इक तारा
मैं एक शब्द हूँ चाहो तो नज़्म बना लो
बना लो अपनी ग़ज़ल कोई गीत कोई आह्लादित सोच कोई दुखद कहानी....
यकीन रखो मैं साथ रहूंगी
रश्मि प्रभा
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इक तारा
मैं इक तारा हूँ और टूटकर बिखर गया हूँ
कभी चमका करता था
हँसता था आसमां मे
आज किसी की ख़ुशी के लिए
अपना वजूद खोकर
जमीं पर उतर गया हूँ
टूटकर बिखर गया हूँ
दे दिया हैं सब कुछ
पर मिला तो कुछ नही है
उसकी तमन्ना पूरी करने
आसमां से गिर गया हूँ
टूटकर बिखर गया हूँ
जब देखा था उसने
कुछ उम्मीद लिए मुझे
आंसू जो बह रहे थे उसके
उन आंसू की खातिर
मे जमीं से मिल गया हूँ
टूटकर बिखर गया हूँ
दीप्ती शर्मा
http://www.deepti09sharma.blogspot.com/
आंसू जो बह रहे थे उसके
ReplyDeleteउन आंसू की खातिर
मे जमीं से मिल गया हूँ
टूटकर बिखर गया हूँ
बहुत ही सुन्दर शब्दों के साथ ...उपरोक्त पंक्तियां भावमय कर गई ....आभार
मैं एक शब्द हूं ...यकीन रखो मैं साथ रहूंगी ..
बहुत सुन्दर कविता ! भावनाएं अच्छी तरह से उभरे गए हैं ...
ReplyDeleteअरे दीप्ती जी इस उम्र मे निराशा अच्छी नही होती--- ये उम्र टूटने की नही जुडने की है। वैसे रचना मे भाव संप्रेशण अच्छा है। शुभकामनायें।
ReplyDeleteबेहद गहन अभिव्यक्ति।
ReplyDeletesundar kavita.. bhavmay !
ReplyDeleteबहुत खूब... भाव छू गए दिल को...
ReplyDeletebahut sunder likhi hain aap.
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति !
ReplyDeletedil ko chhu lene vali rachna badhai
ReplyDeleteमैं एक शब्द हूँ चाहो तो नज़्म बना लो...
ReplyDeleteवाह रश्मि जी, उम्दा.
दे दिया हैं सब कुछ
पर मिला तो कुछ नही है
उसकी तमन्ना पूरी करने
आसमां से गिर गया हूँ
टूटकर बिखर गया हूँ...
दीप्ति जी की रचना बहुत अच्छी है...बस उदास कर रही है, निराशा का भाव है.
आज किसी की ख़ुशी के लिए
ReplyDeleteअपना वजूद खोकर
जमीं पर उतर गया हूँ
टूटकर बिखर गया हूँ
दूसरों के लिए टूटकर बिखरने वाला अपना वजूद खोता नहीं , अपने वजूद को दृढ़ता के साथ स्थापित करता है......कोई चाहे जितना भी कृतघ्न क्यों नहीं हो उसकी नजरें तो झुक ही जायेंगी.....इसीलिए दोस्ती में तो इसे निभाना ही चाहिए, दुश्मनी में भी निभाना चाहिए कुछ यू ....'दुश्मनी करो ..जम के करो लेकिन इतनी गुंजाइश जरूर रखो गर आँख मिल जाए झुकाना न पड़े.....
दे दिया हैं सब कुछ
ReplyDeleteपर मिला तो कुछ नही है
उसकी तमन्ना पूरी करने
आसमां से गिर गया हूँ
टूटकर बिखर गया हूँ
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क्या कहें ....जीवन की वास्तविकता यही है दूसरों के लिए जीना ...शुक्रिया
बहुत सुन्दर और गहन अभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteहँसता था आसमां मे
ReplyDeleteआज किसी की ख़ुशी के लिए
अपना वजूद खोकर
जमीं पर उतर गया हूँ
टूटकर बिखर गया हूँ
बहुत सुन्दर !
aapka dhanyvad
ReplyDeletejo apne mujhe yaha sthan diya
apka
aabhar
दे दिया हैं सब कुछ
ReplyDeleteपर मिला तो कुछ नही है
उसकी तमन्ना पूरी करने
आसमां से गिर गया हूँ
टूटकर बिखर गया हूँ
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...भावों को बड़ी सुंदरता से उकेरा है..बधाई..
दीप्ती की कविताओं में नयापन है, वे अपनी ही उर्वरा से खिली हुई लगती हैं.
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