मैं सिर्फ इतना कहना चाहती हूँ
इस दर्द के अंगारे कडकडाती ठण्ड में भी
दिल दिमाग को जला रहे
तो ........... बुझ जाएगी आग क्यूँ कहते हो ?
अपने भीतर की आग को बुझने मत दो
जंगल की आग की तरह फैलने दो
अकेले ही सही - रुको मत
गिरो मत
थको मत ........
आहटें सुनाई देंगी - विश्वास को मरने मत दो !
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सर्द दिन और सर्द रातों में
हौंसले सर्द नहीं दिखते हैं ,
हम अड़े है उनके अंजाम पर
जो आज भी सर्द रातों में भी
कांपते नहीं है गुनाह करने से.
हम भी अपने इरादों को अब
कमजोर कभी नहीं पड़ने देंगे
उन्हें उनके गुनाहों की सजा
मुक़र्रर करवा कर ही दम लेंगे .
उनके आका गर ढल बन कर
खड़े हों तो क्या हमारी तलवारें
भय से अब टूटने वाली नहीं है।
उन जैसों का जुर्म सिर्फ एक सजा
मौत ही क्यों न हो नहीं मिटा सकती है ,
उन्हें सजा देने के लिए क्या सोचें ?
तिल तिल मरने की सजा भी कम है।
न जाने कितनी "दामिनी " आज भी
तिल तिल मर कर जी रही हैं।
उन सबके गुनाहगार हाजिर हों
चाहे वे कोई भी क्यों न हो?
दंड तो उन्हें एक ही मिलेगा अब
वह न्याय अब उनकी मर्जी से नहीं
हमारी मर्जी से ही निर्णीत होगा .
रेखा श्रीवास्तव
दिन और रात भले ही बहुत सर्द हैं .... मगर दिल में आग अभी भी जल रही है... और जब तक सही न्याय नहीं होगा, तब तक जलती रहेगी...
ReplyDelete~सादर!!!
सही कहा है आपने, न्याय मिलने तक जंग जारी रहेगी..
ReplyDeleteगिरो मत
ReplyDeleteथको मत ........
आहटें सुनाई देंगी - विश्वास को मरने मत दो !
बेहद सशक्त भाव ...
प्रभावशाली ,
ReplyDeleteजारी रहें।
शुभकामना !!!
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