteमैं सुबह के चाँद का एहसास लेकर क्या करूंगा ।
तुम न होगी तो वहां आकाश लेकर क्या करूंगा । ।
vaah bahut hi sundar apratim rachna.padhvaane ke liye aabhar.
bhaut hi khubsurat rachna....
ReplyDeleteशेयर करने के लिए धन्यवाद...
ReplyDeleteजो न लिखना तो
ReplyDeleteकहे क्या ख़ाक गूंगी व्यंजनाएँ
दिक् तुम्हारा, मैं उधर कम्पास लेकर क्या करूंगा ।
अनूठा काव्य!
सौंदर्य की अनुपम छटा देखने को मिली है इस उत्कृष्ट गीत मे, बहुत-बहुत आभार आपका शेयर करने के लिए ।
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत गीत.. बच्चन जी की याद दिला गया
ReplyDeleteयह नहीं तो उस तरफ संन्यास लेकर क्या करूंगा ।
ReplyDeleteतुम न होगी तो वहां आकाश लेकर क्या करूंगा । । good
बहुत सुंदर पंक्तियाँ..मैं सुबह के चाँद का एहसास लेकर क्या करूंगा ।तुम न होगी तो वहाँ आकाश लेकर क्या करूँगा...आभार इसे पढ़वाने के लिये
ReplyDeletebhavbhini kavita bdhai .
ReplyDeleteमन को गहराई तक छू लेने वाली कविता ......
ReplyDeleteकल 01/05/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल (विभा रानी श्रीवास्तव जी की प्रस्तुति में) पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
बहुत ही सुन्दर हृदयस्पर्शी रचना....
ReplyDeleteबहुत खूसूरत रचना .... आभार
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर गहन भाव अभिव्यक्ति
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