जिस शक्ति को हम महसूस करते हैं
उस शक्ति ने प्रकृति के कण कण में
सरगम के बोल रख दिए
कभी पत्ते गाते हैं
कभी फूल, कभी दिशाएं, .....
सुना तो है इस नैसर्गिक धुन को
और सर झुकाया है ...
रश्मि प्रभा





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"नैसर्गिक संगीत कभी सुना है"

हवा के बहने से
पत्ते के हिलने से
पैदा होता नैसर्गिक
संगीत कभी सुना है
सुनना ज़रा
कल- कल करती
नदी के बहने का
मधुर संगीत
फूल की पंखुड़ी
पर गिरती ओस की
बूँद का अनुपम संगीत
तितली की पंखुड़ी
के हिलने से पैदा होता
मनमोहक संगीत
सुना है कभी
सुनना कभी
कण -कण में व्याप्त
दिव्य संगीत की धुन
बिना आवाज़ का
बहता प्रकृति का
अनुपम संगीत
रोम- रोम
को महका देगा
ह्रदय को
प्रफुल्लित
उल्लसित कर देगा
ब्रह्मनाद का आभास
करा जायेगा
तुझे तुझमें व्याप्त
ब्रह्म से मिला जायेगा
अनहद नाद बजा जायेगा
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वन्दना गुप्ता

18 comments:

  1. बेमिसाल रचना

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  2. मेरी कविता को स्थान देने के लिये आभार रश्मि जी।

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  3. बहुत खूब...सरल भाव से लिखी गई कविता

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  4. बहुत सुन्दर कविता

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  5. naishargik sangeet ........:D me machchhro/makhkhiyon ki dhun ko bhi jor len!!

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  6. kya baat hai...bahaut hi sunder kavita

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  7. बहुत सुन्दर भाव पूर्ण प्रस्तुति...

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  8. adbhut bhav se likhi sunder komal rachna..bramha ke kareeb laati hui ..

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  9. बहता प्रकृति का
    अनुपम संगीत
    रोम- रोम
    को महका देगा
    ह्रदय को
    प्रफुल्लित
    उल्लसित कर देगा

    वाकई उल्लसित कर गयी यह रचना

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  10. बेहतरीन कविता...
    सादर...

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  11. लाज़वाब प्रस्तुति..

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  12. बहुत सुन्दर --
    प्रस्तुति |
    बधाई |

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  13. बहता प्रकृति का
    अनुपम संगीत
    रोम- रोम
    को महका देगा
    ह्रदय को
    प्रफुल्लित
    उल्लसित कर देगा
    बहुत ही मनभावन प्रस्तुति ..
    बधाई एवं शुभकामनायें !!!

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  14. प्रकृति-सी ही सुन्दर कविता!

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  15. स्वयं में संगीत है...तो हर जगह सुनाई देगा...प्रकृति...की धुन सुनने के लिए ह्रदय के कान भी चाहिए...

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