कुर्सी पर बैठकर
वातानुकूलित कमरे में
भाषण देना आसान है
सड़कों की धूल फांको
फिर चिलचिलाती धूप में पानी को व्यर्थ बहते देखो
रश्मि प्रभा
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लबादा
लबादा ओढ़ कर जीते हुए
सबकुछ हरा हरा दिखता है
बिल्कुल
सावन में अंधें हुए
गदहे की तरह।
लबादे को टांग कर अलगनी पर
जब निकलोगे बनकर
आमआदमी
तब मिलेगी जिंदगी
कहीं स्याह
कहीं सफेद
कहीं लाल
और कहीं कहीं
बेरंग
अरूण साथी
बहुत बढ़िया..
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति ।
ReplyDeleteसच्चाई है! पर कितने नेता ऐसा सोचते भी हैं?
ReplyDeleteबहुत सुंदर.............
ReplyDeleteसच है आँखों के आगे होता कुछ गलत कैसे स्वीकार किया जाये.....
सादर.
बहुत सुन्दर रचना!....आभार!
ReplyDeleteबहुत प्यारी रचना.
ReplyDeleteसत्य कह दिया।
ReplyDeleteआम आदमी बनकर ही जिंदगी के विभिन्न रंगों से परिचय होता है !
ReplyDeleteसत्य वचन !
ज़िंदगी से मिलने के लिए वाक़ई हौसला चाहिए।
ReplyDeletesanjidgi liye sundar rachna..
ReplyDeleteबहुत सीधे-सादे शब्दों में आईना दिखाती रचना .... !!
ReplyDeletekhubsurat rachna.........
ReplyDeleteफिर चिलचिलाती धूप में पानी को व्यर्थ बहते देखो
ReplyDeleteभाषण देने की बजाये खुद बन्द कर दोगे नल sahi kaha ...
यकीनन
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteकोई ऐसा शहर बनाओ यारों,
हर तरफ़ आईने लगाओ यारों!
जिंदगी की हकीकत यही है।
ReplyDeleteBahut yatharth liya .. Sach ke Kareeb ...
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