बादलों से उतरा एक नूर सा जोगी
बड़ी लम्बी, गहरी नदी है..
पार जाना है...तुम्हे भी, मुझे भी...
नाव तुम्हारे पास भी नहीं,
नाव मेरे पास भी नहीं...
जिम्मेदारियों का सामान बहुत है...
बंधू,बनाते हैं एक कागज़ की नाव...
अपने-अपने नाम को उसमे डालते हैं॥
देखें,कहाँ तक लहरें ले जाती हैं...
कहाँ डगमगाती है कागज़ की नाव...
और कहाँ जा कर डूबती है!
निराशा कहाँ है?
किस बात में है?
कागज़ की नाव को तो डूबना ही है...
पर जब तक न डूबे...
देखते-देखते वक़्त तो गुज़र जायेगा...
और जब डूबे...
तो दो नाम एक साथ होंगे....
रश्मि प्रभा
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बादलों से उतरा एक नूर सा जोगी
बात सालों की है
दहलीज पर एक
जोगी आया
उसने मांगे कुछ अक्षर
पहले मैं सोच में पड़ गई
फिर
रब को याद किया और
मैंने दे दिये उसे अक्षर
उसने अक्षरोंकी माला गूंथी
आंखों से चूमी
और मेरी ओर बढ़ा दी
मुझे वो जोगी नहीं
बादलों से उतरा एक नूर सा लगा
मंत्रा के नूर से उजली हुई
वो माला मेरे सामने थी
मैं अडोल सी खड़ी रह गई
और सोचने लगी
कैसे लूं माला को
माला को झोली में लेने से पहले ही
मेरे पांव चल चुके कई काल
काल के चेहरे थे
कुछ अजीब
किसी के हाथ में पत्थर थे
तो किसी के हाथ में फूल
फिर अचानक
मैंने वो माला झोली में ली
और सीने से लगा ली
उपर से पल्ला कर लिया
पल्ले के अंदर बन गया इक संसार
अब कभी कभी पल्ला हटा कर
माला के अक्षरों को कागज पर रखती हूं
कभी उनकी कविता बनती है
तो कभी नज्म
जोगी का फेरा जब लगता है
कागज पर रखे अक्षरों को देखता हैं
मुसकुराता है
कहता है
यही तो मैं चाहता था
इनकी कविता बने
नज्म बने
और बिखर जाएं सारी कायनात में
मनविंदर भिम्बर
http://www।mereaaspaas.blogspot.com/
पार जाना है...तुम्हे भी, मुझे भी...
ReplyDeleteनाव तुम्हारे पास भी नहीं,
नाव मेरे पास भी नहीं...
गहन भावों के साथ बेहतरीन शब्दों का संगम ...
यही तो मैं चाहता था
इनकी कविता बने
नज्म बने
और बिखर जाएं सारी कायनात में
बहुत ही अच्छी रचना भावमय करते शब्द ...सुन्दर लेखन के लिये बधाई ....।
वाह दीदी, दोनों रचना बेहतरीन है ...
ReplyDeleteमनविंदर जी बहुत अच्छी लिखती है ...
और साथ में purple sunbird की तस्वीर भी बढ़िया है ... ये पक्षी भी तो फूलों से रस पीती है ... जैसे कि मैं काव्य रस पी रहा हूँ आपके ब्लॉग से ...:)
दोनों ही रचनाएं काफी गहन और खूबसूरत लगीं.. आप दोनों को बहुत-बहुत बधाई..
ReplyDeleteरजनी चालीसा का जप करने ज़रूर पधारें ब्लॉग पर :)
आभार
यही तो मैं चाहता था
ReplyDeleteइनकी कविता बने
नज्म बने
और बिखर जाएं सारी कायनात में
गहरे भाव ,गहरी सोच । बहुत दिन बाद पढा है मनविन्द्र जी को। बहुत उमदा लिखती हैं पता नही मै ही नही देख पाई या वही कम सक्रिय्रही हैं। देखती होऔँ आज उनका ब्लाग। अच्छा लगा। धन्यवाद।
यही तो मैं चाहता था
ReplyDeleteइनकी कविता बने
नज्म बने
और बिखर जाएं सारी कायनात में
गहरे भाव ,गहरी सोच । बहुत दिन बाद पढा है मनविन्द्र जी को। बहुत उमदा लिखती हैं पता नही मै ही नही देख पाई या वही कम सक्रिय्रही हैं। देखती होऔँ आज उनका ब्लाग। अच्छा लगा। धन्यवाद।
पर जब तक न डूबे...
ReplyDeleteदेखते-देखते वक़्त तो गुज़र जायेगा...
और जब डूबे...
तो दो नाम एक साथ होंगे....
