जिस शक्ति को हम महसूस करते हैं
वन्दना गुप्ता
उस शक्ति ने प्रकृति के कण कण में
सरगम के बोल रख दिए
कभी पत्ते गाते हैं
कभी फूल, कभी दिशाएं, .....
सुना तो है इस नैसर्गिक धुन को
और सर झुकाया है ...
रश्मि प्रभा
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"नैसर्गिक संगीत कभी सुना है"
हवा के बहने से
पत्ते के हिलने से
पैदा होता नैसर्गिक
संगीत कभी सुना है
सुनना ज़रा
कल- कल करती
नदी के बहने का
मधुर संगीत
फूल की पंखुड़ी
पर गिरती ओस की
बूँद का अनुपम संगीत
तितली की पंखुड़ी
के हिलने से पैदा होता
मनमोहक संगीत
सुना है कभी
सुनना कभी
कण -कण में व्याप्त
दिव्य संगीत की धुन
बिना आवाज़ का
बहता प्रकृति का
अनुपम संगीत
रोम- रोम
को महका देगा
ह्रदय को
प्रफुल्लित
उल्लसित कर देगा
ब्रह्मनाद का आभास
करा जायेगा
तुझे तुझमें व्याप्त
ब्रह्म से मिला जायेगा
अनहद नाद बजा जायेगा
वन्दना गुप्ता
बेमिसाल रचना
ReplyDeleteमेरी कविता को स्थान देने के लिये आभार रश्मि जी।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ...
ReplyDeleteबहुत खूब...सरल भाव से लिखी गई कविता
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता
ReplyDeletenaishargik sangeet ........:D me machchhro/makhkhiyon ki dhun ko bhi jor len!!
ReplyDeletekya baat hai...bahaut hi sunder kavita
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव पूर्ण प्रस्तुति...
ReplyDeleteadbhut bhav se likhi sunder komal rachna..bramha ke kareeb laati hui ..
ReplyDeleteबहता प्रकृति का
ReplyDeleteअनुपम संगीत
रोम- रोम
को महका देगा
ह्रदय को
प्रफुल्लित
उल्लसित कर देगा
वाकई उल्लसित कर गयी यह रचना
बेहतरीन कविता...
ReplyDeleteसादर...
लाज़वाब प्रस्तुति..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर --
ReplyDeleteप्रस्तुति |
बधाई |
बहता प्रकृति का
ReplyDeleteअनुपम संगीत
रोम- रोम
को महका देगा
ह्रदय को
प्रफुल्लित
उल्लसित कर देगा
बहुत ही मनभावन प्रस्तुति ..
बधाई एवं शुभकामनायें !!!
bahut madhur rachna, badhai Vandana ji.
ReplyDeleteप्रकृति-सी ही सुन्दर कविता!
ReplyDeleteस्वयं में संगीत है...तो हर जगह सुनाई देगा...प्रकृति...की धुन सुनने के लिए ह्रदय के कान भी चाहिए...
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