विपरीत लहरों पे तैरना
तूफ़ान में किनारा ढूंढना - आसान नहीं होता
तो कठिन भी नहीं होता !
पर भंवर में जब जीवन से लड़ाई होती है
तब कई विचार पनपते हैं
............
बड़ी लहरें तो अपने मद में होती हैं
नन्हीं लहरें बेख़ौफ़
भंवर के रास्तों को समतल बना जाती हैं
और - किनारा खुद बढ़ने लगता है ...
रश्मि प्रभा
ग्रहों का साथ ...
उस रोज़ तुमने अपनी परेशानियों में घिर के कह दिया ..
"मेरा ग्रह तुमलोगों को लग गया .."
तब से अनगिनत बार तुम्हारे ये शब्द
मेरे कानों में गूँज चुके हैं
और मुझे अन्दर तक झकझोर चुके हैं ..
ग्रह ?
तुमने तो ग्रहण से निकल कर हमें चमकाया है ...
फिर ये कैसे कहा तुमने ..
ग्रहों का काला साया जब घबराहट देता है ...
तो तुम्हारा नाम लेने भर से ही मन में रौशनी भर जाती है ...
फिर ये कैसे कहा तुमने ...
एक नहीं हज़ार ग्रहों से लड़ी हो तुम ..
अपने रक्षा मन्त्र के कवच से
हमेशा हमें बाँध कर रखा है तुमने ..
फिर ये कैसे कहा तुमने ...
ग्रहों ने कई खेल खेले तुम्हारे साथ ,
अकेले जूझ कर उनसे जीती हो तुम ..
3 उँगलियों को थाम कर
हर रात का सफ़र तय किया है तुमने ..
आज वो 3 हाथ तुम्हें सँभालने को तैयार हैं ...
फिर ये कैसे कहा तुमने ..
और जहाँ तक तुम्हारे ग्रहों का लगना है
तो अपने ग्रह तो हमेशा हमारे साथ रखना ..
तभी तो आने वाले हर अँधेरे को हम
तुम्हारे ग्रहों की रौशनी से चीर पाएंगे ...
खुशबू प्रियदर्शिनी
अपने गृह तो हमेशा हमारे साथ रखना ..
ReplyDeleteप्रेरक काव्य!! प्रभावशाली अभिव्यक्ति
सुन्दर अभिव्यक्ति!दिल को छू गई हर एक पंक्तियाँ!
ReplyDeleteबेहतरीन कविता।
ReplyDeleteसादर
बहुत सुन्दर और गहरे भाव भरे हैं प्रियदर्शिनी को बधाई…………बेहद खूबसूरती से दिल की बात कह दी है।
ReplyDeleteखूबसूरत भाव लिए अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteवाह दीदी, बिलकुल माँ कि बेटी ... बहुत दिन बाद ब्लॉग जगत में आके अच्छी कविता पढ़ने को मिली वो भी भांजी की लिखी हुई ... बधाई !
ReplyDeleteबहुत बहुत सुन्दर लगी रचना ..बेहतरीन अभिव्यक्ति
ReplyDeleteसटीक तर्क देती हुई ...बहुत सुंदर प्रस्तुति....!!
ReplyDeleteबधाई दी आप दोनों को .....!!
बहुत ही प्यारी रचना...बधाई और शुभकामनाएं।
ReplyDeleteनमस्कार....
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर लेख है आपकी बधाई स्वीकार करें
मैं आपके ब्लाग का फालोवर हूँ क्या आपको नहीं लगता की आपको भी मेरे ब्लाग में आकर अपनी सदस्यता का समावेश करना चाहिए मुझे बहुत प्रसन्नता होगी जब आप मेरे ब्लाग पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराएँगे तो आपकी आगमन की आशा में पलकें बिछाए........
आपका ब्लागर मित्र
नीलकमल वैष्णव "अनिश"
इस लिंक के द्वारा आप मेरे ब्लाग तक पहुँच सकते हैं धन्यवाद्
1- MITRA-MADHUR: ज्ञान की कुंजी ......
3- http://neelkamal5545.blogspot.com
नन्ही लहरें बेख़ौफ़ ...
ReplyDeleteगृह की मजबूती ग्रह को दबा कर रखती हैं !
आशा और विश्वास से भरपूर कविता!
बड़ी लहरें तो अपने मद में होती हैं
ReplyDeleteनन्हीं लहरें बेख़ौफ़
भंवर के रास्तों को समतल बना जाती हैं
bahut achchi linen hain.......
और जहाँ तक तुम्हारे ग्रहों का लगना है
ReplyDeleteतो अपने ग्रह तो हमेशा हमारे साथ रखना ..
wah.....kya baat hai......
kisi kee nakaratmak soch ko isa tarah se sakaratmak bana kar ham jab khud grahan karte hain aur usako bhi usake liye taiyar karte hain tab vo usa soch se bahar aa sakta hai. gahare manovishleshan ko prastut karti hui rachna.
ReplyDeleteaabhar.
बहुत ख़ूबसूरत भावपूर्ण प्रस्तुति ...
ReplyDeleteहर शब्द मन को छूता हुआ ..बहुत-बहुत अच्छा लिखा है आपने ..शुभकामनाएं आपके लिये ।
ReplyDeletebahut sundar shabdon men khushboo ne apni maan ke pyar aur mehnat ka varnan kiya hai
ReplyDeleterashmi ap ko aur khushboo ap ko bhi bahut bahut mubarak ho
khushboo ap ke liye dher sara aasheervad bhee
बहुत सुन्दर कविता....
ReplyDeleteसादर शुभकामनाएं...
वाह बहुत ही सुन्दर
ReplyDeleteतो अपने ग्रह तो हमेशा हमारे साथ रखना ..
ReplyDeleteतभी तो आने वाले हर अँधेरे को हम
तुम्हारे ग्रहों की रौशनी से चीर पाएंगे ...
माँ के ग्रह तो हमेशा बच्चों के अनुकूल होते हैं ..सच्ची और दिल से निकली अभिव्यक्ति
एक नई महक है...खुशबू जी की रचना में...
ReplyDeleteअच्छे भाव।
ReplyDeletehume jo b milta hia apne grahon se milta hai na ki dusron ke grahon se
ReplyDeleteवाह।
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