कुछ शब्द मेरी आत्मा से तुम ले लो
कुछ मैं उठाती हूँ तुम्हारे अंतस की गहराइयों से
प्रश्नों का हल निकालने की कोशिश मिलकर करते हैं ....
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तुम्हारे और मेरे
प्रेम के बीच
पसरी ख़ामोशी की
स्पष्ट अभिव्यक्ति
हमारी आँखों में उभरकर
अब इक प्रश्न सी
नज़र आने लगी है ;
ख़ामोशी को शब्दों का
इक नया आयाम देने
और उसके अहसासों को
एक नया रूप देने की कोशिश में
हम दोनों ही
क्यों कुछ और खामोश
हो जाया करते हैं;
क्यों नहीं शब्दों से
अपना तारतम्य बनाये रखकर
अपनी ख्ह्वाहिशें
एक दुसरे से बाँट पाते हैं ;
उन्हें सतरंगी खुशियों में बदल पाते हैं;
क्यों ध्रुव तारे की सी चमक
हमारे कोरों पर ठहरे
अश्कों में नज़र आने लगी है;
चाहत के आसमान में
जो अपनी नियति
सदा ही अवश्यम्भावी
बनाये रखती है;
प्रेम में
येकैसी
अनिश्चितता है;
बिखर गयी है जो
हम दोनों के बीच
अनायास ही;
और खड़ी है
नागफनी के
अपने विराट रूप में ;
चुनौती देते हुए हमें;
हमारे विशवास और समझ को ;
कि..भरोसा है अगर
तो बढ़ो आगे;
पार करो मुझको
और जीत लो
अपने उस प्रेम को
जो इस धरती पर
युगों युगों से
जीवित और स्थापित है
अपनी सम्पूर्ण गरिमा के साथ;
आओ और वो उत्तर
जो कैद है
हमारी ही खामोशियों के दायरे में ;
उन्हें अब हम ही मुक्त
और स्वीकार करें
सम्मान सहित
मेरे हम्न्फ्ज़ ....!!!
अर्चना राज !!
bahut sundar abhivyakti abhivyakti ko abhivyakt karne ke liye .. umda
ReplyDeleteप्रेम भी विवाद हो सकता है ... फिर प्रेम क्या नहीं हो सकता ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...
ReplyDeleteवाह ... बेहतरीन
ReplyDeleteप्रभावशाली ,
ReplyDeleteजारी रहें।
शुभकामना !!!
आर्यावर्त (समृद्ध भारत की आवाज़)
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बेहतरीन
ReplyDeletebhaut kuch kahti khamoshi.....
ReplyDeleteतेरे और मेरे बीच जरुरी नहीं शब्दों की भाषा ...
ReplyDeleteतेरा दिल अक्सर सुन ही लेता है मेरे मौन की परिभाषाNeelima Sharma
bahut khoob
दिल को छू गयी
ReplyDeletekhamoshi bayan ho rahi :)
ReplyDeleteन जाने क्यों निष्क्रियता की बेल ढक रही है संबंधों को। सुन्दर कविता।
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