सच को देख
एथेंस का सत्यार्थी
अंधा हो गया ...
सच की भयानकता से
या उस विपरीत सत्य के साक्षात्कार से
जिसका एक कोमल खाका उसने खींच रखा था !
... आह !
पर एथेंस के सत्यार्थी की इस विडंबना ने
मुझे अपंग और अपाहिज नहीं किया
चेतनाशून्य मनोदशा की हर गहरी ख़ामोशी ने
मुझे केशव का विराट स्वरुप दिखाया
अहोभाग्य !
सत्य के आगे लड़खड़ाते मेरे क़दमों के आगे
कृष्ण ने हर बार मेरी ऊँगली थामी
और दुर्योधन से बचाया !!!
रश्मि प्रभा
सत्य के आगे लड़खड़ाते मेरे क़दमों के आगे
ReplyDeleteकृष्ण ने हर बार मेरी ऊँगली थामी ....
।
बहुत खूब ...कहा है आपने इन पंक्तियों में
भावमय करते शब्द ...बधाई इस बेहतरीन अभिव्यक्ति के लिये ।
चेतनाशून्य मनोदशा की हर गहरी ख़ामोशी ने
ReplyDeleteमुझे केशव का विराट स्वरुप दिखाया
अहोभाग्य !
सत्य के आगे लड़खड़ाते मेरे क़दमों के आगे
कृष्ण ने हर बार मेरी ऊँगली थामी
और दुर्योधन से बचाया !!!
बहुत सुन्दर और प्रेरक रचना बधाई आपको।
एक अलग फलक पर कविता अच्छी लगी..
ReplyDeleteआदरणीय रश्मि दी, आपकी रचनाओं में हर तरह के भावरंग खिलते हैं. भावों की ऐसी विविधता और प्रखरता बेहद कम देखने को मिलती है. नए-नए प्रयोत और बिम्ब वर्तमान कविता को अपने धरातल पर और अधिक पुष्ट करती हैं. आप सदा ऐसे ही लिखती रहें, ऐसी ही कामना करते हैं ताकि हमे भी हर बार नया पढ़ने को और सीखने को मिलता रहे. इस उत्कृष्ट रचना हेतु बधाई दीदी. आभार !!
ReplyDeleteवाह दीदी, क्या बात है ! बहुत सुन्दर तरीके से आपने ये बात कही है ...
ReplyDeleteमन में विश्वास (इसे भगवान पर भक्ति कह लीजिए) हो तो सत्य के राह में अविचल रह सकते हैं ...
मुझे केशव का विराट स्वरुप दिखाया
ReplyDeleteअहोभाग्य !
सत्य के आगे लड़खड़ाते मेरे क़दमों के आगे
कृष्ण ने हर बार मेरी ऊँगली थामी
और दुर्योधन से बचाया !!!
एक अलग सोच के साथ सुन्दर रचना।
बहुत सुन्दर ढंग से आपने अपने कहे को लफ़्ज़ों की अभिव्यक्ति दी है बेहतरीन
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति . कृष्ण तो हमेशा ही सत्य के साथ है .
ReplyDeleteअहोभाग्य !
ReplyDeleteसत्य के आगे लड़खड़ाते मेरे क़दमों के आगे
कृष्ण ने हर बार मेरी ऊँगली थामी
और दुर्योधन से बचाया !!!
सुन्दर अभिव्यक्ति
पर एथेंस के सत्यार्थी की इस विडंबना ने
ReplyDeleteमुझे अपंग और अपाहिज नहीं किया
चेतनाशून्य मनोदशा की हर गहरी ख़ामोशी ने
मुझे केशव का विराट स्वरुप दिखाया
अहोभाग्य !
सत्य के आगे लड़खड़ाते मेरे क़दमों के आगे
कृष्ण ने हर बार मेरी ऊँगली थामी
और दुर्योधन से बचाया !!!
सुन्दर अभिव्यक्ति
सत्य के आगे लड़खड़ाते मेरे क़दमों के आगे
ReplyDeleteकृष्ण ने हर बार मेरी ऊँगली थामी
और दुर्याेधन से बचाया !!!
वाह, एक उत्कृष्ट कविता।
ऐसी रचनाएं बरबस मन मोह लेती हैं।
हमारा सौभाग्य है कि हमारे पास कृष्ण का सत्य है ...वरना हमारी स्थिति भी उसी सत्यार्थी सी हुई होती .......सत्य भी सापेक्ष होता है यह तो उन्हें बहुत बाद में पता चला.
ReplyDeleteसत्य सत्य रहता है .लड़खड़ा सकता है गिर नहीं सकता ..फिर कृष्ण तो हैं ही ...
ReplyDeleteगहन अभिव्यक्ति
behatrin rachna........bhut hi sundar.
ReplyDeleteकृष्ण तो मार्गदर्शक हैं ही!
ReplyDeleteसुन्दर रचना!
कृष्ण ने अंगुली थामी...
ReplyDeleteफिर और क्या चाहिए था !