ज़िन्दगी अपनी शर्तों पर होती है
जो तुम सोचते हो
वह मैं भी मान लूँ - मुमकिन तो नहीं
... तुम भीड़ में सुकून पाते हो
मुझे अपने अकेलेपन से प्यार है
क्यूँ ? क्या ख्याल है ???
रश्मि प्रभा
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साथ साथ मिलकर चलना ही जीवन को पाना है
ये बात सच है ...... पर सही हो
ये ज़रूरी तो नहीं
कई बार ज़िन्दगी अकेले गुज़ारने को भी कहते हैं
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खुद में .... खुद को जीने को भी कहते हैं
एक सांस ..... खुद के लिए लेने को भी कहते हैं
हाँ तुम्हारे साथ चलकर
मैंने इस दुनिया को पाया है
औ इससे जुडी हर ख़ुशी को भी
पर जीवन को पाया
खुद को .... खुद में जी कर
खुद के लिए .... एक नए सिरे से .... खुद को गुन कर
अपने लिए कुछ अनदेखे सपनों को .... बुन कर
अपनी ज़मीं अपना-आप खुद .... चुन कर
तो क्या ये जीवन को पाना नहीं ......?
गुंजन अग्रवाल
http://gunjangoyal5.blogspot.com/
अपने बारे में :
अपने-आप से बात करना बेहद पसंद है मुझे..... अपने-आप में जीना उससे भी ज्यादा। छोटी -छोटी ख्वाइशयें हैं मेरी...... उनको पूरा करना चाहती हूँ, ज़िन्दगी रहने तलक। अपने-आप को, ज़िन्दगी को, महसूस करना चाहती हूँ.... पूरी शिद्दत के साथ। एक साँस लेना चाहती हूँ..... जो सिर्फ मेरी हो.... मेरे खुद के लिए हो। इसलिए लिखती हूँ.... "मैं"
बहुत सुन्दर भावमयी पंक्तियाँ.....
ReplyDeleteman ke bhavon ka sunder varnan.
ReplyDeletebadhai.
बहुत ही खुबसूरत पंक्तिया.....
ReplyDeleteअकेला जिया ...तो क्या जिया
ReplyDeleteख्यालों के काटों में ....
मानों कोई ...सूरज मुखी का तड़पना
भीड़ में अकेले होने से अच्छा है यूँ ही अकेला हो जाना !
ReplyDeleteसुन्दर पंक्तियाँ !
बहुत सुन्दर भावमयी पंक्तियाँ.....
ReplyDeletekanto bhra hota hai ya lgta hoga n tb yh rasta! bojh bn gye rishton ko dhone se behtar hai akele jina.gunjan ki kvita hai??? aashchrya! jaise rashmiji bol rhi hai.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावमयी पंक्तियाँ.....
ReplyDeletepyari minni
ReplyDeletepyar
mera mail ID kya blok hua.jaise sb kuchh thahr sa gya.wapas nya bnaya hai usi naam se pr.............ek shuruaat wapas...nye sire se.
aapka mail id bhi nhi rha mere paas.isliye yahin likh rhi hun.sorry.
mujhe tumhara sahara fir chahiye.....anguli thaam lo babu! yun bhi thk se gai hun.4 aug ko ek baar fir engeoplasty krwai hai.teen mhine me doobara.ha ha ha kya likhun?????
samay mile to blog pr aana.follow krne jaisa lge to kr lena....wrna koi baat nhi.pyar
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ..आभार ।
ReplyDeletebhaut hi sundar...
ReplyDeleteअच्छा चिंतन...
ReplyDeleteज़िन्दगी अपनी शर्तों पर होती है
ReplyDeleteजो तुम सोचते हो
वह मैं भी मान लूँ - मुमकिन तो नहीं
... तुम भीड़ में सुकून पाते हो
मुझे अपने अकेलेपन से प्यार है
क्यूँ ? क्या ख्याल है ???
haan mumkin to nahi ..
mujhe to bahut pyar hai akelepan se
lekin log pagal samjhte hain kabhi kabhi...
खुद में .... खुद को जीने को भी कहते हैं
एक सांस ..... खुद के लिए लेने को भी कहते हैं
kitna sukun mila in do pankhtyon ko padhkar bahut accha hai likha...
बहुत खूबसूरत प्रस्तुति।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteBahut sundar panktiyan!
ReplyDeleteBahut Badhiya rachna.Bahut sundar likha aapne..AAbhar..
ReplyDeleteMere bhi blog me aayen.
मेरी कविता
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ..आभार ।
ReplyDeleteअहम् ब्रम्हास्मी...जिसने खुद को जान लिया उसे सब मिल गया...
ReplyDeleteबहुत खूब !!!
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.
jeevan ke is naye roop kaa sundar varnan
ReplyDeleteसुन्दर संवेदनशील अभिव्यक्ति...
ReplyDeletesach hai khud ko pana hi jeevan ko pana hai....
ReplyDeleteभावमयी रचना अच्छी लगी , बधाई
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर ढंग से लिखी गई अपने अन्तेर्मन की स्थिति को सही ढंग से प्रस्तुत कराती हुई शानदार रचना ./बधाई आपको /
ReplyDeleteplease visitmy blog.thanks.
बिलकुल सही है.. कुछ समय खुद के लिए भी ज़रूरी है..
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