तुम्हारे आस पास की खुशबू होती है ख़त में
जीने दो इसे
भर जाने दो रगों में
इसे औपचारिक मत बनाओ ...
रश्मि प्रभा
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ख़त को ख़त ही रहने दो
ख्वाबों को देखता हूँ
सीढियों से उतरते
गुज़रते
दबे पाँव
नज़रें चुराते
गलियारों से
और उधर
तुम्हारे तकिये कि नीचे
वो लम्हा
चुराकर रखा
है अब तक
और लिफाफे में
इश्क के
हज़ारों जगरातें
जुगनू तितली बादल मंजर
छोड़ो ख्वाबों की बातें
तुम कहो
जूही के पौधे पर
फूल आ गए होंगे अब तो
क्या कहा
कैसे जाना
तुम्हारे ख़त में
खुशबू आती है उसकी
और हाँ
अगर हो सके
ख़त को ख़त ही रहने दो
ई मेल मत बनाओ
बेजान सी लगती हैं बातें
संतोष कुमार
चिट्ठी जैसा अपनापन और कहाँ !
ReplyDeleteवाह क्या बात कही है।
ReplyDeleteवाह ...बहुत बढि़या।
ReplyDeleteरश्मि प्रभा जी बहुत बहुत शुक्रिया
ReplyDeleteबहुत बहतु आभार !
.बहुत बढि़या..रश्मि जी..आभार..
ReplyDeleteबड़ी प्यारी रचना.... आदरणीय संतोष जी को बधाई...
ReplyDeleteसादर आभार....
बेहतरीन अभिवयक्ति.....
ReplyDeletesach me email me vo chiththi jaisi khoobsurti,apnapan kahan.
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर और लयबद्ध रचना
ReplyDeleteyaad aa gaya bahut kuchh beeta hua jo ab tak guzra nahi
ReplyDeletenaaz