आत्महत्या आसान नहीं .
लोग कहते हैं इसे कायरता - पर उत्तेजना की स्थिति हो या डूबते मन की स्थिति ,
यह आसान नहीं...
रश्मि प्रभा
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मैं आत्म हत्या नहीं करना चाहता हूं?
मरना कौन चाहता है?
किसे अच्छा लगता है
जीना, बनकर एक लाश।
करने से पहले आत्महत्या,
करना पड़ता है संधर्ष,
खुद से।
पर पाने से पहले
रेशमी दुनिया,
खौलते पानी में डाल देते है
कोकुन में बंद जमीर को।
महत्वाकांक्षा
परस्थिति
समय और
काल
के तर्क जाल में उलझ
आदमी
मारकर जमीर को
कर लेता है आत्महत्या,
और फिर
अपने ही शव को
कंधे पर उठाये
जीता रहता है
ता उम्र....
अरूण साथी
http://sangisathi.blogspot.com/
सार्थक पोस्ट, आभार.
ReplyDeleteनूतन वर्ष की मंगल कामनाओं के साथ मेरे ब्लॉग "meri kavitayen " पर आप सस्नेह/ सादर आमंत्रित हैं.
अक्षरश: सही कहा है ... बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteनववर्ष की अनंत शुभकामनाओं के साथ बधाई ।
बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteनव वर्ष की बधाई !
अच्छी रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर
bahut prabhaavshali aur ati sundar rachna ..Satya vachan bhi..
ReplyDeleteमरने से पहले ही मर जाना क्या जीवन का अपमान नहीं है...इंसान जो अपने भीतर खुदा को तलाश सकता है खुद को भी खो दे कैसी विडंबना है !
ReplyDeleteसकारात्मक पोस्ट के लिये आभार।
ReplyDeleteनव वर्ष की अनंत शुभकामनाएं।
सुन्दर अभिवयक्ति....नववर्ष की शुभकामनायें.....
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