खुली किताब
और मैं ....
एक ग़ज़ल , एक गीत
एक शाम , एक उदासी
प्रकृति की ओट से उगता सूरज ...
अनगिनत परिभाषाओं के शब्दों में लिपटी मैं ...
कई बार पढ़ा है खुद को
कई बार सुलझाया है खुद को
कई बार बन्द किया है खुद को
आज नए जिल्द में फिर हूँ ..........
रश्मि प्रभा
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मैं कौन हूँ ?
मैं वो कविता हूँ
जो कोई क़लम न लिख पाई
रात के सन्नाटों में
तन्हाइयों का शोर
ज्वालामुखी बन कर उबल पड़ा,
इक दर्द जो सदियों से
चट्टान बनकर मेरे भीतर जम गया था
वही पिघलकर
एक पारदर्शी लावा बनकर बह गया
जब मैं खाली हुई
तब जाकर जाना कि मैं कौन हूँ
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खुली किताब
सोच की सिलवटें
मेरी पेशानी पर तैरती है
और जैसे ही
वो गहरी हुई जाती हैं
एक उलझन बनकर
चहरे की झुर्रियों के साथ
तालमेल खाती
मेरे माथे पर एक छाप छोड़ जाती है
और उस वक़्त
एक खुली कि़ताब का सुफ़्आ
बन जाता है मेरा चहरा
जिसे, वक़्त के दायरे में
कोई भी पढ़ सकता है.
Bahut hi acchhi rachna... khuli baat...main kaun hun.. Aabhar...
ReplyDeleteवाह ...बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ...आभार ।
ReplyDeleteजिसे, वक़्त के दायरे में
ReplyDeleteकोई भी पढ़ सकता है.
bahut sunder bhav...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteअच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteजिसे, वक़्त के दायरे में
ReplyDeleteकोई भी पढ़ सकता है...बहुत कुछ कहती ये चंद पंक्तिया....
bhaut hi sarthak abhivaykti....
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी प्रस्तुति ...आभार ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना! शानदार प्रस्तुती!
ReplyDeleteबहुत ही भावयुक्त रचना!!
ReplyDeletewow... amazing...
ReplyDeletebahut hi pyara execution hai...
awesome...
देवी नागरानी जी की दोनो ही प्रस्तुतियाँ लाजवाब हैं …………दिल को छू गयीं।
ReplyDeleteसरल शब्दों में गहन अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteआभार!
दोनों ही रचनाएं बहुत अच्छी लगी
ReplyDeletebehtreen kavitayen gahan bhaavon ki anubhuti karati hain.
ReplyDeleteएक -एक शब्द अपनी जमीं रखता है ,एक -एक शब्द अपनी कहानी कहता है जो दिल में घर कर लेती है |
ReplyDeleteप्रशंसा शब्दों से परे है |
सुधा भार्गव
वी नागरानी जी की दोनो ही प्रस्तुतियाँ लाजवाब हैं !
ReplyDeleteSabse pahle main Rashim Prabha ji ki abhari hoon mujhe is manch par shamil karne ke lliye. sudhee pathakon ki tahe dil se shukrguzaar hoon jo mere prayasoo mein mere hamsafar bane hain.
ReplyDeleteEk sher aap sabhi ki shaan mein :
kaha kisne in kore kagazon se kuch nahin milta
Likhi tahreer padhne se mile kiradaar ki khushboo
खुद को पहचानने की खुबसूरत कोशिश
ReplyDeleteअच्छी रचना