प्रेम है प्रभु
या प्रभु है प्रेम में
प्रेम में ही ज्ञान है
प्रेम में ही सार है
समर्पण मुक्ति है ...........
रश्मि प्रभा
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प्रेम गली अति सांकरी
प्रेम हमें मानव से महामानव बना सकने की सामर्थ्य रखता है, प्रेम जो देना जानता है मात्र लेना नहीं. ईश्वर से अनन्य प्रेम हो तो हृदय में कृपणता नहीं रहती, रोग, शोक, मोह तो ऐसे छूट जाते हैं जैसे वस्त्रों को झाड़ देने पर धूल छूट जाती है. प्रेम पूर्वक यदि उसे बुलाएँ तो वह प्रकट भी होता है और नित्य नवीन रस का अनुभव कराता है. उस प्रेम के आगे संसार की अमूल्य से अमूल्य वस्तु भी कमतर है. उसका स्मरण ऐसी ऊँचाइयों पर ले जाता है जहाँ कुछ शेष नहीं रह जाता. जहाँ केवल वही रह जाता है. अपना आपा तो रहता ही नहीं, जो मिथ्या है, उसे तो नष्ट होना ही है, जो है उसी की सत्ता रह जाती है. उसी के नाते तो हमें इस सृष्टि से प्रेम है. उसे हमारा प्रेम भरा दिल ही चाहिए और कुछ नहीं, उस पल में उसके और हमारे मध्य और कुछ नहीं रहता. न संसार, न कोई इच्छा...बस दो ही सम्मुख होते हैं. वह प्रिय है, सम्पूर्ण है, अनंत है कि उसमें सब समाया है, फिर उसके बिना यहाँ कुछ और है ही नहीं, वह एक क्षण के लिये भी हमसे दूर नहीं है.
अनीता निहलानी
जो बस है, तो प्रेम है...
ReplyDeleteजो प्रेम नहीं, तो कुछ नहीं...
कुछ भी तो नहीं!!
अपनी बड़ाई नहीं करता प्रेम स्वयं कभी
ReplyDeleteबस मन में आस्था रखते हुये
आशान्वित हो जाता है
हर बात के प्रति
इतनी सहनशीलता होती है प्रेम में
इसमें तो अन्तर्मन बस कुंदन हो जाता है
वह देना सीख लेता है
पाने की अपेक्षा ....
उसके बिना यहाँ कुछ और है ही नहीं,
ReplyDeleteढाई अक्षर प्रेम में समाया ब्रह्माण्ड .... !!
प्रेम निह्स्सिम है ........क्योंकि उसका उद्गम भीतर है ....!!!!
ReplyDeleteजी,
ReplyDeleteबहुत बढिया
है प्रेम जगत मे सार और कुछ सार नही।
ReplyDeleteसत्य वचन
ReplyDeleteसत्य वचन
ReplyDeleteवटवृक्ष पर डायरी के पन्ने को देखकर अच्छा लग रहा है...प्रेम का ही तो प्रसाद है यह भी...आभार रश्मि जी.
ReplyDeleteप्रेम हमें मानव से महामानव बना सकने की सामर्थ्य रखता है
ReplyDeleteसम्पूर्ण सच
बहुत सुन्दर भावार्थ इन पक्तियों में छिपा हुआ है!
ReplyDeleteबहुत प्यारी रचना.
आनंद वर्षा।
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