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शब्दों की शरारत
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रश्मि प्रभा
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अंजलि माहिल(ममता )
और मस्त हवा का झोंका - मेरी भावनाएं ...
कभी लेती है लम्बी उड़ान
कभी छुप्पाछुप्पी के खेल
कभी नन्हीं हथेलियों में ढेर सारे ख्वाब
कभी टूटे ख़्वाबों की झिलमिलाती बूंदें
और फिर ..... नए ख्वाब , नई शरारत, नई उड़ान
....
ज़िन्दगी रूकती कहाँ है !!!
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रश्मि प्रभा
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कभी मैं खुद ...
" कभी मेरे शब्द शरारत करते हैं और कभी मैं खुद ......"
बहते हैं जब मेरे अधूरे ख्वाब ,
मेरी आँखों से कतरा - कतरा ,
कभी बिखरकर टूट जाते हैं ,
कभी मैं खुद उन्हें , पोंछ लेती हूँ !
आती है जब जिंदगी में मुश्किलें ,
नदी के तीव्र बहाव की तरहा,
तब उड जाते हैं , बह जाते हैं ,
सहारे मेरे , पुराने बांधो की तरहा ,
कभी दूर बहे निकल जाते हैं ,
कभी मैं खुद उन्हें , छोड़ देती हूँ !
मिलती है जब नयी रौशनी ,
फिर एक नए जन्म की तरह ,
तब लगता है पुराना सब ,
सफ़ेद और शांत , नए की तरह ,
कभी आँखें चौंध जाती हैं ,
कभी मैं खुद उन्हें , मूंद लेती हूँ !
खिलखिलाते हैं शब्द मेरे,
जब कभी बालक की तरह ,
छिपा होता है दर्द कविताओं में ,
कागज की तरह ,
कभी शब्द छिटक-कर बिखर जाते हैं ,
कभी मैं खुद उन्हें ,कागज में बांध देती हूँ !
![My Photo](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiJF8tmTo1gWXzNp6DtHYMRtoWn8RvW5QYG53b2vLf6EazE2XOny3qTrFhuZDviuIzGl00a_ffBCn6XeR4u4rNhWQ2AeaDjtgQUFmrC4-z7bi1FEkJA92dz9okYYucT5_h9nSPwZNDbgv82/s220/girl+thinking1.jpg)
अंजलि माहिल(ममता )
कभी नन्हीं हथेलियों में ढेर सारे ख्वाब
ReplyDeleteकभी टूटे ख़्वाबों की झिलमिलाती बूंदें
और फिर ..... नए ख्वाब , नई शरारत, नई उड़ान
वाह ... बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ... आभार ।
सुन्दर भावाभिव्यक्ति
ReplyDeleteकभी शब्द छूट जाते हैं , कभी छोड़ दिए जाते हैं ...
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति!
वाह, भावनाओं को कितनी सुन्दर तरीके से अंजलि जी शब्दों में पिरोये हैं ...
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी रचना थी....
ReplyDeleteबहते हैं जब मेरे अधूरे ख्वाब ,
ReplyDeleteमेरी आँखों से कतरा - कतरा ,
कभी बिखरकर टूट जाते हैं ,
कभी मैं खुद उन्हें , पोंछ लेती हूँ !
कोमल भाव लिए सुन्दर अभिव्यक्ति....
द्वंदों की खुबसूरत अभिव्यक्ति. प्यारा आन्तरिक संवाद खुद से ही.
ReplyDeletebhaut hi sundar abhivaykti....
ReplyDeletebhut sunder..:)
ReplyDeleteमिलती है जब नयी रौशनी ,
ReplyDeleteफिर एक नए जन्म की तरह ,
तब लगता है पुराना सब ,
सफ़ेद और शांत , नए की तरह ,
कभी आँखें चौंध जाती हैं ,
कभी मैं खुद उन्हें , मूंद लेती हूँ !
वाह....सुन्दर भावाभिव्यक्ति..:)
सुन्दर भावाभिव्यक्ति
ReplyDeleteखूबसूरत अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteखिलखिलाते हैं शब्द मेरे,
ReplyDeleteजब कभी बालक की तरह ,
छिपा होता है दर्द कविताओं में ,
कागज की तरह ,
बहुत ही सार्थक प्रस्तुति....
सादर बधाई...
बहुत ही खूबसूरत !
ReplyDeleteसादर
sunder abhivyakti...........
ReplyDeleteकमाल की अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteलम्बे अंतराल के बाद वटवृक्ष पर आना सुखदा रहा ...........
ReplyDeleteहम सब के शब्दों में ही सारी दुनिया सिमटी है ........आभार
सर्व श्रेष्ठ कवयत्री के पुरस्कार के लिये मनपूर्वक हार्दिक अभिनंदन!!!
ReplyDeleteसर्व श्रेष्ठ कवयत्री के पुरस्कार के लिये मनपूर्वक हार्दिक अभिनंदन!!!
ReplyDeleteबहते हैं जब मेरे अधूरे ख्वाब ,
ReplyDeleteमेरी आँखों से कतरा - कतरा ,
कभी बिखरकर टूट जाते हैं ,
कभी मैं खुद उन्हें , पोंछ लेती हूँ !
bahut sunder..komalta ka ehsaas liye ek sunder kavita..
बहते हैं जब मेरे अधूरे ख्वाब ,
ReplyDeleteमेरी आँखों से कतरा - कतरा ,
कभी बिखरकर टूट जाते हैं ,
कभी मैं खुद उन्हें , पोंछ लेती हूँ !
bahut sunder..komalta ka ehsaas liye ek sunder kavita..
बहुत बहुत धन्यवाद आपका रश्मि जी ....मुझे यहाँ शामिल करने के लिए ...
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