हत्या चोरी झूठ की परिभाषा सब जानते हैं
चश्मदीद गवाह बदल जाते हैं
पर किसी मासूम की भूख से बेपरवाह
रश्मि प्रभा
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मासूम अपराध
छोटा सा एक बालक, भूख से व्याकुल, निरीह आँखों से ताकता, ललचाई नजरों से सड़क के किनारे स्टाल पर सजे चटपटे समोसों को देखता है| चटखा़रे भर खाते लोग तिरछी निगाहों से देख मुँह फेर लेते हैं| नन्हा बालक अपनी छोटी छोटी हथेलियाँ फैला पैसे माँगता है|
मिलती है झिड़की,
‘अबे! तेरे पढ़ने की उम्र है| भीख माँगता है, जा भाग|’
बेचारा बालक अपना सा मुँह लिए हथेलियाँ समेट लेता है| पेट की ज्वाला बढ़ती जाती है|
एकाएक वह झपट्टा मार एक समोसा लेकर भागता है|
‘अबे! तेरे पढ़ने की उम्र है,चोरी करता है|’
दो चार थप्पड़ गालों पर पड़ते हैं| समोसा जमीन पर गिर जाता है|
बेचारा बालक देखता रह जाता है और एक कुत्ता उसे ले भागता है|
रोता हुआ बालक स्टाल पर गंदी प्लेटें साफ करने लगता है|
दुकानदार चुपचाप देखता हुआ सोचता है, कुछ काम कर दे फ़िर समोसे दे दूँगा|
तभी एक जीप आती है| एक अधिकारी उतरता है और बाल श्रम के लिए दुकानदार को खरी खोटी सुनाता है|
बालक भूखा ही रह जाता है|
नन्हा बालक नहीं जानता है कि भीख माँगना अपराध है,चोरी करना अपराध है,बाल श्रम अपराध है| उसे तो सिर्फ भूख लगी थी|
ऋता शेखर ‘मधु’
मार्मिक।
ReplyDeleteयहाँ पर स्थान दिया...हार्दिक आभार|
ReplyDeleteबढिया, बहुत सुंदर
ReplyDeleteभूख तो भूख होती है …………बेहद संवेदनशील्।
ReplyDeleteलघु कथा के माध्यम से एक गंभीर मुद्दे के साथ साथ हमारी अपाहिज व्यवस्था की ओर भी इशारा किया गया है !
ReplyDeleteसशक्त और प्रभावपूर्ण !
आभार !
यही जीवन की विसंगति है।
ReplyDeleteमार्मिक। रचना...
ReplyDeleteSunder rachna sidhe dil tak asar kar gai.
ReplyDeleteदिल छु लेने वाली बहुत ही मार्मिक प्रस्तुति ...
ReplyDeleteनन्हा बालक नहीं जानता है कि भीख माँगना अपराध है,चोरी करना अपराध है,बाल श्रम अपराध है| उसे तो सिर्फ भूख लगी थी|
ReplyDeletemarmik prastuti......
गहरे उतरते शब्द इस प्रस्तुति के ...आभार ।
ReplyDeletebahut marmik aur dil ko chu lene wala chitra taiyaar kia hai...bahut bahut badhaai
ReplyDeleteमार्मिक!
ReplyDeleteसर्वप्रथम आपको धन्यवाद दे रही हूँ की आप मेरे ब्लॉग पर आयीं मेरा मनोबल बढ़ाया| आज की आपकी पोस्ट के विषय पर सिर्फ मार्मिक कह देने से बच्चों के प्रति हमारा जो कर्त्तव्य है उसकी इति श्री नहीं हो जाती है |उस पर चिंतन की आवश्यकता है, की क्यों हम इतने असम्वेदनशील हो जाते हैं | इस तरह के आयोजनों में अब कुछ अद्यतन की आवश्यकता शिद्दत से महसूस की जा रही है |आखिर हम साक्षर कही जाने वाली कोंम
ReplyDeleteका प्रतिनिधित्व जो करते हैं | क्या प्रतिक्रिया होगी आने वाली पीढ़ी की हमारी इस मानसिकता पर ?
‘अबे! तेरे पढ़ने की उम्र है| भीख माँगता है, जा भाग|’
ReplyDelete‘अबे! तेरे पढ़ने की उम्र है,चोरी करता है|’
दुकानदार चुपचाप देखता हुआ सोचता है, कुछ काम कर दे फ़िर समोसे दे दूँगा|
तभी एक जीप आती है| एक अधिकारी उतरता है और बाल श्रम के लिए दुकानदार को खरी खोटी सुनाता है|
बालक भूखा ही रह जाता है|
एक नासमझ बालक को, अपने को समझदार समझने वाले लोग, आखिर कब तक नसीहत देते रहेगें|सच ही कहा गया है कि कानून को दिल नहीं होता है|
ऋता शेखर ‘मधु’जी आप की लेखनि में बहुत दम है|शायद.......कभी तो सुबह होगी|