हम जानते हैं
फिर भी चाहते हैं
ना चाहें तो असंभव संभव होगा कैसे !
रश्मि प्रभा
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रात को जब, लेटता हूँ,
तो छत पर तारे दिखते हैं,
और मैं, उन्हें गिनता हूँ।
जबकि, जानता हूँ, गिन नहीं पाउँगा।।।
सुबह मेरे ऑफिस के टेबल पर,
काग़ज के फूल खिले होते हैं,
और मैं, उन्हें सूंघ लेता हूँ,
जबकि, जानता हूँ, वो नकली हैं।।।
राह में जब, कोई भिखारी दिखता है,
ज़ेब से निकाल कर चंद सिक्के,
उसकी ओर उछाल कर,
बहोत गौरवान्वित महसूस करता हूँ,
जबकि, जानता हूँ,
उस दो रूपये के सिक्के से,
उसका पेट नहीं भरेगा।।।
रोज सुबह ऑफिस जाता हूँ,
रात देर से घर आता हूँ,
बनाता हूँ, खाता हूँ, और सो जाता हूँ,
जबकि, जानता हूँ,
ये मेरी ज़िन्दगी नहीं,
फिर भी, जीता हूँ।।।
हम हमेशा, वो सब कहते हैं,
समझते हैं, और करते हैं,
जो हम नहीं चाहते।।।
और, कभी नहीं सुनते,
समझते, कहते, और करते,
जो, हमारा दिल चाहता है।।।
श्वेत
sach hai ham jo karna chahte hai vo jindagi me kaha kar pate hai??
ReplyDeletesundar abhivyakti.
:) wah re dil
ReplyDeletewah re jindagi..
sab janta hai fir bhi jeeta hai..
jindagi kaisi hai paheli....
ReplyDeleteगुज़ारिश : ''..प्यार को प्यार ही रहने दो ..''
बहुत सुन्दर | बधाई
ReplyDeleteTamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
किसने रोका है...
ReplyDeleteजो होता है, वही सच मान लेता है दिल। बहुत ही सुन्दर..
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteकाफ़ी कुछ सही है...
ReplyDeleteमगर कभी-कभी अपने दिल की भी सुन लेते हैं ...उसकी बताई कुछ अच्छी बातें सुननी भी चाहिए... :-)
~सादर!!!
बहोत-बहोत धन्यवाद हमारी रचना को "वटवृक्ष" में जगह देने के लिए, व आप सभी महानुभाओं को भी हमारा उत्साहवर्धन करने के लिए अतिरेक धन्यवाद। सादर...
ReplyDeletewaah bahut badhiya ...
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