मुस्कान मासूम,
सपने अनंत ------ क्या बताऊँ इसे 
और किन किन सवालों के उत्तर दूँ 
मैं हूँ कवच 
पर समय कब यह कवच ले ले 
फिर ??????????????

रश्मि प्रभा 
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कोख में पल रही है वह
मैं डरता हूं 
न लाऊं उसे 
क्या है यहां ऐसा 
मैं दे पाऊंगा जो उसे
आ ही गई है अब 
बहुत-बहुत घबराता हूं
बता भी नहीं सकता 
बताऊं भी किसे
मेरी ही बेटी है बस वह
और दुनिया के लिए 
महज चारा
अखबार भी पढ़ेगी वह 
और देखेगी जहान की हकीकत
सवाल भी करेगी वह
और समझेगी भी
नजरों में उतर आई हवस को 
डरता हूं मैं
तब कैसे छूपा पाऊंगा 
मेरी ही 'नपुंसक" कौम को
उससे और उन तमाम बेटियों से
जिन्हे चाहिए भी तो महज
आधी आबादी का 'सम्मान"

[P1010087.JPG]

ऋतुराजसिंह धतरावदा
http://riturajtop.blogspot.in/

6 comments:

  1. संवेदनशील को भला यह वर्तमान कैसे मान्य होगा?

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  2. ये आबादी अब आधी भी कहाँ रह गयी , अब तो आधी से ज्यादा तादाद है |
    संवेदनशील रचना

    सादर

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  3. बिल्‍कुल सच कहा आपने ...

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  4. Dhanyvad sabhi ka... yah samvedna ka hi nahi parivartan ka bhi masla hai.. sukriya prabha ji ki aapne rachana ko iss layak samjha... der se pratikriya k liye maafi :)

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