बुधवार, अप्रैल 26, 2006

एक भोजपुरी टाईप की गज़ल लिखने का प्रयास

मेरा ननिहाल और ददिहाल दोनो ही गोरखपुर, उ.प्र., है मगर मै पैदाईश से लेकर हमेशा जबलपुर, मध्य प्रदेश मे रहा. हमेशा दादी के मुँह से भोजपुरी सुनते थे या माँ पिता जी से, जब वो दादी से बात करें या कोई रिश्तेदार गहन यू.पी. से आया हो.जब कभी गोरखपुर जाना हुआ, तब थोडा और सुना.बस, इतना ही जानता हूँ भोजपुरी के बारे मे. मगर है यह मेरी भाषा, और मुझे अच्छी भी लगती है. अब जितनी भी जानकारी है और जैसी भोजपुरी (हिन्दी मिक्स) मै बोल सकता हूँ, के आधार पर, बस सोचा क्यूँ ना कुछ अलग सा किया जाये और फ़िर उठाई कलम, और शुरु.बतायें, कैसा रहा यह प्रयास:

नज़रन के तुहरे तीर
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नज़रन के तुहरे तीर इहर दिलवा मा लगेला
धडकन मे भईल पीर बरत जियरा सा लगेला

ठुमका लगावत चाल की है बात का कहिन
वनवा मे नाचत जेसन कौनो मयूरा सा लगेला

छतियन पे खडी टिकुर टिकुर ताकती रहिन
रतिया मे वो चमकत कौनो चंदरा सा लगेला

जुल्फ़ि उडत हवाओं मा हररहरर करत रहिन
बदरी उठी है किल्लोल कौनो बदरा का लगेला

खुशबु तोहरे बदन की यूँ छितरात जा बसिन
गेंदा चमेली से सजत कौनो गज़रा सा लगेला

नाम सुन 'समीर' का भौं सिकोड सी लिहिन
हमका तो बुझात तुहार कौनो नखरा सा लगेला.

--समीर लाल 'समीर' 

14 comments:

  1. आपका यह प्रयास एवं दोनो सराहनीय ...
    आभार पढ़वाने के लिये
    सादर

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  2. समीर लाल जी की भोजपुरी उम्दा गजल साझा करने के लिए आभार,,,,

    Recent post: गरीबी रेखा की खोज

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  3. नाम सुन 'समीर' का भौं सिकोड सी लिहिन
    हमका तो बुझात तुहार कौनो नखरा सा लगेला.

    :-) :-)

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  4. हमें तो यह भोजपुरी भाषा में एक बहुत ही सुन्दर गीत लग रहा है समीर जी ! गज़लें तो अब तक हम समझते थे सिर्फ अरबी, फारसी या उर्दू में ही लिखी जाती हैं ! आंचलिक भाषा में गज़लें भी लिखी जाती हैं यह आपकी इस पोस्ट से पता चला ! वैसे जो भी है बहुत सरस और मधुर है ! इस नये प्रयोग के लिए बधाई आपको ! ज्ञानवर्धन के लिए शुक्रिया !

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  5. भोजपुरी की मिठास ही अलग है !

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  6. बहुत बढ़िया भोजपुरी और हिंदी मिश्रित रचना ..
    प्रस्तुति हेतु धन्यवाद...

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  7. बहुत खूब...अच्‍छा लगा हिंदी व भोजपूरी का समिश्रण...प्रयास जारी रखें..शुभकामना

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  8. बहुत खूब...अच्‍छा लगा हिंदी व भोजपूरी का समिश्रण...प्रयास जारी रखें..शुभकामना

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