शब्दों की भी एक सीमा होती है
कहने की भी एक हद होती है... पर हम कहाँ चुकने देते हैं शब्दों को , उसमें रंग भरते रहते हैं , फिर उसे नया अंदाज देते हैं ...
कहने की हद ! होती तो है , पर हम हदों को कहाँ मानते हैं ... शायद की उम्मीद लिए कहते रहते हैं ... तब तक जब तक एक सन्नाटा न पसर जाए !
रश्मि प्रभा
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फिर वही शब्दों का विहंगम जाल..........
आज फिर शब्द ना जाने क्यूँ चूक से गए हैं
शब्दों का विहंगम जाल
जो मैं हमेशा तुम्हारे आस-पास बुना करती हूँ
खाली प्रतीत होता है
वही शब्द...... कितनी बार दोहराऊँ
अपनी मन:स्तिथि
तुम्हें कितनी बार दिखलाऊँ
उस तुम को........ जो हो कर भी
कहीं है ही नहीं
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शब्दों की भी एक सीमा होती है
कहने की भी एक हद होती है
समझते-बूझते
क्यूँ उस 'तुम' को पुकारती हूँ
जो इस जीवन के रहने तलक
मेरा है ही नहीं ........
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अपने प्रिय की बात करते-करते
किसी का हृदय बिलखता है
तो किसी की आँखें बोझिल हो जाती हैं
पर मेरे तो अब अहसास तक टीसने लगे हैं
आत्मा का कम्पन निस्तेज़ करने लगा है
इस ____ जीवन को
जीते जी अपने शरीर से अलग होने की व्यथा
शायद किसी ने ना जानी होगी
पर मैं जी रही हूँ
इस सत्यार्थ के साथ
तुम ....... जो हो ही नहीं
उस "तुम्हारे" इंतज़ार के साथ
पर कब तक ............ आखिर कब तक ?
गुंजन
wow... gunjan ji, bahut khoob...
ReplyDeletevichaar ruk jaayein,
ReplyDeleteshabd ruk jaayein,
jaal sulajh jaaye
हद तक पहुँच गयी हैं
ReplyDeleteमेरी नाउम्मीदियाँ ..
फिर भी है कि मैं
जिए जाती हूँ
बहुत अच्छी प्रस्तुति
.....जीते जी अपने शरीर से अलग होने की व्यथा
ReplyDeleteशायद किसी ने ना जानी होगी
पर मैं जी रही हूँ
इस सत्यार्थ के साथ".....
वाह!
जीते जी अपने शरीर से अलग होने की व्यथा
ReplyDeleteशायद किसी ने ना जानी होगी
पर मैं जी रही हूँ
इस सत्यार्थ के साथ
सुन्दर प्रवाहमयी प्रास्तुती
bahut achchi post......
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत है ...हर शब्द किसी को पुकारता हुआ .... बहुत बहुत बधाई इस कविता के लिए आपको...गुंजन जी
ReplyDeleteशब्द शब्द बोलत है आपकी कविता का गुंजन जी ...बहुत खूब....
ReplyDeleteachchhi rachna.........
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