न विक्रम ने हठ छोड़ा है 
न बेताल ने कहानी और उससे उत्पन्न प्रश्नों से 
विक्रम को मुक्त किया है 
प्रश्न उठ रहे,विक्रम बता रहा सत्य 
पर ............. ??? !!!
 
रश्मि प्रभा 
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विक्रम ने हठ न छोड़ा
वेताल को कंधे पर लाद चल पड़ा
वेताल ने कहा
राजन तुम्हारा श्रम हरने के लिए
तुम्हे आज कल की कहानी सुनाता हूँ

उत्तर न देने पर तुम्हारा सिर
टुकड़े टुकड़े हो जायेगा

चार अंधों ने हाथी का स्वरुप बतलाया
जिन्हें क्रमशः पैर, पेट, कान, और पूंछ मिला

क्रमशः अनुभव आये

हाथी खम्भे जैसा है
यह तो सन्दूक समान है
नहीं यह सूप सदृश्य है
अरे छोडो
हाथी रस्सी जैसा है

अँधा भी प्रत्यक्ष दर्शी हो सकता है?
कौन है संजय?
जो धृतराष्ट्र को आँखों देखा हाल बतायेगा?
जो सच हो सच के सिवाय झूठ नहीं?

राजन
दिल्ली के शाम के चलन में
अकारन मारी गई दामिनी
अकलतरा के हवा में सिमट गई दिल्ली?
किसने किसे समेट लिया अपने आँचल में?

राजन दिग्भ्रमित मत होना
ज़रा बतलाओ दोषी कौन?

लड़की?
लड़का?
माँ?
बाप?
भाई, बहन, संगी, सहेली?
किसी के कह देने से पुलिस?
प्रशासन?
संस्कार?
या स्वछन्द विचार?
वा स्वेच्छाचारिता?

नाम और दाम की चाह?
या ये सब एक संग?

निष्पक्ष जांच हो?
बलात्कारी को फांसी की सजा हो?
किन्तु साक्ष्य सच्चे हों
जांच कर्ता निर्मल हो

राजन
हो गए न हाथ पैर सुन्न?
एक गलत फैसले पर
कितने गलत रास्ते खुलेंगे

सूक्ष्म, गहन, अवलोकन, परिक्षण
निरीक्षण, लड़की की भी हो?
कहीं ऐसा तो नहीं?
आज का सच्चा हमदर्द ही दोषी?

कहीं कोई हमें धोखा तो नहीं दे रहा है?
अपना बनकर
यदि देश भक्त पुलिस शक के दायरे में?
तो पक्ष और प्रति पक्ष क्यों नहीं?

किसी की निष्ठा पर प्रश्न चिन्ह?
और किसकी निष्ठा पर?
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रमाकांत सिंह 

5 comments:

  1. बहुत अर्थपूर्ण रचना है !
    हमेशा की तरह आज भी राजन के पास कोई जवाब नहीं होगा .... और बेताल फिर से वापस उड़ जाएगा... कुछ और सवाल इकट्ठे करने.....
    ~सादर!!!

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  2. बहुत सारे सवाल उठाती रचना..

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  3. जो भी बोलेगा, वेताल उड़ जायेगा..

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  4. आपके बडेपन के लिए प्रणाम

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