Friday, January 22, 2010
ब्लॉग जगत एक सम्पूर्ण पत्रिका है या चटपटी ख़बरों वाला अखबार या महज एक सोशल नेटवर्किंग साईट ?

rashmiravija.blogspot.com/2010/01/blog-post_22.html






जब पहली बार ब्लॉग जगत से नाता जुड़ा तो ऐसा लगा जैसे पुरानी पत्रिकाओं की दुनिया में आ गयी हूँ.सब कुछ था यहाँ,कविताएं,कहानियां,गंभीर लेख,सामयिक लेख,खेल ,बच्चों और नारी से जुडी बातें. पर कुछ दिन बाद ऐसा लगने लगा..कि यह उच्चकोटि की एक सम्पूर्ण पत्रिका है या चटपटी ख़बरों से भरा बस एक समाचारपत्र??
और उस समाचार पत्र का भी Page 3 ही सबसे ज्यादा पढ़ा जाता है जिसमे ब्लॉग जगत के स्टार लोगों की रचनाएं होती है.

कोई भी विवादस्पद लेख हो या किसी विषय पर विवाद हो तो बहुत लोग पढ़ते हैं.पर कोई सृजनात्मक लेख हो तो उसके पाठक बहुत ही कम हैं.जबकि हमारी कामना है कि ब्लॉग के सहारे हिंदी को अच्छा प्रचार और प्रसार मिले.यहाँ ज्यादा लिखने वाले वही हैं जो लोग अच्छे हिंदी साहित्य का मंथन कर चुके हैं.अगर वे लोग भी स्तरीय लेखन को बढ़ावा नहीं देंगे तो आने वाली वो पीढ़ी जो नेट और ब्लॉग के सहारे हिंदी तक पहुंचेगी,उन्हें हिंदी में उच्चकोटि की सामग्री कैसे उपलब्ध होगी?

एक लेखक मित्र ने सलाह दी 'असली लेखन तो पत्रिकाओं में ही हैं." उनकी बातें सही हो सकती हैं पर हम जैसों का क्या, जिन्हें हिंदी पढने लिखने का मौका बस ब्लॉग जगत में ही मिलता है.हिंदी पत्रिकाएं तो देखने को भी नहीं मिलतीं...उसमे शामिल होने का सपना हम कहाँ से देख सकते हैं? मुंबई में किसी भी स्टॉल पर अंग्रेजी, मराठी,गुजरती,मलयालम की पत्रिकाएं भरी मिलेंगी..पर हिंदी की नहीं..."अहा! ज़िन्दगी" माँगने पर वह गुजराती वाली 'अहा ज़िन्दगी' बढा देता है और' वनिता' मांगने पर मलयालम 'वनिता'.जब मैंने अपने पपेर वाले को धमकी दी कि अगर वह ये दोनों पत्रिकाएं नहीं लाकर देगा तो उसे पैसे नहीं मिलेंगे..तब उसने ये दोनों पत्रिकाएं देना शुरू किया.बीच बीच में भूल ही जाता है.दक्षिण भारत के शहरों में और प्रवासी भारतीयों के लिए तो बस ये ब्लॉग जगत ही हिंदी से जुड़े रहने का माध्यम है. अच्छा स्तरीय पढने को वे भी आतुर रहते हैं पर अच्छे लेखन को प्रोत्साहन ही नहीं मिलता.जब एक दो लेख,कविता या कहानी के बाद भी अच्छी प्रतिक्रियाएँ नहीं मिलेंगी तो लेखक यूँ ही हताश हो जाएगा. और आगे लिखने की इच्छा ही नहीं रहेगी.और क्षति होती है,अच्छा पढने की चाह रखने वालों की.

लोग कहते हैं,बलोग्जगत अभी शैशवकाल में है.पर अंग्रेजी में कहते हैं,ना morning shows the day .इसलिए अभी से ही ब्लॉगजगत में उच्च कोटि के लेखन को प्रोत्साहन देना होगा. अगर स्तरीय लेखन की नींव सुदृढ़ नहीं होगी तो हम ब्लॉग के सहारे हिंदी के उज्जवल भविष्य की कामना कैसे कर सकते हैं.??हिंदी सिर्फ बोलचाल की भाषा बन कर रह जायेगी.और इसके लिए क्या प्रयत्न करना है? हमारा बॉलिवुड और अनगिनत टी.वी.चैनल तो यह काम बखूबी अंजाम दे रहें हैं.

