स्वाद को स्वाद ही रहने दो
टमाटर न बनाओ ...
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वाह टमाटर ,आह टमाटर.*
जब हम छोटे थे तो टमाटर इतने नहीं चलते थे .हर सब्ज़ी का अपना स्वाद होता अपनी सुगंध,अपना रूप अपना रंग कहाँ ,अब तो सब टमाटर होता जा रहा है .
टमाटर की लाली बिना सब बेकार .
कोई चीज़ ऐसी नहीं दिखती जिसमें यह न हो .
कल एक पार्टी में जाना हुआ .मारे टमाटर के मुश्किल .
एक स्वाद सब में ,एक रंग टमाटर, टमाटर !
दाल में टमाटर, सूप में तो चलो ठीक है ,कभी-कभी तो डर लगता है पानी में भी नीबू के कतरे की जगह टमाटर कतर कर न डाल दिया हो .
छोले तो छोले ,.मसाले के साथ पेल दिए टमाटर .पर नवरात्र के प्रसादवाले छौंके हुए काले चनों मे भी घुस-पैठ .और लौकी की तरकारी पर हो गया अतिक्रमण, टमाटरों की हनक के नीचे उसका अपना स्वाद ग़ायब !
मुँगौरी की सब्ज़ी में देखो, तो टमाटर घुले ,पता ही नहीं लगता मुँगौरी है या कुछ अल्लम-गल्लम !
कल घर पर मैंने बिल्कुल सादे मटर छौंके चाय के साथ नाश्ते के लिए, और मैं ज़रा दूसरा काम करने लगी.
वन्या ,अपनी भतीजी से कह दिया ,'ज़रा मटर चला देना, मैं अभी आ रही हूं .'
आई तो कहने लगी ,'बुआ ,मैंने सब ठीक कर दिया !आप ने मटर में टमाटर डाले ही नहीं थे मैंने डाल कर पका दिया.'
'अरे तुमने कहां से डाल दिये टमाटर तो थे नहीं .'
'वो जो प्यूरी रखी थी वह डाल दी ,नहीं तो क्या मज़ा आता खाने में !'
हे भगवान ,बह गई मटर की मिठास ,अब चाटो टमाटर का स्वाद ,
क्या कहती उससे कुछ नहीं कहा .
निगलना पड़ेगा मजबूरी में, सोंधापन डूब गया प्यूरी में ! .
मारे टमाटरों के मुश्किल हो गई है ,कभी-कभी तो लगता है चाय में नीबू की जगह टमाटर न पड़ा हो .
अरे इस बार तो गज़ब हो गया .टमाटर का पराँठा .रायते में टमाटर ,चटनी में ,अरे आलू की टिक्की भी सनी पड़ी है.
कढ़ी में भी टमाटर. तहरी -खिचड़ी ,पुलाव कोई तो बचा रहे इसके अतिचार से .
अभी उस दिन अपनी राजस्थानी मित्र के यहां गई थी ,उन्होंने कोई की तरकारी बनाई थी .(जो चाहे सब्ज़ी कहे ,मुझे तरकारी कहना ज़्यादा स्वादिष्ट लगता है ).
परोस कर बोलीं, 'लो खाओ अपनी प्रिय चीज़ !'
चख कर मैंने पूछा,' यह क्या नई तरह की कढ़ी है?'
खा जानेवाली निगाहों से देखती हुई बोलीं , 'ये गट्टे तुम्हें कढ़ी लग रहे हैं ?'
'अच्छा गट्टे हैं ?'
मैं दंग रह गई बेसन के घोल में खटास घोल दी जाए -चाहे टमाटर की ही ,कढ़ी तो कहलाएगी !उसी में समा गए गट्टे ,क्या ताल-मेल है , और रंग ?पूछिए मत बेसन टमाटर का मिक्स्ड, दोनों का स्वाद चौपट.
और वे ऐसे देखे जा रही हैं जैसे मैं कोई अजूबा होऊँ .
अब कहाँ सुकुमार स्वर्ण-हरित भिंडियों का सलोना करारापन. वह देव दुर्लभ स्वाद !उद्दाम टमाटरी प्रभाव सब कुछ लील गया ,उस रक्तिम शिकंजे में सब जकड़े जा रहे है .
हे भगवान, यह .सर्वग्रासी आतंक हमारे सारे स्वाद ,सारे रंग मटियामेट कर के ही छोड़ेगा क्या !
प्रतिभा सक्सेना.
bahut rochak post hai.sach hi kaha hai tamatar har taraf hain.
ReplyDeleteबहुत बढिया
ReplyDeleteवाह टमाटर
हा हा हा टमाटर बिना सब सब्जी सूना...
ReplyDeleteये टमाटर की अजब गज़ब गाथा भी बढिया रही।
ReplyDeleteवाह टमाटर :))
ReplyDeleteबहुत सुंदर आलेख...लेकिन टमाटर है गज़ब की चीज आप इसे किसी भी सब्जी में डालिए या फल की तरह खाइए..मैं तो केवल टमाटर पर ज़िंदगी गुज़ार सकता हूँ..
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा आपने ... बेहतरीन ।
ReplyDeleteWaah bahut sunder tarkaari shabd bahut dino baad sune baahut accha laga.
ReplyDeleteTamatar puraan gajab ka raha.
आह: टमाटर बडा़ मजेदार...
ReplyDeleteसार्थक प्रस्तुति, आभार.
ReplyDeletekitna theek kah rahi hain aap.....wakayee tamater ki apni ek hasiyat hai......usse aage badhne par cheezon ke swad ko bigad deti hai.
ReplyDeleteरश्मि जी ,
ReplyDeleteअपने ब्लाग पर इतनी सुरुचिपूर्वक और सचित्र कर मेरी पोस्ट 'वाह....टमाटर' को स्थान दिया एवं दूर-दूर तक पहुँचाया,मैं कृतज्ञ हूँ.
मैं सुश्री राजेश कुमारी ,महेन्द्र श्रीवास्तव जी,ऋता शेखर जी ,यशवंत माथुर जी ,सदा जी माहेश्वरी कनेरी जी एस.एन.शुक्ला जी ,और मृदुला प्रधान जी की आभारी हूँ कि उन्होंने इसे इतनी रुचि से पढ़ा और टिप्पणियाँ दीं एवं प्रोत्साहन दे कर मेरा मनोबल बढ़ाया.
और इस सब के लिये रश्मि जी को पुनः धन्यवाद देती हूँ .
मेरी दादी ने कभी भी टमाटर को अपनी रसॊई में जगह नहीं दी।मेरे एक बार पूछने पर वो कहने लगीं अरे मुई अंग्रेजों की लाई हुई फ़िरंगी सब्जी है।
ReplyDeleteअब पता नही वो सही थीं, या टमाटर की आज की सार्वभौमिक्ता,पर सच है टमाटर फ़्ल हो या सब्जी जीवन के आलू को रसदार तो कर ही देता है!और रंग जमाता है।