अब वो चाँद कहाँ
कहाँ है वो मासूम स्वाद
बड़े होने की कौन कहे
अब तो घुटनों चलते , खड़े होते
हम बेईन्तहा समझदार होते हैं
कहाँ से लाएगी माँ अब वो जादू
चाँद से अब कोई रिश्ता ही कहाँ !
रश्मि प्रभा
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ज़िन्दगी का स्वाद
वो भी क्या दिन थे
जब हम चाँद का स्वाद चखा करते थे
कभी खीर में देती थी माँ
कभी दूध में घोल देती थी
कभी रोटी के टुकड़े में
दबा कर खिला दिया करती
तब चाँद बहुत मीठा होता था
अब तो बहुत खारी लगती हैं रातें
जब आँखों में सारी रात
जगती हैं रातें
दिन भी कितने फीके लगते हैं अब
बड़े होने पर क्यूँ
बेस्वाद हो जाती है
ज़िन्दगी
()शेफाली श्रीवास्तव
http://wordsbymeforme.blogspot.com/
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति ....प्रस्तुति के लिये आभार ।
ReplyDeleteबड़े होने पर हो जाती है बेस्वाद ज़िंदगी ...बहुत खूबसूरती से लिखे एहसास
ReplyDeleteकाश ! वह दूधिया बचपन बना रहता ......एक भोली सी अभिव्यक्ति
ReplyDeleteवाह ! शेफाली जी की कविता मुझे बहुत अच्छी लगी ! बहुत सुन्दर भावना और उससे भी सुन्दर उपमा ... !
ReplyDeleteइसलिए मुझे समझदार होने से, बड़े होने से डर लगता है...
ReplyDeleteऔर अब मैं चंद को अपनी डायरी में छुपा कर रखती हूँ... उससे बातें भी करती हूँ...
बहुत प्यारी कवितायें हैं... दोनों...
rashmijee ki baat aur shefalijee ki kavita donon hi lajabab.
ReplyDeletebhut sundar!
ReplyDeletedin badle
soch badli
swad bhi badal gya:)
काश कि बचपन का स्वाद यूं ही बना रहता जीवन भर....बचपन की जादुई दुनिया की महक बिखेरती एक खूबसूरत अभिव्यक्ति.आभार
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.
बड़े होने पर क्यूँ
ReplyDeleteबेस्वाद हो जाती है
ज़िन्दगी
यही तो पता नही चलता कब और कैसे खारी हो जाती है ज़िन्दगी……………बेहद सुन्दर भाव समेटे हैं।
"बड़े होने पर क्यूँ
ReplyDeleteबेस्वाद हो जाती है
ज़िन्दगी"
शायद ज्ञानी हो जाते हैं हम.
मां की कौन कहे
किसी की बात पर यकीन नहीं कर पाते हैं हम.
हम जानबूझकर हो जाते हैं अपने सपनों से दूर
जीवन की सच्चाईयां कर देती हैं मजबूर. .
kabhi sochte they ham k
ReplyDeletekab bare honge
ab chahte hai k kash
ham bachche hi achche they ........... bahut khoob jindgi khari si ho gyi hai
जिन्गी के साथ-साथ रचना भी स्वादिष्ट है!
ReplyDeleteबेहतरीन रचना ..
ReplyDeleteदिन भी कितने फीके लगते हैं अब
ReplyDeleteबड़े होने पर क्यूँ
बेस्वाद हो जाती है
ज़िन्दगी
,,,,बहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति
वाह ! चाँद का ज़ायका सच में बहुत अच्छा लगा..! कई यादों ने करवट बदली ये रचना पढ़कर. बेहतरीन रचना के लिए शेफाली जी को बधाई और बेहतरीन प्रस्तुती के लिए सम्मानीय रश्मि दी को भी बधाई ! आभार !!
ReplyDeleteबड़े होने पर बेस्वाद हो जाती है जिंदगी ...फिर भी जाने क्यों लोगों को बड़े होने की इतनी जल्दी होती है ...
ReplyDeleteस्वादिष्ट लगी कविता !
zindgi ka sach hai, aise hin feeka feeka ho jata hai jaane kyon bachpan beetate hin. bahut achhi rachna.
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