वक़्त का द्रोणाचार्य
पल पल
सजाता है
नित नए चक्रव्यूह
और
अभिमन्यु बना मन
आहत हो
तोड़ता है दम
न जाने
कितनी बार ।
इच्छाओं के कौरव
करते है अट्टहास
उसकी नाकामियों पर
भावनाओं के पांडव
झेलते हैं जैसे
सारी लाचारी
और
विवेक का कृष्ण
संचालित करता है
ज़िंदगी की
हर महाभारत को
सशक्त सुंदर रचना .....
ReplyDeleteविवेक का कृष्ण
ReplyDeleteसंचालित करता है
ज़िंदगी की
हर महाभारत को
...बहुत सुन्दर शब्दों में किया गया वर्णन...आभार!
बैशाखी की शुभकामनाएं!
सार्थक और सारगर्भित रचना.
ReplyDeleteसंगीता जी को पढ़ना हमेशा सुखद लगता है।
ReplyDeleteएक बेहद सशक्त और सार्थक रचना।
ReplyDeleteऔर
ReplyDeleteअभिमन्यु बना मन
आहत हो
तोड़ता है दम
अभिमन्यु मन् की नियति यही है
विवेक का कृष्ण
ReplyDeleteसंचालित करता है
ज़िंदगी की
हर महाभारत को
वाह! बिम्ब इतने सटीक! वाह!