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सुना था वो चुपके से दबे पाँव आती है

पर बिन बताए साथ ले जाती है,पता न था।


सुना था शरीर जड़वत जिंदा लाश बन जाता है

आत्मा से शरीर को ये खबर न हो,पता न था।
सुना था सुंदर घना वृक्ष भी पल में सूख जाता है

पर इतनी तेजी से कि महसूस ही न हो,पता न था।

आँखों से नमी चली जाती-पथरा जाती हैं वो सुना था

पथराई पुतलियों में हजारों सवाल जिंदा हों,पता न था।

सब कह तो रहे हैं वो आई संग ले गई अपने़

वक्त से पहले ही ले लेगी वो जाँ,पता न था।









इंदु सिंह 


http://hridyanubhuti.wordpress.com/

9 comments:

  1. सुना था शरीर जड़वत जिंदा लाश बन जाता है
    आत्मा से शरीर को ये खबर न हो,पता न था।
    सुना था सुंदर घना वृक्ष भी पल में सूख जाता है
    पर इतनी तेजी से कि महसूस ही न हो,पता न था।
    गहन भाव लिए ...उत्‍कृष्‍ट प्रस्‍तुति।

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  2. Bhut hi yatharth aur jivan ke satya ko bataati sundar prastuti....

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  3. आँखों से नमी चली जाती-पथरा जाती हैं वो सुना था
    पथराई पुतलियों में हजारों सवाल जिंदा हों,पता न था।

    शरीर जड़वत ,जिंदा लाश की उपमा और दूसरा हो ही नहीं सकता ....

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  4. एक अनोखी रचना!...अनोखे खयालात...आभार!

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  5. आँखों से नमी चली जाती-पथरा जाती हैं वो सुना था
    पथराई पुतलियों में हजारों सवाल जिंदा हों,पता न था।
    गहन भाव

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  6. वाह!!!!!!!!!!!!

    अद्भुत रचना....

    अनु

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  7. ये भी एक सत्य है …………सुन्दर भावाव्यक्ति।

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  8. मौत या मुक्ति कब मिलना है, सचमुच पता ही नहीं चलता, जीवन के अंतिम सत्य तक पहुचकर उसका अनुभव भी नहीं किया जा सकता न ही उसका वर्णन, यह भी एक विडंबना ही है... गहन भाव

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