वक़्त का द्रोणाचार्य 
पल पल 
सजाता है 
नित नए चक्रव्यूह 
और 
अभिमन्यु बना मन 
आहत हो 
तोड़ता है दम
न जाने 
कितनी बार ।
इच्छाओं  के कौरव 
करते है अट्टहास  
उसकी नाकामियों  पर 
भावनाओं के पांडव 
झेलते हैं जैसे 
सारी लाचारी 
और 

विवेक का कृष्ण 
संचालित करता है 
ज़िंदगी की 
हर महाभारत को 
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संगीता स्वरुप 

7 comments:

  1. सशक्त सुंदर रचना .....

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  2. विवेक का कृष्ण
    संचालित करता है
    ज़िंदगी की
    हर महाभारत को

    ...बहुत सुन्दर शब्दों में किया गया वर्णन...आभार!

    बैशाखी की शुभकामनाएं!

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  3. सार्थक और सारगर्भित रचना.

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  4. संगीता जी को पढ़ना हमेशा सुखद लगता है।

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  5. एक बेहद सशक्त और सार्थक रचना।

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  6. और
    अभिमन्यु बना मन
    आहत हो
    तोड़ता है दम
    अभिमन्यु मन् की नियति यही है

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  7. विवेक का कृष्ण
    संचालित करता है
    ज़िंदगी की
    हर महाभारत को

    वाह! बिम्ब इतने सटीक! वाह!

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