चलो ना भटके
लफ़ंगे कूचों में
लुच्ची गलियों के
चौक देखें
सुना है वो लोग
चूस कर जिन को वक़्त ने
रास्तें में फेंका थ
सब यहीं आके बस गये हैं
ये छिलके हैं ज़िन्दगी के
इन का अर्क निकालो
कि ज़हर इन का
तुम्हरे जिस्मों में
ज़हर पलते हैं
और जितने वो मार देगा
चलो ना भटके
लफ़ंगे कूचों में

(गुलज़ार)






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प्याज बन कर रह गया है आदमी

मौन स्वर है सुप्त हर अंतःकरण
सत्य का होता रहा प्रतिदिन हरण

रक्त के संबंध झूठे हो गए
काल का बदला हुवा है व्याकरण

खेल सत्ता का है उनके बीच में
कुर्सियां तो हैं महज़ हस्तांतरण

घर तेरे अब खुल गए हैं हर गली
हे प्रभू डालो कभी अपने चरण

आपके बच्चे वही अपनाएंगे
आप का जैसा रहेगा आचरण

प्याज बन कर रह गया है आदमी
आवरण ही आवरण बस आवरण


दिगम्बर नासवा
http://swapnmere.blogspot.com/

जागती आँखों से स्वप्न देखना मेरी फितरत है .........
बरसों मेरे स्वप्न डायरी में कैद रहे
आज में उनको मुक्त करता हूँ ......

18 comments:

  1. बेहतरीन ग़ज़ल है ... हर शेर लाजवाब है ... पहले भी पढ़ा था, आज फिर पढ़ा ... और अच्छा लगा ...
    गुलज़ार साब की रचना पढाने के लिए शुक्रिया दीदी, उनकी यह तस्वीर पहली बार देख रहा हूँ ..

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  2. आपकी यह गज़ल पहले भी पढ़ी है ..इंसानी फितरत को सटीक शब्द दिए हैं ...

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  3. शुक्रिया रश्मि जी ... इस ग़ज़ल को यहाँ स्थान देने के लिए ...

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  4. vartman paridrshy ke sateek chitran
    ... pyaj aajkal bahut rula raha hai....
    Saarthak prastuti ke liye aabhar

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  5. "आपके बच्चे वही अपनाएंगे
    आप का जैसा रहेगा आचरण
    प्याज बन कर रह गया है आदमी
    आवरण ही आवरण बस आवरण"
    नसवा जी,क्या कहूँ आपकी कविता ने
    तो निःशब्द कर दिया.वाकई आज आदमी
    आवरण मात्र होकर रह गया है या यों कहें
    की उसमें ही खोकर रह गया है तो गलत
    नहीं होगा. परत-दर-परत उधेड़ते जाओ फिर
    भी नहीं मिलता कहीं

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  6. प्याज बन कर रह गया है आदमी
    आवरण ही आवरण बस आवरण ...

    kitni gambhir baat kahi sir aapne..:)
    kitne aawarno ko dho kar chal raha hai aadmi....

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  7. बहुत ही सुन्‍दर अभिव्‍यक्ति ।

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  8. वाह सुन्दर और गूढ़ अभिव्यक्ति . मन प्रसन्न हुआ .

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  9. आव रण
    यह प्‍याज के छिलकों का युद्ध है

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  10. आपके बच्चे वही अपनाएंगे
    आप का जैसा रहेगा आचरण

    प्याज बन कर रह गया है आदमी
    आवरण ही आवरण बस आवरण
    behatreen lines.....

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  11. पहले भी पढ़ चुका हूँ लेकिन जितनी बार पढो कम है! बहुत ही सुन्दर रचना!

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  12. सत्ता परिवर्तन मात्रा कुर्सियों का हस्तानान्तरण रह गया है ..
    प्याज बन कर रह गया है आदमी आवरण ही आवरण ...
    एक एक पंक्ति सत्य के करीब !

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  13. बेहतरीन लाइनें ,शुभकामनाएं ।

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  14. बहुत सुन्दर, बेहतरीन रचना !

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  15. दिगंबर जी की यह रचना ऐसी है कि जितनी भी बार पढी जाय,उतना ही रस देती है...

    बहुत ही अच्छा लगा पढना..

    आभार प्रकाशित करने के लिए...

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  16. आवरण ही आवरण बस आवरण
    ये कब हमारी सच्चाई बन गया पाता ही नहीं चला मानव चेतना को...
    सुन्दर प्रस्तुति!

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