यह भी तर्क दिया जाता है, सबकी रुचियाँ अलग होती है...पर अगर अच्छा लेखन परोसा ही नहीं जायेगा तो रुचियाँ विकसित कैसे होंगी?

ब्लॉग जगत एक सोशल नेटवर्किंग साईट जैसा ही लगने लगा है.जिसकी नेटवर्किंग ज्यादा अच्छी है.उसका लिखा,अच्छा-बुरा सब लोग पढ़ते हैं.उसके हर पोस्ट की चर्चा भी होती है और बाकी लोगों को उस पोस्ट के बारे में पता चलता है. अब ये नेटवर्किंग का स्किल सबके पास नहीं होता.सबकी पोस्ट पर कमेन्ट करो सबसे आग्रह करो,अपनी रचनाएं पढने की.और कई लोगों के पास इतना समय भी नहीं होता.कितनी ही अच्छी रचनाएं कहीं किसी कोने में दुबकी पड़ी होती हैं.और किसी की नज़र भी नहीं पड़ती क्यूंकि उनके रचयीताओं के पास इतना वक़्त नहीं होता.

अगर स्तरीय लेखन को हम बढ़ावा नहीं देंगे तो फिर हम लोगों से यह अपेक्षा भी नहीं कर सकते कि ब्लॉग्गिंग को गंभीरता से लिया जाए.

16 comments:

  1. रश्मि रविज़ा जी जाना माना नाम हैं ब्लॉग जगत का ... अच्छा लगा उनके विचार जानना ...

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  2. रश्मि दी के लेख सच में बहुत साढ़े हुए और संतुलित सोच वाले होते हैं. संपादन भी बहुत अच्छा होता है. एकदम जैसे किसी पत्रिका में छपे लेख हों.

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  3. रश्मि दी के लेख सच में बहुत सधे हुए और संतुलित सोच वाले होते हैं. एकदम पत्रिकाओं में प्रकाशित लेखों की तरह. संपादन भी बहुत अच्छा होता है.

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  4. आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति शुक्रवारीय ब्लॉग बुलेटिन पर |

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  5. बहुत सारगर्भित अभिव्यक्ति...

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  6. सटीक !
    जिसका कोई नहीं उसका तो खुदा है यारो
    खुदा पर उसका ब्लाग नहीं पढ़ रहा यारो !


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  7. यह आलेख रश्मि रविजा को है या रश्मिप्रभा का? अच्‍छा पढ़ाने के लिए भी एकबार तो अपने परिचय को विस्‍तृत करना ही पड़ता है। फिर भी जो चर्चा लगा रहे हैं वे यदि बताएं कि आज ये आलेख श्रेष्‍ठ हैं तो लोग ध्‍यान देंगे। अभी चर्चा में सारे ही परिचितों की पोस्‍ट का लिंक दे दिया जाता है इसकारण विशेष बात नहीं रहती। यदि केवल पांच पोस्‍ट वह भी सर्वश्रेष्‍ठ को ही हम विज्ञापित करें तो परिणाम सुखकारी होंगे।

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  8. यहाँ शीर्षक आरम्भ से के नाम के साथ पूर्व की तारीख के साथ स्पष्ट है ,कि हम जाने-माने नामों के एक आरंभिक रचना को पढ़ा रहे . नाम स्वयं में विशेष है . यह दुविधा कैसे हुई कि यह मेरी रचना है

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  9. रश्मि का यह आलेख ब्लॉगजगत में उन पाठकों की मानसिकता पर प्रश्न उठाता है जो अच्छे गंभीर लेखन को दरकिनार कर सिर्फ अपने गौरव गान में लगे होते हैं या फिर सोशल नेट्वर्किंग से ही उनकी पूछ होती है .
    अच्छा लेखन!

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  10. आपका यह प्रयास बेहद सराहनीय है, चयन एवं प्रस्‍तुति के‍ लिये आभार

    सादर

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  11. हम जो कुछ सोचते है रश्मिजी उन्हें वास्तविक रूप देकर सुंदर और अर्थपूर्ण शब्दों में ढालकर सुरुचिपूर्ण लेख से हमे रूबरू करवाती है ।आभार ।

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  12. ब्लॉग जगत में सम्पूर्ण पठन हो जाता है।

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  13. आज भी यह आलेख प्रासंगिक लगा लोगो को और पसंद आया ,अच्छा लगा जानकर ,सभी लोगो का बहुत बहुत शुक्रिया,

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