प्यार ! फिर कहाँ याद रहता है
हम कहाँ ... हाय हम कहाँ !
जब ना हो कोई सुगबुगाहट
ना सुनाई दे दिल की धड्कनें
जान लो
प्यार रहा नहीं !
रश्मि प्रभा
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हाँ शायद !!
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पहले जब वो होती थी
एक खुमारी सी छा जाती थी
पुतलियाँ आँखों की
स्वत ही चमक सी जाती थीं
आरक्त हो जाते थे कपोल
और सिहर सी जाती थी साँसें
गुलाब ,बेला चमेली यूँ ही
उग आते थे चारों तरफ
पर अब वह होती है तो
कुछ भी नहीं होता
ना राग बजते हैं
ना फूल खिलते हैं
ना हवा महकती है
ना साँसें ही थमती हैं
हाँ अब उस "आहट" के होने से
कुछ असर नहीं होता मुझपर
शायद संवेदनाये सुप्त हो चुकी हैं .....!
शिखा वार्ष्णेय
http://shikhakriti.blogspot.com/
अपने बारे में कुछ कहना कुछ लोगों के लिए बहुत आसान होता है, तो कुछ के लिए बहुत ही मुश्किल और मेरे जैसों के लिए तो नामुमकिन फिर भी अब यहाँ कुछ न कुछ तो लिखना ही पड़ेगा न तो सुनिए. by qualification एक journalist हूँ moscow state university से गोल्ड मैडल के साथ T V Journalism में मास्टर्स करने के बाद कुछ समय एक टीवी चैनल में न्यूज़ प्रोड्यूसर के तौर पर काम किया ,हिंदी भाषा के साथ ही अंग्रेज़ी,और रूसी भाषा पर भी समान अधिकार है परन्तु खास लगाव अपनी मातृभाषा से ही है.खैर कुछ समय पत्रकारिता की और उसके बाद गृहस्थ जीवन में ऐसे रमे की सारी डिग्री और पत्रकारिता उसमें डुबा डालीं ,वो कहते हैं न की जो करो शिद्दत से करो [:D].पर लेखन के कीड़े इतनी जल्दी शांत थोड़े ही न होते हैं तो गाहे बगाहे काटते रहे .और हम उन्हें एक डायरी में बंद करते रहे.फिर पहचान हुई इन्टरनेट से तो यहाँ कुछ गुणी जनों ने उकसाया तो हमारे सुप्त पड़े कीड़े फिर कुलबुलाने लगे और भगवान की दया से सराहे भी जाने लगे,कई "poet of the month पुरस्कार भी मिल गए,और जी फिर हमने शुरू कर दी स्वतंत्र पत्रकारिता..तो अब फुर्सत की घड़ियों में लिखा हुआ कुछ,हिंदी पत्र- पत्रिकाओं में छप जाता है और इस ब्लॉग के जरिये आप सब के आशीर्वचन मिल जाते हैं.और इस तरह हमारे अंदर की पत्रकार आत्मा तृप्त हो जाती है.
शिखाजी की यह रचना प्रेम के अनोखे रंग में भीगी हुई है.. सुन्दर .. भावपूर्ण..
ReplyDeleteवक्त के साथ साथ मन के दरवाज़े की दस्तक धीमी पडने लगती हैं ....बहुत अच्छी अभिव्यक्ति
ReplyDeleteशायद कुछ फर्क है प्यार और प्रेम में ...
ReplyDeleteशायद प्रेम एक अनुभूति है जबकि प्यार एक रिश्ता ...
जब ना राग बजते हैं
ना फूल खिलते हैं
ना हवा महकती है
ना साँसें ही थमती हैं
तब शायद प्रेम नहीं रहती होगी पर शायद प्यार फिरभी होता होगा ...
ये मेरी अपनी सोच है ...
पर रचना सुन्दर है इसमें कोई शायद नहीं है ..
ReplyDeleteसुप्त भावनायें……………शायद होता है ऐसा ………………भावों का सुन्दर समन्वय्।
ReplyDeleteमेरे लिए बहुत ही भावपूर्ण रचना... अंत में सम्वेद्नायं सुप्त हो जाना... वाह...
ReplyDeleteसंवेदनाये सुप्त हो चुकी हैं .....बहुत खूबसूरती से भावों को व्यक्त किया है इस अन्तिम पंक्ति ने, बेहतरीन शब्द रचना ।
ReplyDeleteरश्मि जी ,अच्छा आयोजन्न है आप का ,अब तो वट्वृक्ष पर आना एक नशा बन गया है
ReplyDeleteशिखा जी की बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना
उग आते थे चारों तरफ
पर अब वह होती है तो
कुछ भी नहीं होता
ना राग बजते हैं
ना फूल खिलते हैं
ना हवा महकती है
बहुत ख़ूब!
नाज़ुक एहसासात का भावनात्मक प्रस्तुतिकरण
बधाई आप दोनों को
धीरे धीरे इंसान मोती चमड़ी का होता जाता है ... कुछ हालात भी उसे धकेल देते है इस तरफ ... और संवेदनाएं ख़त्म हो जाती हैं ...
ReplyDeleteशायद संवेदनाये सुप्त हो चुकी हैं .....!
ReplyDeleteभावनाओं के रुदन कृदन के बाद शायद संवेदनाये सुप्त हो जाती हैं.
शिखा जी की सुन्दर भाव प्रवण रचना . संवेदना शुषुप्त अवस्था में है तो एकदिन चैतन्य भी होगी , और फिर खिलेंगे बेला गुलाब , महकेगी बगिया . सुन्दर रचना के लिए शिखा जी को बधाई और आपको साधुवाद हमे बाटने के लिए.
ReplyDeleteहाँ अब उस "आहट" के होने से
ReplyDeleteकुछ असर नहीं होता मुझपर
शायद संवेदनाये सुप्त हो चुकी हैं ...
लगता है कभी कभी ऐसा भी ...मगर होता नहीं है ..
अच्छी कविता
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (2/12/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
haan shaayad, tabhi pata chalta hai ki pyar raha nahi.....gahan bhaav!!!!1
ReplyDeleteshikhaji ki kavita bahut achchi lagi.
ReplyDeleteशायद... एकरसता समा गई है.
ReplyDeletesvedana hi to jivan hai
ReplyDeleteak din fir se sari svednaye sjg hogi .
achhi kavita
achhi abhivyakti, badhai.
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