झुग्गी झोपड़ियों से जो धुंआ निकलता है 
उसमें कई उम्मीदों की भूख मिटती है 
बहुत शांत खामोशी आकाश को छूती है 
धुएं के साथ साथ ....



रश्मि प्रभा 
===================================================================

झुग्गी-झोपड़ियों से
निकलते धुंऐं को कभी
मौन होकर देखना...

उसमें कुछ तस्वीर
नजर आऐगी..
जो आपसे
बोलेगी, बतियायेगी....

पूछेगी एक सवाल
आखिर यहां भी तो रहते हैं
तुम्हारी तरह ही
हाड़-मांस के लोग

फिर क्यों रोज
इनके घरों से मैं नहीं निकलता?

फिर क्यों दोनों सांझ
इनका चुल्हा नहीं जलता.....?
My Photo

अरूण साथी 

12 comments:

  1. marmik rachna...sahi kaha....hum kaise nazarandaz kar sakte hain ye sach

    ReplyDelete
  2. बहुत सुन्दर और दिल को छू लेने वाली रचना | बधाई |

    Tamasha-E-Zindagi
    Tamashaezindagi FB Page

    ReplyDelete
  3. बहुत मार्मिक और सार्थक रचना ...बहुत बहुत

    ReplyDelete
  4. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  5. धुआँ भी बतियाता है..उनकी पीर सुनाता है..

    ReplyDelete
  6. निश्चय ही घर का दुर्भाग्य बाँचता होगा।

    ReplyDelete
  7. सुन्दर सार्थक संवेदनशील चिंतन ! बहुत सुन्दर !

    ReplyDelete
  8. झुग्गी झोपड़ियों से जो धुंआ निकलता है
    उसमें कई उम्मीदों की भूख मिटती है
    बहुत शांत खामोशी आकाश को छूती है
    धुएं के साथ साथ ....
    बेहद गहन भाव ..

    ReplyDelete

 
Top