आज फिर सुबह
चाय के साथ अखबार पढ़ रही थी ,
उफ्फ्फ फिर वही खबर
एक औरत की अस्मत लुटी गयी.....
फिर उसके पुरे एहसास को
कुचल दिया गया ,
चंद लोग अपनी वेह्शत
को अंजाम देने के लिए
न जाने कितनी बहनों
के साथ यह घिनोनी
हरकत करते है ......
पढ़ कर मन आक्रोश से भर गया
इतना गुस्सा आया की
पता नहीं क्या कर दू ,
पर फिर लगा यह सब बेकार ,
पढ़ा दुःख हुआ
गुस्सा भी आया ,
पर कुछ दिनों मे
सब भूल जाएंगे ,
फिर ज़िन्दगी वैसे हि चलने लगेगी ,
आज खुद को पहली बार
अपंग महसूस कर रही थी.....
रेवा
आज का कटु सत्य...बहुत मार्मिक प्रस्तुति...
ReplyDeleteसार्थकता लिए हुए सटीक लेखन ।
ReplyDeleteaisaa hee ho rahaa hai...aur ham hai ki kuchh nahee kar paa rahe!...sundar bhaavokti!
ReplyDeleteकटु सत्य है यह .. हम निर्विकार होते जा रहे हैं.
ReplyDeleteबहुत सुंदर, बिल्कुल सत्य
ReplyDeleteये एहसास हर संवेदनशील नागरिक को है...वो खुद को असहाय और अपंग महसूस करता है...
ReplyDeleteघटनाओं का बार- बार दुहराया जाना संवेदनशीलता को कम करता जाता है !
ReplyDeleteसही लिखा है आपने !