हमें गर्व है कि हम विकसित हो रहे हैं....
हम सभी विकसित होना चाहते हैं
पर कैसा विकास
किस ढंग से .........
क्या विकास के नाम पर
हम विनाश की ओर अग्रसर नहीं हो रहे ?
रश्मि प्रभा
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हमें गर्व है कि हम विकसित हो रहे हैं.....
विकास के कौटिल्य ने चाहा
कि बेहद ख़ूबसूरत हों फूल
खिलें,
पहले से भी अधिक /
और एक दिन.........
सचमुच, ऐसा हो गया.......
परन्तु कीमत ले ली इसकी.......
चुरा ली सुगंध,
पी गया मकरंद
घोल दिया विष ......सारे उपवन में /
कलियाँ ,
विषकन्या सी खिलकर झूम उठीं
झूम गए हम भी
बन गए विषमानव /
ऑक्सीटोसिन पोषित सब्जियों के साथ
कीटनाशकों से संरक्षित अनाज की रोटी
और पीकर नकली दूध .........
बड़ी निर्ममता से ......नपुंसक बन गए हम भी /
इतने नपुंसक ......
कि खरीदकर खाते हैं विष
और उफ़ तक नहीं करते /
विषाक्त धरती बाँझ होने लगी है......
कैंसर,
आमंत्रित अतिथि बन रहे हैं
और हमें गर्व है .....
कि हम विकसित हो रहे हैं /
कौशलेन्द्र
................यही नाम है मेरा,
मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, बिहार और राजस्थान में शिक्षा / पेशे से चिकित्सक / रुचि साहित्य में / समस्याओं का समाधान भारतीय संगीत में खोजने का प्रयास /बस इतना ही परिचय है मेरा .....
करारी चोट करती अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteबड़ा ही सटीक लिया है....साधुवाद.
ReplyDeleteसटीक व्यंग ..
ReplyDeleteलिखने का अंदाज़ बहुत ही सुन्दर है या यूँ कह सकता हूँ निर्द्वंद कि लेखनी में धार है ... हालाँकि विषय वास्तु से शायद मैं पूरी तरह से सहमत नहीं हूँ ...
ReplyDeleteविकास से केवल नुक्सान ही हुआ है ऐसा तो नहीं ... खैर ये तो अपनी अपनी सोच है ...
ये पंक्तियाँ काफी असरदार है :
ऑक्सीटोसिन पोषित सब्जियों के साथ
कीटनाशकों से संरक्षित अनाज की रोटी
और पीकर नकली दूध .........
बड़ी निर्ममता से ......नपुंसक बन गए हम भी /
sach kaha aapne par jeena parega...aise hi:(
ReplyDelete"इतने नपुंसक ......
ReplyDeleteकि खरीदकर खाते हैं विष
और उफ़ तक नहीं करते /
विषाक्त धरती बाँझ होने लगी है......
कैंसर,
आमंत्रित अतिथि बन रहे हैं
और हमें गर्व है .....
कि हम विकसित हो रहे हैं"
प्रिय कौशलेन्द्र जी,दीदी के वटवृक्ष के नीचे आपको पाकर लगा मेरी भावनाओं को स्वर मिल गए है.जिन बातों को आप इतनी बेबाकी से कह गए उसके बारे में हमारी तरह ढेरों लोग आज भी सोचते है .बस जरूरत ऐसे लोगों को एक मंच पर लाने और स्थापित नाकारा और भ्रष्ट तंत्र के विरुद्ध खड़ा होने की. सामाजिक सरोकारों का बेहतरीन नमूना है आपकी यह रचना. सुंदर से अधिक सटीक एवं सामयिक.बधाई.
ek behad sunder andaz.
ReplyDeletebehad aakrshak aur satik andaaz........aapki lekhni me dhaar hai....dhanyawaad
ReplyDeletebehad aakrshak aur satik andaaz........aapki lekhni me dhaar hai....dhanyawaad
ReplyDeleteसुन्दर एवं सटीक लेखन के लिये बधाई ।
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteभाई कौशलेंद्र जी जैसे कभी कभी सहवाग पहले गेंद पर ही सिक्सर लगा देता है, कुछ कुछ ऐसी ही शुरआत है आपकी इस मनोहारी काव्य प्रस्तुति की| बहुत बहुत बधाई सर जी|
ReplyDeleteरश्मि जी आपको भी बहुत बहुत बधाई इस सुंदर कविता के साथ आपकी टिप्पणी रूपी संक्षिप्त पर सारगर्भित कविता सहित स-संदेश चित्र के लिए|
sach aur sirph sach hi likha hai. badhai.
ReplyDeletesach aur sirph sach hi likha hai. badhai.
ReplyDeletesach aur sirph sach hi likha hai. badhai.
ReplyDeleteकैंसर,
ReplyDeleteआमंत्रित अतिथि बन रहे हैं
और हमें गर्व है .....
कि हम विकसित हो रहे हैं /
यही तो विडम्बना है ... विकास की अवधारणा शायद बदल गई है.
सुन्दर रचना .. सामयिक
आज के विकास को बहुत ही धर से परिभाषित किया है |
ReplyDeleteमैं शर्मिन्दा हूँ ....बेहद शर्मिन्दा ! आज अचानक इधर नज़र पडी .........शायद उस समय किसी व्यस्तता के कारण इधर आना नहीं हो सका होगा ........क्षमाप्रार्थना के साथ आप सभी का आभार. बस यूं ही स्नेह बनाए रखियेगा. एक बार पुनः आभार आप सबका और रश्मि जी का भी !
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