सुना था वो चुपके से दबे पाँव आती है
पर बिन बताए साथ ले जाती है,पता न था।
सुना था शरीर जड़वत जिंदा लाश बन जाता है
आत्मा से शरीर को ये खबर न हो,पता न था।
सुना था सुंदर
घना वृक्ष भी पल में सूख जाता है
पर इतनी तेजी से कि महसूस ही न हो,पता न था।
पर इतनी तेजी से कि महसूस ही न हो,पता न था।
आँखों से नमी
चली जाती-पथरा जाती हैं वो सुना था
पथराई पुतलियों में हजारों सवाल जिंदा हों,पता न था।
पथराई पुतलियों में हजारों सवाल जिंदा हों,पता न था।
सब कह तो रहे
हैं वो आई संग ले गई अपने़
वक्त से पहले ही ले लेगी वो जाँ,पता न था।
इंदु सिंह
http://hridyanubhuti.wordpress.com/
वक्त से पहले ही ले लेगी वो जाँ,पता न था।
इंदु सिंह
http://hridyanubhuti.wordpress.com/
सुना था शरीर जड़वत जिंदा लाश बन जाता है
ReplyDeleteआत्मा से शरीर को ये खबर न हो,पता न था।
सुना था सुंदर घना वृक्ष भी पल में सूख जाता है
पर इतनी तेजी से कि महसूस ही न हो,पता न था।
गहन भाव लिए ...उत्कृष्ट प्रस्तुति।
Bhut hi yatharth aur jivan ke satya ko bataati sundar prastuti....
ReplyDeleteआँखों से नमी चली जाती-पथरा जाती हैं वो सुना था
ReplyDeleteपथराई पुतलियों में हजारों सवाल जिंदा हों,पता न था।
शरीर जड़वत ,जिंदा लाश की उपमा और दूसरा हो ही नहीं सकता ....
एक अनोखी रचना!...अनोखे खयालात...आभार!
ReplyDeleteआँखों से नमी चली जाती-पथरा जाती हैं वो सुना था
ReplyDeleteपथराई पुतलियों में हजारों सवाल जिंदा हों,पता न था।
गहन भाव
वाह!!!!!!!!!!!!
ReplyDeleteअद्भुत रचना....
अनु
ये भी एक सत्य है …………सुन्दर भावाव्यक्ति।
ReplyDeleteमौत या मुक्ति कब मिलना है, सचमुच पता ही नहीं चलता, जीवन के अंतिम सत्य तक पहुचकर उसका अनुभव भी नहीं किया जा सकता न ही उसका वर्णन, यह भी एक विडंबना ही है... गहन भाव
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