अन्दर कितना कुछ टूटता है , टूटता जाता है
गुंजन अग्रवाल
उससे मन हटा के
हम खुद को वहम देते हैं - सब ठीक है
पर कई रातें अनमनी गुजर जाती है ...
रश्मि प्रभा
===================================================================
मन की किरचें
क्या कभी मन की किरचों से दो-चार हुए हैं आप .. ?
मैं हुई हूँ .... और हर रोज़ होती हूँ
नन्ही - नन्हीं किरचें ... जिन्हें हम
अस्तित्वहीन समझ झुठला देते हैं
वो कब अंदर ही अंदर हमें लहू - लुहान कर देती हैं
हम जान भी नहीं पाते
पर जब भावनाओं का ज्वार - भाटा
पूरे वेग से हमें अपने नमकीन पानी में
बहा ले जाता हैं .... तब उन अस्तित्वहीन
किरचों का अहसास होता है हमें
क्यूँ नहीं उन्हें हम पहले ही बीन लेते .. ?
आखिर क्यूँ उन्हें हम अपने मन में जगह दे देते हैं .. ?
क्यूँ भूल जाते हैं कि पाहुना दो दिन को आये
तब ही तक भला लगता है
पर जब पावँ पसार डेरा जमा ले
तब घर क्या .. !! द्वार क्या .. !!
सब समेट कर ले जाता है - अपने साथ
और हम रीते हाथों द्वार थामे .
..... खड़े के खड़े रह जाते हैं !!
गुंजन अग्रवाल
और हम रीते हाथों द्वार थामे .
ReplyDelete..... खड़े के खड़े रह जाते हैं !!
बिल्कुल सही ... बेहतरीन प्रस्तुति ।
bahut hi sundar gunjan ji....ye mn ki kirche sach me reeta kar deti hai...
ReplyDeletebahut sundar prastuti.
ReplyDeleteअन्दर ही अन्दर लहूलुहान करती किरचें कविता की हृदयस्थली में आकर विश्राम पाती हैं!
ReplyDeleteअच्छी रचना
ReplyDeleteक्या कहने
बहुत अच्छी भावपूर्ण सुंदर रचना,..
ReplyDeleteवाह! बहुत खूब! और कुछ कहूँ तो ये के:-
ReplyDeleteख्याब शीशे के हैं किर्चों के सिवा क्या देंगे,
टूट जायेंगे तो जख्मों के सिवा क्या देंगें!
लाज़वाब !!!
ReplyDeleteक्यूँ भूल जाते हैं कि पाहुना दो दिन को आये
तब ही तक भला लगता है
Thanku Dii .. thankss to all my dear frndss :))
ReplyDeleteसार्थक विचार मूलक प्रेरक प्रस्तुति .सहमत आपकी प्रस्तावना से .
ReplyDeletesunder bhaav pravaah.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर!!
ReplyDeletebahut achhi rachna..
ReplyDeleteprastuti hetu aabhar!
अच्छी भावपूर्ण सुंदर रचना,..अच्छी प्रस्तुति ।
ReplyDeleteभावपूर्ण सुंदर रचना,..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर तरीके से पिरोया है सब्दों के मोतियों को आभार
ReplyDeletesahi kaha hai aapne kash hum aesa karte bahut sunder abhivyakti
ReplyDeleterachana
आपके पोस्ट पर आना सार्थक हुआ । बहुत ही अच्छी प्रस्तुति । मेर नए पोस्ट "उपेंद्र नाथ अश्क" पर आपकी सादर उपस्थिति प्रार्थनीय है । धन्वाद ।
ReplyDeleteबहुत भाव पूर्ण प्रस्तुति |
ReplyDeleteआशा