बहुत प्यारे भाव ..डूबने पर भी साथ रहने का एहसास .....सुन्दर अभिव्यक्ति
अब कभी कभी पल्ला हटा कर
माला के अक्षरों को कागज पर रखती हूं
कभी उनकी कविता बनती है
तो कभी नज्म
बहुत खूबसूरती से कह दिया नज़्म , कविता बनने की बात ....सुन्दर रचना
"यही तो मैं चाहता था
ReplyDeleteइनकी कविता बने
नज्म बने
और बिखर जाएं
सारी कायनात में"
दीदी,सादर प्रणाम .
मनविंदर जी की भावमयी रचना पढ़ने का अवसर उपलब्ध कराने के लिए आभार. ईश्वर यही तो चाहता है की शब्दों की माला बने और उनमें संगीतमय भाव भरे जाएं.अत्यंत सुंदर रचना.
मनविंदर जी अच्छी रचना के लिए धन्यवाद.आशा है यह आगे भी ऐसा ही बहुत कुछ पढ़ने को मिलेगा.
क्या खूब भावो की माला बनाई है……………अति सुन्दर्।
ReplyDeleteवाह बेहद खुबसुरत। ऐसी रचनाओं को पढ़कर एक अजीब सी संतुष्टी मिलती है। आभार।
ReplyDeletebehatreen.....rashmi di aajkal dhundh kar apne gamle me fool lagati hai:)
ReplyDeleteमनविन्दरजी की रचना पढ़ी.ओह! क्या ये वो ही जोगी था जो मुझे एक कटोरा पकड़ा गया.देखा उसमे प्यार था.मेरा नही था उसमे कुछ भी.किसी और की अमानत थी इसलिए बांटती जा रही हूँ.'वो' तो आया नही न अपनी अमानत लेने.
ReplyDelete..........जोगी को पाया तो ढूँढने मनविन्दरजी के ब्लॉग तक जा आई और कवि शिव और लूना मिल गए मुझे आंसू बन कर ठहर गए दोनों मेरी आँखों मे. लूना का दर्द जैसे उसका अपना नही था.आप को समय मिले तो 'लूना' से मिलना मनविन्दरजी के ब्लॉग पर.
दोनों ही गज़ब!! वाह!
ReplyDeleteकागज़ की नाव को तो डूबना ही है...
ReplyDeleteपर जब तक न डूबे...
देखते-देखते वक़्त तो गुज़र जायेगा...
और जब डूबे...
तो दो नाम एक साथ होंगे....
beautiful.....
do itni achchi kavita ek saath padhkar man bahut khush hua.
ReplyDeleteकागज़ की नाव को तो डूबना ही है...
ReplyDeleteपर जब तक न डूबे...
देखते-देखते वक़्त तो गुज़र जायेगा...
और जब डूबे...
तो दो नाम एक साथ होंगे....
साथ में मनविंदर जी की रचना भी अच्छी लगी.
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteदोनों ही बेहद खूबसूरत रचनाएँ हैं... मैं अक्सर आपके ब्लॉग पर आता हूँ और सभी रचनाएँ पढता हूँ... समय की कमी के चलते टिपण्णी नहीं कर पाता, लेकिन अच्छी रचनाओं की चाह मुझे यहाँ बार-बार खींच लाती है... बहुत-बहुत धन्यवाद!
ReplyDeleteप्रेमरस.कॉम
देखते-देखते वक़्त तो गुज़र जायेगा...
ReplyDeleteऔर जब डूबे...
तो दो नाम एक साथ होंगे....
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बहुत सुन्दर।
--
मनविन्दर भिम्बर की रचना भी अच्छी है!
dono kavitaye gahrayi tak dubo le gayi ek sath.
ReplyDeleteबहुत खुब प्रस्तुति.........मेरा ब्लाग"काव्य कल्पना" at http://satyamshivam95.blogspot.com/ जिस पर हर गुरुवार को रचना प्रकाशित...आज की रचना "प्रभु तुमको तो आकर" साथ ही मेरी कविता हर सोमवार और शुक्रवार "हिन्दी साहित्य मंच" at www.hindisahityamanch.com पर प्रकाशित..........आप आये और मेरा मार्गदर्शन करे..धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत खुब प्रस्तुति.........मेरा ब्लाग"काव्य कल्पना" at http://satyamshivam95.blogspot.com/ जिस पर हर गुरुवार को रचना प्रकाशित...आज की रचना "प्रभु तुमको तो आकर" साथ ही मेरी कविता हर सोमवार और शुक्रवार "हिन्दी साहित्य मंच" at www.hindisahityamanch.com पर प्रकाशित..........आप आये और मेरा मार्गदर्शन करे..धन्यवाद
ReplyDeleteवाह दोनों ही रचनाएं भाव गाम्भीर्य और सौन्दर्य रस से भरपूर...
ReplyDeleteमनमोहक सुन्दर रचनाओं के लिए बहुत बहुत आभार..
dono rachnayein bahut gahri... sundar!
ReplyDeleteदोनो ही रचनाये बहुत अच्छी लगी । वट्व्रक्ष की छाव हमेशा ही सुखदाई होती है
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