प्रेम को समझना आसान नहीं
इसमें लहरें आती हैं जाती हैं -
हर आवेग किनारों को छूना चाहती हैं
ये किनारों का मोह !
यदि किनारा जान ले
टुकड़ों में लहरों संग घुलता जाए
तो - न नदी अकेली होती है न सागर !

रश्मि प्रभा




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ठहरा हुआ सा कुछ


तरसती हूँ मैं
तुम्हारी आवाज के एक टुकड़े के लिए
जिसे तकिये तले रख
मुझे रात को नींद आ जाये

तड़पती हूँ मैं
अपनी खाली मुट्ठी में
तुम्हारे शर्ट पकड़ने को
थोड़ी देर ही सही

सिसकती हूँ मैं
तुम्हारे कंधे के लिए
कितने दिन कितनी रात
मुझे याद नहीं

अब जैसे आदत सी है
तुमसे नहीं मिलने की
तुम्हारा इंतज़ार करने की
जानते हुये कि आ नहीं पाओगे

टुकड़े टुकड़े सब
तुम्हें माँग ले जाते हैं मुझसे
तुम्हारी माँ
तुम्हारे ऑफिस के लोग
और हालात...

मैं रह जाती हूँ
दिन बीते
अपनी सूनी हथेली को देखती हुयी
मेहंदी की धुली हुयी लकीरों में
कहीं अपने सपने तलाशती हुयी

बस कुछ शैतान आंसू
आँखों में चले आते हैं
बदमाश बच्चों की तरह

मैं यादों के आँचल से
आँखें पोंछ लेती हूँ
और गांठ लगा देती हूँ ताकि भूल ना जाऊँ

My Photoयादों की गीली चुनरी ओढ़े
हर रात सो जाती हूँ
ये सोचते हुये

कि शायद कल तुम आओगे...

पूजा उपाध्याय
http://laharein.blogspot.com/

11 comments:

  1. aapki baat......aur ye kavita dono hi bhawpoorn hain.

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  2. टुकड़े टुकड़े सब
    तुम्हें माँग ले जाते हैं मुझसे
    तुम्हारी माँ
    तुम्हारे ऑफिस के लोग
    और हालात..

    hridaysparshi rachna.

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  3. ज़िन्दगी टुकडों मे बंटती रही
    बँटते बंटते कटती रही
    और फिर एक दिन
    ज़िन्दगी छीज गयी

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  4. प्रेम को समझना आसान नहीं
    इसमें लहरें आती हैं जाती हैं -
    हर आवेग किनारों को छूना चाहती हैं
    .........

    तरसती हूँ मैं
    तुम्हारी आवाज के एक टुकड़े के लिए
    जिसे तकिये तले रख
    मुझे रात को नींद आ जाये

    भावमय करते शब्‍द ... आभार इस बेहतरीन प्रस्‍तुति के लिए ।

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  5. इंतज़ार को शब्दों ने साकार किया !

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  6. एक संवेदनशील ,दिल की गहराईयों से निकली बेहतरीन रचना बधाई

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  7. टुकड़े टुकड़े सब
    तुम्हें माँग ले जाते हैं मुझसे
    तुम्हारी माँ
    तुम्हारे ऑफिस के लोग
    और हालात...
    एहसास ... बहुत सुन्दर

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  8. बहुत खूब, बधाई.
    नूतन वर्ष की मंगल कामनाओं के साथ मेरे ब्लॉग "meri kavitayen " पर आप सस्नेह/ सादर आमंत्रित हैं.

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