जब भी कोई बाहरी आवाज़ आती है,
चिड़िया मासूम निगाहों से
मुझे देखती है,

छोटी कटोरी में पानी देकर
मैं उसे भरोसा देना चाहती हूँ..........
पर आघात से उबर पाना
आसान तो नहीं ...

रश्मि प्रभा






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विश्वासघाती


सवेरे-से कटोरी-भर चावल
रखे थे मैंने,
कोई तो उन्हें चुगने आएगा;
डिब्बे में बंद सड़ रहे थे दाने,
किसी का तो भला हो जायेगा.
पर नहीं..
अब तो मैना मुझसे भी ज्यादा
सयानी हो गई है;
उनकी आंखों में अब अपनों के लिए भी
खौफ़ पैदा हो गई है.
चलो कोई नहीं..
सबकी अपनी इच्छा;
अब तो दुनिया भी ऐसी ही हो चली है,
शायद इसकी कहानी भी यही हो गई है.
सांझ ढलते दो मैना
दिख ही गए, घास में कुछ चुन रही थी वो,
मैंने भी विश्वास का जाल फेंकना चाहा,
सो सारी कटोरी ही उडेल डाली;
डर मत! मैं धीरे से विश्वास का पैबंद लगाने का प्रयत्न कर रही थी.
परन्तु..
उनका विश्वास मुझसे भी अधिक था,
उड़ के चली गई पासवाले बरामदे पर;
और छुप के ढूँढने लगी मुझे
कि इस बार कौन नया विश्वासघाती है !



वंदना
http://vandanamahto.blogspot.com/

मेरा नाम बंदना महतो है. मैं मूलत: रांची, झारखण्ड की रहनेवाली हूँ. वैसे पढाई के सिलसिले में काफी जगह रही हूँ. मैंने बी.आई.टी. सिंदरी, धनबाद, झारखण्ड से सिविल इंजीनियरिंग में स्नातक, तथा आई.आई.टी. गुवाहाटी, असम से स्नातकोत्तर की डिग्री ली है. विगत चार वर्षों से इसी क्षेत्र में पी.एच.डी., आई.आई.टी. खडगपुर से भी कर रही हूँ। ब्लॉग्गिंग की शुरुआत भी यहीं आकर हुई. दिन भर के रिसर्च के बाद जब भी मुझे अवसर मिलता है, मैं ब्लॉग में रचनाएँ पढ़ने लग जाती हूँ. इसी दौरान काफी लोगो को पढ़ा, जाना, कई अच्छे व सुलझे सद्विचारों से अवगत भी हुई.

मेरे बारे में

"Life is beautiful"-ऐसा मेरा सदा से मानना रहा है, पर इसकी सुन्दरता के मायने मैंने जीवन के हर कदम में बदला हुआ सा-ही पाया, जैसे कोई "बूझो तो पहेली"- प्रतियोगिता हो रही हो. आज भी मैं इस जीवन की पहेली को सुलझाने में व्यस्त हूँ. कुछ अर्थ समझ में तो आये, पर सब लिख न सकी ..और कुछ जिन्हें न समझ सकी, उसे अंकित करने की कोशिश करती गयी...

16 comments:

  1. मैंने भी विश्वास का जाल फेंकना चाहा,

    बहुत ही सुन्‍दर शब्‍द रचना ...प्रस्‍तुति के लिये आभार ।

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  2. क्या कहें ……………ज़िन्दगी का ये रंग बखूबी उकेरा है।

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  3. सच, ऐसे ज़ख्म आसानी से नही भरते .
    देखता हूँ कुत्तों को कार के पीछे दौड़ते और भूंकते हुए,
    सोचता हूँ क्या पा सकेंगे वो ....पर
    वो भी भूल नही पाते अपनों के बिछड़ने का गम !

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  4. ज़माने से जो डरते हैं वो बेकार होते हैं !
    बदल देते हैं जो माहोल वो खुद्दार होते हैं !!
    हजारो डूबते हैं नाखुदा के भरोसे पर !
    चलते हैं जो खुद चप्पू वो अक्सर पार होते हैं !!

    अच्छा प्रयास ! बधाई दोस्त !

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  5. विश्वास और अविश्वास के बीच पसरे धुंधलके को उकेरती खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

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  6. मैना के सहारे से विश्वास और अविश्वास को बड़े सलीके से चित्रित किया है आपने

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  7. maina ke viswas aur aviswas ke bich ki lakeer ko bade pyare dhang se aapne sabdo me khincha hai vandna ji...:)

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  8. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (30/12/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
    http://charchamanch.uchcharan.com

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  9. और छुप के ढूँढने लगी मुझे
    कि इस बार कौन नया विश्वासघाती है !

    विश्वास और अविश्वास के बीच के संघर्ष को बहुत सार्थकता से चित्रित किया है..नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं !

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  10. शब्दों की कोमलता का स्पर्श अच्छा लगा |

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  11. छिप कर देखने लगी की इस बार कौन विश्वासघाती है ...
    ओह!

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  12. बातो ही बातों में यथाथ की चर्चा //

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  13. ज़माने से जो डरते हैं वो बेकार होते हैं !
    बदल देते हैं जो माहोल वो खुद्दार होते हैं !!
    सुन्‍दर प्रस्‍तुति, आभार ......

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  14. छोटी -छोटी .मगर अर्थपूर्ण

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  15. sach kaha panchhi bhi vishwaas naam ke shabd se darne lage hain.

    sunder komal rachna.

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