आओ उन पन्नों की कुछ सांकलें खोलें
रुनझुन धीमी सी हंसी से कोई कविता लिखें
दीवारों पे अंकित लफ़्ज़ों से नाता जोड़ें
उस भीगी दोपहर में
तुम्हारे भीगे हुए लफ्ज
और
मेरी सुलगी हुई कुछ सांसें
यूं ही नहीं उठा था धुआं।
रातरानी के आंचल से झांकता था चांद
लजाई हुई गौरेया दुबकी पड़ी थी शाख से सटकर
ऐसे ही थोड़े कुल्फी सी घुलती जा रही है रात
क़तरा-क़तरा घुलती है
ज़र्रा-ज़र्रा मिलती है
जिस्म से दिल तक,
बस एक सीलन है
उस पर बेअसर है याद का डिस्टेंपर।
ये सब पढ़कर
जब शब्दों में तुम हंसती हो
और अदृश्य रहते हैं तुम्हारे शरबती होंठ
कंचे जैसी कांपती आंखें
और तीखे धनुष की टंकार की तरह मिट्ठू नाक
तब,
यह तकनीक भी दुश्मन की तरह मिलती है।
फेसबुक के चैट बॉक्स पर
लरजते, घायल, खुश और कातर एकसाथ हुए होंठों को दर्शाने के लिए कोई स्माइली भी तो नहीं है।
मेरी हर बात के बाद
तुम चुप रहती हो
और तुम्हारी हर हां के बाद
गूंजती है नियति की ओर से एक नकार.
सोचता हूं, कह ही दूं तुमसे आज, आखिरकार
यूं भी, मन स्टेट बैंक का प्री-पेड ल़ॉकर नहीं है।
हां, तुम्हारी न
और मेरी हां में नहीं बंध पाएंगे प्रेम और घृणा,
इन अव्यक्त भावों को कहां ढो पाते हैं वे तीन शब्द?
जानती हो,
जीवन में हां और न के अलावा,
मौन के शब्दकोश में करोड़ों अनपढ़े पन्ने हैं।
इसके नए संस्करण में
मज़बूर, विवश और समाप्त शब्दों की जगह
छापे जाएंगे हम दोनों के रेखाचित्र।
बहुत खूब सूरत कल्पनाएँ .....खूबसूरत रचना
ReplyDeleteसाभार
जीवन में हां और न के अलावा,
ReplyDeleteमौन के शब्दकोश में करोड़ों अनपढ़े पन्ने हैं।
इसके नए संस्करण में
मज़बूर, विवश और समाप्त शब्दों की जगह
छापे जाएंगे हम दोनों के रेखाचित्र।
बेहद अनुपम भाव संयोजित किये हैं आपने ... चयन एवं प्रस्तुति का आभार
जानती हो,
ReplyDeleteजीवन में हां और न के अलावा,
मौन के शब्दकोश में करोड़ों अनपढ़े पन्ने हैं।
इसके नए संस्करण में
मज़बूर, विवश और समाप्त शब्दों की जगह
छापे जाएंगे हम दोनों के रेखाचित्र।:
सुन्दर भावों का सुन्दर शब्दानुबाद फिर भी अनपढ़े रहे जायेंगे बहुत कुछ
Latest post हे माँ वीणा वादिनी शारदे !
मौन में कितना कुछ था जो कहा नहीं गया।
ReplyDeleteवाह बहुत खूब मज़ा आगया पढ़कर...:)
ReplyDeletebahut sunder...
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