मन की धाराएँ तटों से टकराकर जब गुमसुम सी लौटती हैं तो
दिशा बदल क्षितिज के विस्तार में बढ़ने लगती हैं
और धरती से आकाश तकअपनी प्रत्यंचा खींच देती हैं......!

रश्मि प्रभा








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" कविता का प्रादुर्भाव! "
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जैसे झरने से झरता है जल
समय की धारा में जैसे बहते हैं पल
वैसे ही मौन हो या मुखर, निरंतर
घटित होती है कविता!

होते हैं जब शब्द विकल
बाँधने को वेदना सकल
तब घास पर, ओस की बूंदों सी
मिल जाती है कविता!

खिलता है जब कोई कमल
कल्याणार्थ पीता है जब कोई गरल
तब आस का अमृत पीकर, मानों
जी जाती है कविता!

ठोस पत्थर भी हो जाते हैं तरल
ये सच है.. जीना नहीं सरल
इस उहापोह में, मूंदी पलकों के बीच
खो जाती है कविता!

कठिन प्रश्नों के ढूँढने हैं हल
आज सृजित होने हैं आनेवाले कल
इस निश्चय की ज़मीन पर, सहजता से
खिल जाती है कविता!

जैसे झरने से झरता है जल
समय की धारा में जैसे बहते हैं पल
वैसे ही मौन हो या मुखर, निरंतर
घटित होती है कविता!


अनुपमा पाठक
परिचय क्या लिखें ...
विज्ञान के विद्यार्थी हैं , बचपन से कवितायेँ लिखते रहे हैं ; अभी कुछ दिनों से अपनी वेबसाइट http://www.anusheel.in/ पर लिख रहे हैं !यात्रा में कई पड़ाव संकलित हो जाते हैं ... ! "अनुशील ...एक अनुपम यात्रा" को वटवृक्ष की छाँव भी मिलेगी , ऐसा सोचा न था!

18 comments:

  1. ठोस पत्थर भी हो जाते हैं तरल
    ये सच है.. जीना नहीं सरल

    बहुत ही खूबसूरत पंक्तियों के साथ बेहतरीन रचना ।

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  2. बहुत सुन्दर परिभाषा कविता की...बस यही महसूस होता है तो बन जाति है कविता ....अच्छी प्रस्तुति

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  3. 'ur ki jo vytha hai wahi kavita hai'
    hriday se nikli hai rachna ki ek-ek pankti...

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  4. वैसे ही मौन हो या मुखर, निरंतर
    घटित होती है कविता!
    sach aur sundar shabd, bass yahi hai kavita, jivan ki tarah anwarat bahti hui...shubhkaamnaayen.

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  5. बहुत ही सुन्दर कविता की है कविता पर ..

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  6. होते हैं जब शब्द विकल
    बाँधने को वेदना सकल
    तब घास पर, ओस की बूंदों सी
    मिल जाती है कविता!

    वाह, क्या बात है ... कितने सुन्दर भाव हैं ...

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  7. वैसे ही मौन हो या मुखर, निरंतर
    घटित होती है कविता!

    सच यही तो होती है कविता…………बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

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  8. bahut sunderta ke saath aap likhi hain.

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  9. धन्यवाद रश्मि जी!
    " कविता का प्रादुर्भाव " को इतनी सुन्दर भूमिका के साथ प्रस्तुत करने हेतु आभार!
    कविता को सराहने हेतु आप सबों का आभार!

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  10. होते हैं जब शब्द विकल
    बाँधने को वेदना सकल
    तब घास पर, ओस की बूंदों सी
    मिल जाती है कविता!
    वाह वाह,

    एक एक बंद कविता का कविता के प्रादुर्भाव को बाखूबी व्याख्यायित करता है.

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  11. कविता - एक सार्थक अभिव्यक्ति

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  12. मौन हो या मुखर ...निरंतर घटती है कविता ....
    कभी शब्दों में , कभी शब्दहीन होकर !

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  13. ठोस पत्थर भी हो जाते हैं तरल
    ये सच है.. जीना नहीं सरल

    इस जटिलता में भी उपजती है कविता

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  14. जैसे झरने से झरता है जल
    समय की धारा में जैसे बहते हैं पल
    वैसे ही मौन हो या मुखर, निरंतर
    घटित होती है कविता!
    एक सटीक रचना....... ! :)

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  15. जैसे झरने से झरता है जल
    समय की धारा में जैसे बहते हैं पल
    वैसे ही मौन हो या मुखर, निरंतर
    घटित होती है कविता!

    बहुत ही अहसास पूर्ण कविता की यात्रा..बहुत सुन्दर..आभार

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  16. बहुत सुन्दर परिभाषा कविता की...बस यही महसूस होता है तो बन जाति है कविता .

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