संगत से जो गुण जात हैं 
तो आवत काहे नहीं 
एक सड़ा सेब सारे सेब सड़ा देता है 
99 अच्छे सेब एक सड़े को अच्छा क्यूँ नहीं बनाते ...



रश्मि प्रभा 
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आत्म प्रशंसा त्याज्य है, पर निंदा भी व्यर्थ,
दोनों मरण समान हैं, समझें इसका अर्थ।

एक-एक क्षण आयु का, सौ-सौ रत्न समान,
जो खोते हैं व्यर्थ ही, वह मनुष्य नादान।

इच्छा अजर अनंत है, अभिलाषा अति दुष्ट,
जो वीतेच्छा है वही, कहलाता संतुष्ट।

जिन कार्यों को पूर्ण कर, अंतर्मन हो शांत,
वही कर्म स्वीकार्य है, अन्य कर्म दिग्भ्रांत।

दुखी व्यक्तियों को सदा, खोजा करता कष्ट,
है यदि चित्त प्रसन्न तो, पल में कष्ट विनष्ट।

हर क्षण हम सब जा रहे, मृत्यु के निकट और,
इसीलिए सत्कर्म कर, करें सुरक्षित ठौर।

गुणीजनों के पास ही, गुण का होता पोष,
निर्गुण जन के निकट ये, बन जाते हैं दोष।

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महेन्द्र वर्मा
                                                                                     

7 comments:

  1. ्सटीक शब्दों में सार्थक संदेश देती शानदार प्रस्तुति।

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  2. महेंद्र वर्मा जी हमेशा से शानदार लिखते है . एक कलम के और शब्दों के धनी को बधाई .

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  3. सनातन सत्यों को उकेरते शब्द..

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  4. 'जिन कार्यों को पूर्ण कर, अंतर्मन हो शांत,
    वही कर्म स्वीकार्य है, अन्य कर्म दिग्भ्रांत।'
    सभी दोहे एक से बढ़कर एक ! मन प्रसन्न हो गया पढ़कर ..
    ~सादर!

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  5. बड़े सुन्दर और सटीक दोहे..

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  6. जिन कार्यों को पूर्ण कर, अंतर्मन हो शांत,
    वही कर्म स्वीकार्य है, अन्य कर्म दिग्भ्रांत।

    बहुत सही, सुन्दर व सटीक दोहे
    सादर !

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  7. हृदय से आभार, रश्मि जी।

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